Wednesday, September 8, 2010

केतना पानी, घो घो रानी...




केतना पानी, घो घो रानी |
जरत जिनगी,
बिलमत आस
देव धरम पे टूटल
विश्वास
काहे के भोला
अवघड़  दानी |
केतना पानी घो घो रानी...

भूखे मरल
करिमना के माई
पड़ल बेराम
ना भईल दवाई
कफ़न के खर्चा में
भईल खींचातानी |
केतना पानी घो घो रानी...

गोबर पाथत
मुस्मात बुधिया
शादी जुकुत
भईल रधिया
अब त शायद
करे पड़े देह नीलामी |
केतना पानी घो घो रानी...

चनर पांडे
बनले मुखिया
सीधा साधा
गरीब दुखिया
दशा बदलल त
करत बाड़े मनमानी |
केतना पानी घो घो रानी ...

शुकुल महतो के
लईका पियक्कड
रामदीन भर जिनगी के
फक्कड
उदास रहेला
चूल्हा सानी |
केतना पानी घो घो रानी...

मड़ई जादो के
मड़ई टूटल
एक कोना में
हडिया फूटल
कर्जा खाके दे देले
जमीन के कुर्बानी |
केतना पानी घो घो रानी ...

Monday, June 21, 2010

न्यूटन के दिमाग, केतना टन…!!!?


साभार: मिसिरपुराण के अलोता से



बात त ठीक रहल ह की खाली दिमाग शैतान के घर होला आ इहे शैतानियत में केतना बढ़िया बढ़िया प्रयोग भ गइल बा इ सभे जानत बा । न्यूटन खलिहा बयिठल रहन, निठल्ला । उहे निठल्लापन के सोच में अईसन आविष्कार कइलन जे दुनिया बदल गइल । आ आविष्कार का रहे खालि उनकर दिमाग के कचरस । जवन बात आज एगो अंगुठो छाप बता दी की भैंस प से कुदला से जमीन पे काहे आवेला, आकाश में काहे ना जाये ? भा झटहा मरला पे आम भदभदा के निचे काहे गिरेला । बाकी बात न्यूटन के रहे, उनकर बात कुछ खास । अरस्तु, आर्कमिडिज जईसन के कहल रहित त आउर बढ़िया । अब मिसिर बाबा के मगज के कचरस के दुनिया आविष्कार थोड़े कही, इ न्यूटन थोड़े हवें ।

जून के महीना में दिल्ली के गर्मी में मिसिर जी निठल्ला बइठल बाडे आ उनकरो मगज में  चुहल्पनी होला शैतान के । शायद इहे बतिया भइल न्यूटन के साथे ।  गर्मी से बचे खातिर लेटल रहे दुपहरिया में सेब के पेड़ के निचे ।

कुछ सोचत रहन की, पेड़ पर के सेब गिनत रहन, अब उहे जानस । तब तक ले त ठीक रहे । बाकी कपार पे सड़ल सेव गिरल, कपड़ा खराब भइल त सोचले- इ सेवुआ दोसर ओर गिरित त हम बांच जयितीं । खैर गर्मी आ घाम जब मगज में बढल त शैतानियतो जागल । लगले सोचे, केतना बढ़िया होईत की इ सेवुआ निचे ना गिरित, ऊपर आकाश में चल जाईत । शैतान के बाण कुछ और चलल, केतना बढ़िया होईत की ऊपर से गिरे वाला हर चीज उपरे चल जाईत आ आकास में तैरत रहित, जब मर्जी हाथ बढा के सेब लेल, हवा में से आम उठा ल, मुर्गी अंडा देलस आ अंडा हवा में तैरत बा, पकड़ के आमलेट बना लीं । तब तक दोसरका सेब उनकर गोड पे गिरल, मगज के तार झंझानायिल आ दिमाग के ढिबरी जलल । सोचले आमलेटवो कईसे बनी । अंडा तुडब आ सभे माल मेटेरियल हवा हो जाई ।

अब चिंता आउर बढल, सोचले कहीं हम थूकीं आ उ हवे में लटल जाए । आ कभी उहे थूक हमार मुंह पे आयिल त थूक के चाटलकहावत चरितार्थ हो जाई । बड़ा भारी फेरा बा, आ कहीं मलमूत्र के साथो इहे हो जाए त बड़ा भारी फेरा बा । दुनिया रंगीन हो जाई । फेर त नगरनिगम वालन के हवा में मेहिंका जाल बांधे पड़ी साफ़ सफाई करे खातिर । न्यूटन के मुस्की आयिल । हो जाईत त बढिए रहित सब नगरनिगमवाला देह चोर बाड़न । इनको लोग के आपन देह आ कपडा बचावे के पड़ीत त सफाई जरुर करतन । बाकी इ होत नईखे, काहे ? हो जाईत त केतना बढ़िया रहित ।

अब न्यूटन के चिंता दोसरा ओर बढल, मगज खालीये रहे, फेर सोचे लगले । अब सोचे में केकर का जात बा ? सभे कोई सोचेला, हवा में महल बनावेला । इटालियन फ्लोरिंग आ मकराना के मार्बल वाला चहबच्चा में नहाला । सोचे में का जात बा, सोच लीं की रउआ के एकदिन खातिर प्रधान मंत्री के पावर मिले त का का करब, आ प्रधानमंत्रीये काहे । भगवानों के  एक दिन आराम करा दीं । उनकर पावर लेके दुनिया चला लीं । सोचहीं त बा, ना हिंग ना फिटकिरी, दुनियो के मालिक  बन जायीं ।

न्यूटन लगले सोचे आखिर कारण का बा जे सभे टपकत जिनिस धरती ध लेत बा ? बड़ा उल्झावेवाला सवाल बा । अईसन उलझन की पूछी मत । इ सब सेब के करामात ह, सेब के चक्कर के फेरामें पडके एडम-इव के स्वर्ग छुटल । उनका के बनावेवाले भगवानो एह सेब के चक्कर में बुडबक बनले । मतलब सेब खाईला से मगज के केमिकल में कुछ उंच नीच रिएक्सन जरुर होला की बुद्धि बतासा (हवा भरल, आ पानी में हवा हो जाए वाला) हो जाला । अब अईसन बुद्धिवाला के पास डाक्टरो-वैद्य लगे जाए से डेरइहें, शायद एही से एगो कहावत बा- एक सेब रोज खाइए, डाक्टर दूर भगाइए

त इहे सेब के कइल केमिकल लोचा (केमिकल रिएक्सन) न्यूटन के मगज में भइल । कपार पे लमहर बाल राखत रहन । इ दार्शनिक आउर बुद्धिजीवी लोग पहिचान होत रहे, अबहुओं बा । लमहर बाल आ दाढ़ी राखे के । अब भारतो में  कमी नईखे टैगोर, भावे, निराला जईसन विचारक के फोटो त इहे बतावत बा । शायद लमहर बाल आ दाढ़ी हवा में तैरत विचार के पकडे खातिर होला । लमहर बाल जईसे मोबाइल आ टीवी के टावर । नया नया आईडिया एकरे से पकडाई, आ कहीं छटक के एने ओने भइल त दाढ़ी में अझुरा जाए । चाणक्य के एंटीना एकदम लमहर रहे, चिकन चुलबुल बांस के जयिसन । उनकरो बुद्धि के जोग आ उत्जोग के लोहा मानल गइल बा ।

अब न्यूटन एही एंटीना के लगले सुहुरावे (कहब त गर्मी में पसीना से माथ ककुलात रहे) । तनी जोर पडल त दू-चार बाल उनकरे हाथ में आयिल । बुद्धि खुलल की हो ना हो... इहे बात होखे ।

हँ हँ हँ इहे बात हो सकेला...।

हाथ के खिंचाव से बाल कबर गइल । माथ से अईसन कबरल जईसे इ सेवुआ पेडवा के डाल से टूटल ह ।
हँ हँ हँ... ठीक इहे बात बा धरतीयो  खिंचतान करत बाड़ी । बाकी हाथ कहाँ बा ?

हम त हाथ लगयिनी त बाल कबरल, एहिजा का लागल ....!!!?

तबे उनका एगो मुर्दा जात देखाई पडल । लोग करिया कपडा पहिरले कॉफिन (लाश ढोवेवाला बक्सा) के पीछे पीछे जात रहे । अब न्यूटन के बुद्धि फेरा गइल । शायद जान पहिचान के लोग रहन उ शवयात्रा में, इहोउठ के चललन । कब्रगाह में कब्र खोदाइल रहे ओहिजा किरिया करम क के लाश के ओह में जयिसहीं डलाइल की इनकर बुद्धि खुलल ।

आखिर इहे कब्रगाह जीवन के अंतिम सत्य होला । एहिजा केतना जाना सिद्ध हो गईले । मसान में औघड सन्यासी साधना करेले, सिद्धि खातिर । अब एहिजा केहू के बुद्धि खुले एहमे कवनो विशेष बात ना । त न्यूटन के बुद्धि खुलल आ निष्कर्ष निकलल जवना के सार संक्षेप नीचे बा-
मृत्यु जीवन के अंतिम सत्य ह, आ मृत्यु के बाद शरीर के धरती अपना में समा लेवल चाहेले । एह खातिर कब्र (Grave) बनावल जाला । धरती इहे कब्र में खिंचेली । माने धरती में कवनो बल बा । इहे बल सभे चीज पे लागेला ।

Grave में -tion (action) प्रत्यय लगाकेनया शब्द बनयिले Gravitation (गुरुत्व बल) । उ बल जवन पृथ्वी लगावेले आ हरेक चीज के कब्र अर्थात पृथ्वी के ओर खिंचेले ।

अब गुरुत्व बल के खोज भ गइल । सेब के भतीया से फल बनल आ पाक के सड़ गइल आ जमीन पे गिरल जीवन चक्र के निशानी ह । अब एहमे गुरुत्व बल के खोज भइल त जरुर न्यूटन के महानता बा । विचारक उहे जे निरर्थक से सार्थक के खोज करे । अबमिसिर जी के लेखा ना की चौदह किताब पढ़ के, चौबीस पन्ना निरर्थके लिखिहें । आपन मगज के कचरस दोसरा पे डलिहें ।

त मिसिर जी के आध पाव के बुद्धि से न्यूटन के टन भर बुद्धि केतना नपाई । आ एहमे केतना डंडी मराई एकर फैसला शुद्धि पाठक लोग के कोरे ।


इतिश्री रेवाखंडे..... ।।

Wednesday, June 2, 2010

यात्रा वृतांत: अजमेर यात्रा में इस्कौनी बाबा के अत्याचार

कहावत बा कि देवी देवता के बुलावा होला तबे लोग तीर्थाटन पे जाला ना त केतनो नाक रगड़ लीं पहुँच ना पायिब एकर भुक्तभोगी हम साक्षात बानी बाबूजी के कॉलेज के छुट्टी होखे के रहे एह जून में प्लान बनल कि वैष्णोदेवी के दर्शन कईल जाई इंटरनेट पे तमाम सुचना देख लेनी, टिकट भी मिल जाईत बाकी कुछ अईसन संजोग बनल कि यात्रा रोके पडल शायद माता रानी के बुलावा ना रहे खैर बुलावा आयिल ख्वाजा गरीब नवाज के अचानक मन में आयिल आ हम टिकट बुक करा लेनी अजमेर आ लगले पुष्कर में दर्शन भईल मन प्रसन्न रहे बाकि जून के गर्मी आ मंगलवारी व्रत में देह के दुर्दशा होत रहे ओही शाम फिर दिल्ली लौटे के प्लान, मतलब शरीर के आउरी दुर्गिंजन सुविधा खातिर दुगिना भाड़ा देके एसी बस में टिकट लेनी कि यात्रा कुछ सकूँ वाला रही, बाकी सारी सुकुनियत के हवा निकल गईल जब एसी बस में इस्कॉन मंदिर के पुजारियन के अत्याचार भयिल पढ़ीं एह यात्रा वृतांत में-
जून के पहिला तारीख के दर्शन के निश्चित भईल रहे ३१ मई, सोमवार के रात ९ बजे ख्वाजा के नाम लेके यात्रा शुरू भईल बस डिलक्स रहे बाकी यात्रा कुछ ज्यादे ही डिलक्स भईल गरम हवा के थपेड़ा आ रेट-माटी-धुल के विषपान करत सबेरे अजमेर पहुंचनी, होटल में सामान रख पुष्कर दर्शन के प्लान बनल विश्व में एकमात्र मंदिर जवन ब्रह्मा के समर्पित बा, दर्शन कईनी लहकत घाम में १-२ आउरी मंदिर के दर्शन करके २ बजे दुपहरिया में अजमेर होटल पे वापसी भईल आजे ख्वाजा के पास भी हाजरी हो जयित त आउरी एक दिन रुके के कवनो मतलब ना त वापसी के टिकट भी बना लेनी रात के १०.३० पे बस रहे होटल में चाय पानी करते धरते ४ बज गईल तैयार होके खवाजा के दरबार में हाजिरी देनी दरगाह से वापस होतहोत ७ बजत रहे खाए पिए के त कुछ ना रहे, होटल में फेर से नहा धोके बस पड़ाव खातिर निकल गईनी १० बजे बस आयिल त बैग के यथास्थान रख के आपन सीट पकड़नी एसी के ठंढक में दिनभर के थकन भुलाये लगनी बस मात्र आधा भरल खुलत खुलत ४ गो इस्कॉन मंदिर के भक्त लोगन के पदार्पण भईल उ लोग पीछे के सीट पकड़ लेले लोग जयपुर तक के यात्री रहन जा खैर बस चलल हमार कपार के ठीक ऊपर एसी के हवा खातिर जवन छेद होला ओह में एगो टूटल रहे , त बस के पर्दा के ओह में कोंच देनी आ अँधेरा करे खातिर आपन रुमाल के आँख पे बाँध लेनी यात्रा शुरू भईल
रात के एक बजे जयपुर आयिल त नींद खुलल यात्री लोग में खलबली भईल उतरे खातिर, बस के पड़ाव १५ मिनट खातिर रहे पिछे के पुजारी लोग के एहिजा उतरे के रहे उ लोग हमनी के सीट से आगे निकलल त बहुत ही अजीब गंध आयिल बुझाईल केहू तीन दिन के पेट में के पचावल हवा उत्सर्जित कईले बा हमर आँख प के रुमाल नाक पे आयिल आउरी दोसर लोग के हाथ नाक पे खैर २ मिनट में सभे कोई उतरल हम भुखासल रहीं त सामने के होटल में चाय लेनी पहिलके घोंट पे हल्ला बुझाईल मामिला का बा देखे खातिर बस भी पहुंचनी त मालूम भईल कि एगो पुजारी जी जवन करीब ४० के आस पास होइहें बस में ही निवृत हो गईल बाड़े आ आपन धोती भी खराब कर देले बाड़े उ त बस से उतरते गायब होखे के फेरा में रहन, कि एकजना उनका के ध लेले लोग उनकर फजीहत करे ए शुरू कईलन त उ इ कहत निकल गईलन –
“मलमूत्र विसर्जन पर किसी का अधिकार है क्या?”
खैर अब आफत हमनी के रहे, एसी बस चारो तरफ से बंद, आ पीछे के सीट पे पुजारी जी के चउका पुरल, गंध के मारे केहू जात ना रहे आधा घंटा बित गईल, तब दोसर गाड़ी के मंगावल गईल उहो गाड़ी दोसर जगह से आवे के रहे आउरी १ घंटा विलम्ब के सुचना पे हमनी के मन मशोस लेनी जा आपन आपन सामान केहू तरह निकाल ले सभे कोई स्टैंड पे बयिठल ओह सज्जन के प्रति लोगन के हास्य और क्षोभ के मिश्रित भाव फूटे लागल हमहूँ त्रस्त रहीं त हमहूँ ओह चौपाल में शामिल भयिनी अब ओहिजा का का बयान बाजी भईल गौर करीं जा-
पहिला- “ इ पंडित लोग साले इतना खाते क्यूँ हैं कि पचा नहीं पाते?”
दूसरा- “अरे मुफ्त का धन होगा तो आप भी ऐसे ही खायियेगा “
तीसरा- “स्साला, बच्चा को भी पेशाब लगता है तो कम से कम दो बार बोलता है ये बोल नहीं सकता था गाड़ी कहीं कड़ी हो जाती ”
चौथा- “ अरे शरमा रहा होगा कि रोड किनारे कैसे जायेंगे !!! इस्कॉन के पाखानों में ततो फ्लश लगे हैं यहाँ कहाँ मिलेगा”
पांचवा कंडक्टर से- “ यार आगे से नोटिश लगा दो, कि बस में सवार होने से पहले , फारिग होएं ”
कंडक्टर- “ इ कांड हम अब तक के जिनगी में पहली बार देख रहे हैं”
पहिला- “खलिश घी का तरमाल खायेगा सब, देखे नहीं देह कयिसा मोटा के रखा है “
तीसरा- “ अरे उसी घी कि चिकनाई में निकल गया होगा.... हा हा हा बेचारा के कोई दोष नहीं है”
हा हा हा हा हा...

अब हंसी के अईसन फुलझरी छुटल कि सब कुछ भुला गईनी
एक जाना कहले कि हम एकरा के इन्टरनेट पे सनसनीखेज न्यूज बना के पेश करब ढेर बतकही भईल जवना के एहिजा लिखल मर्यादा से बाहर हो जाई... संक्षेप में इहे कहब कि उ पुजारी जी अपना साथे सभे ब्राह्मण के पारिवारिक रिश्ता के बखिया उधेड़वा देले क्षमा चाहब कि ओकर विस्तृत वर्णन एहिजा संभव नईखे

खैर दोसर बस आयिल, एह हास्य-क्षोभ तरंग में २ घंटा के विलम्ब हो गईल रहे, गाड़ी तुरंत खुलल अब हमरो भीतर के मिसिर बाबा कुलबुलाये लगले त घटना क्रम के फरमा दर फरमा आपन मगज में सहेज लेनी विचार एहे भईल कि दिल्ली पहुँचते कम्पूटर के कीबोर्ड खटखटाईब आ शाम तक रुआ सभे तक एह मजेदार यात्रा वृतांत के राखब बाकी संभव ना भईल थकावट कुछ विशेष रहे, मित्र के घरे २ रोटी नास्ता कर के आपन कमरा पे पहुंचनी त फेर सब कुछ भुला गईनी दिन के १० बजे से शाम के ६ बजे तक निर्विघ्न निद्रापान कर के तरोताजा भयिनी त इ घटनाक्रम के लिख पयिनी

Sunday, May 23, 2010

ढोंग


शंकर यहाँ डुगडुगी बजाता, हनुमान भी हाथ फैलाता है |
और कभी रखता है कोई मूर्ति, उसी में जिस थाली में खाता है |

बुद्ध भी यहाँ मिल जायेंगे, और मिलेंगी बहुतेरे काली माई |
कालिख तन पर और जिह्वा बाहर, आकर आपके आगे हाथ फैलाई |

कभी डाल चोला साधू का, अलखनिरंजन की ऊँची टेर लगाता,
दे बच्चा खाने को कुछ, बाबा का आशीर्वाद खाली नहीं जाता |

कभी आएगा कोई अघोरी, अस्थि-दंड खूब बजायेगा |
पढ़लेगा मस्तक की रेखाएं, खुद को त्रिकालदर्शी बतलायेगा |

घुमती है एक मण्डली,जो अजमेरशरीफ भी जाती है|
डाल दो कुछ चादर में ,चादर चढाने जाती है |

चौराहे पर एक बाबा मिलेगा, लोबान जला भूत भागता है |
दे दो इसको बस एक रुपया, ज़माने भर की दुआ बरसाता है |

देखा कभी एक नज़ारा ऐसा भी, आदमी काम्पने लगा गिरकर ,
पास कोई उसके ना फटक रहा, और पैसा बरसता था झरझर |

एक उर में और एक उदर में रख, दीनहीन कैसी ये माता है |
हाथ फैलाकर रही मांगती, चौराहे पर जब कोई रुक जाता है |

भरी जवानी तन का सौदा, बुढापा अब खटकता है ,
मन का सौदा कर रही हैं, हाथ अब दिन-रात पसरता है |

बहुत ही ऐसे ढोंग मिलेंगे, जो रोज़ हमें छला करते हैं |
हाय विधाता कैसी ये दुनिया, कैसे-कैसे जीवन रहते हैं |

Wednesday, May 5, 2010

देश के हालात: मिसिर पुराण के अलोता से

भारत की सरकार कहें तो, है हिजडों की फ़ौज,
देश के जनाजे में भी, सब उडा रहे हैं मौज |

जहाँ हिजडों का होता नाच, संसद है वो मंच,
देश द्रौपदी हो गया, दुशाशन हैं सब सरपंच |

किन्नरों के नृत्य में, क्या मिला कभी है ताल?
गीत अगर मालकोंस है, ढोलक पर बजे धमाल |

देश विभाजन, देश पर कब्ज़ा चिंता करता कौन?
जब सुम ही मंत्री भये, फिर शैतान रहे क्यू मौन |

इंच इंच जमीं जा रहा, जैसे गलित हो कुष्ठ,
गर्दन में तलवार फंसा, प्रजातंत्र है सुस्त |

Friday, April 23, 2010

वैशाखनंदन के प्रति

साभार- मिसिर पुराण के वैशाख पर्व के अलोता से


(जे दुर्बल आ निरीह होला ओकरा के लोग अलग अलग तरीका से सतावेला | अब गदहा जइसन शाकाहारी, रजकमुखेण उवाच्चित अपशब्दाहारी और निरंतर डंडायाम पीड़ाआहारी एह निरीह प्राणी के साहित्यकार लोग भी नईखे छोड़ले, मगज में केहू के कमी देखके ओकरा के तुलना एह निरीह प्राणी के सीधापन से कर दीं | माने गरीब के मेहरारू गांवभर के भौजाई | पढ़ीं एह वैशाखनंदन(गधा) के भलमनसाहत के एह रूप के आ आपन नजरिया बदलीं |)

चौपाई-

चैत बिगत वैशाख ऋतू आई, खर भूषण देखि हरसाई |

लहकत धुप देह सुखाई, खेत खलिहान सब सुन हो जाई |

तरुणी खरनी भी ली अंगडाई, गर्दन झटका के धुल उड़ाई |

देखि के अंगडाई खर इतरइहें, गर्दन फाड़ के गीत सुनइहें |

ढेंचू-ढेंचू सुनी सकल समाजा, जय जय जय हो खर राजा |

भईल रजक पुत के नींद हराम, मगज के गर्मी बढ़ावत घाम |

कोना में से बोंग उठवलस, नवकु तानसेन पर तान चलवलस |

भईल मध्यम सुर से पंचम सुर, झार दुलती के उडइले धुर |

दोहा-

एक ता खरनी के नजर के मारल, ओह पे बाजल बोंग |

राग बदल गईल भाग भी बदलल, बुद्धि जगला के जोग ||

चौ० -

गोड झटक के तुडले छान, एक क्षण में लउकल सिवान |

हंसत खरनी के देख लजयिले, राह नपले मुडी निहुरयिले |

नैन मट्टका के जागल अईसन जोग, पीठ पे बाजल अनघा बोंग |

मन मसोस के खेत में समयिले, थुथून से घास टुनगीययिले |

घास टुनगीआवत गोड बढ़ईले, एह खेत से ओह खेत में गईले |

सुखल घास से बहाल खलिहान, हरियरी खोजत बढ़ले सिवान |

चलत चलत लागल पियास , मुडी उठा लगईले पानी के आस |

बाकि देखले गांव अरियायिल, पाछे खेतन के घास ओरियायिल|

दो०-

देखि आपन खनिहारी, उपजल मन में विश्वास |

अनघा खा लेनी आज, भईल संतुष्टि के भास ||

चौ०-

अब सुखल घास केतना खयिहें, बाकि एही तरे अघयिहें |

पियर भईल सब जर के घास, बाकि खर के अलग विश्वास |

हम खयिनी भर भर के पेट, चर गईनी हम सउसे खेत |

अब त मन हमर गम्भिरायिल, आवे लागल अब जम्हाई |

तंदुरुस्ती बढे के इहे बा राज, जब संतुष्टि के मिले अनाज |

मूर्ख के उपाधि काहे देहब, आत्मसंतुष्ट के संत काहे ना कहब |

मुट्ठी भर घास में हम अघायीं, जरत वैशाख में हम मोटायीं |

नून भात पे देह फुलायिब, त रउओ काहे ना वैशाखनंदन कहायिब |

दो०-

वैशाख में जे मोटाई, वैशाखनन्दन कहाई |

इ उपाधि संत के, मुरख थोड़े समझ पाई ||

(शब्दार्थ- खर: गधा; रजक: धोबी; वैशाखनन्दन: गधा/मुर्ख)

बेपेनी मिसिर के लोटा

लोटा जईसन चीज आज चुहानी (रसोई) से लापता हो गईल बा । कभी कभी लउक जाला  । लोटा के महत्व कम ना होखे । आज उ लोटा के रूप परिवर्तन हो गईल बा आ एकर जगह मग आ जग ले ले बा । पढ़ीं इ व्यंग्य के जेकरा माध्यम से लोटा के महत्त्व बतावल गईल बा... - शशि रंजन मिश्र



लोटा भारतीय गँवई संस्कृति के रीढ़ ह । विश्वास ना आवे त कवनो गाँव वाला से पूछीं । लोटा के बारे में विस्तार से बतइहें । अब शहर के संस्कृति में लोटा के परयोग नइखे । बोतल संस्कृति में लोटा के आस्तित्व ऐसे लापता भईल बा, जईसे की घोड़ा के माथ से सिंघ... भोर के पहिला काम करे खातिर भी अब लोटा के जरुरत नइखे । विदेशी शौचालय बा... जवना में नल आ टोंटी लागल रहेला |  बटन दबायीं... त पानी के अस फुहार निकली, की राउर सब कईल-धरल पे पानी फेर दी । लोटा वाला झंझट नइखे । ना हाथ माँजे के झंझट... ना लोटा माँजे के... सब एटोमैटीक । विदेशन में त इ पानी के भी जरुरत नइखे, हमनी के जवना के विद्या भा  सरस्वती कहि ला जा ओही कागज के इस्तेमाल करके सरब सती कर दियाला ।

बाकि कुछो होखे... हम भोजपुरियन के त पहिचान ह लोटा । एगो प्रसिद्व गीत के तर्ज पर कहब त "जीते लोटा मरते लोटा, देख तमाशा लोटे का"... बबुआ के जनम भईल त फुल्हा लोटा के मांग भईल । गरम पानी से भरल लोटा सउर में रखायिल। आ बबुआ के बाबा, जब भगवान के दुवरा गईले त लोटा एहिजे छोड़ गईले । त बबुआ के बाबु, पीपर के पेड़ पे माटी के लोटा टांग अइले... की के जाने भगवान किहाँ मर-मैदान जाये खातिर लोटा भेंटाई कि ना । त जनम से मरण तक लोटा संगे रहेला । टीवीया पे रामाएन देखले होखब त ध्यान होखी... ब्रह्मा जी कहीं जास त साथ में लोटा जरुर राखत रहन, टोंटी आ हैंडलवाला लोटा । पुरनिया आदमी ना जाने कहाँ जरुरत पड़ जाये । उहे हाल ऋषि मुनि लोग के भी रहे, जहाँ जास लोटा साथे । पानी पिए से धोवे तक के व्यवस्था साथ रहे ।

अब लोटा रखेवाला के गंवार मत बुझब... !!! बड़ा चलाक होले आ लोटा के उपयोग हर तरीका से करे के जानेले। अब उदाहरण लीं अनगुत्हीं उठ जइहें सिवान तरफ जाये खातिर... अरे तहसीलदारी में ना... दैनिक किरिया करम करे खातिर । त भर लोटा पानी एक हाथे झुलावत बधार आ सिवान ओरे ओरिईहें (जयिहें)... आ ओने से लवटत ओही लोटा में केहू के खेत के मटर भा कवनो तरकारी, कुछो ना त एक लोटा माटिये भरले अइहें । अब हमरे बाबा, रोज ओने से माटी भर के लावत रहन आपन लोटा में... बरिस भर में दुआर पे चबूतरा बाँध देलन । दुसरका परयोग बा हथियार के तौर पे । बेपेनी मिसिर लायिकायींए से बड़ बदेल, नवका शादी भईल रहे । बाकि मेहरी के कुटमस करे में आगे... आखिर कब तक सहो, एक दिन उ मेहरारू फुल्हा लोटा अस चलवलस जैसे कि हैदर अली के तोप के गोला अंग्रेजन पे गिरल...!  बेपेनी मिसिर के निचिला जबड़ा आज तकले बायें करवट लेले बा...| तिसरका परयोग बा फुल्हा लोटा से इस्तिरी देवे के । अब गाँव में बिजली के सुविधा त अब आईल बा, उहो कहे खातिर... शहर में त बा की बटन दबायीं, इस्तिरी गरम हो जाई आ कुरता मिरजई के सिलवट के अइसन सपाट बनायी कि हेमा मालिनी के गाल ओइसन चिकन ना होई... बाकि गाँव में मिरजई के सिलवट सपाट या त तकिया तरे रख के करीं ना त लोटा गरम कर के इस्तिरी करीं । फुल्हा लोटा में लकड़ी के जरत कोइला डाल के कपडा पे इस्तिरी करीं त एक-एक सुता अईठन छोड़ के अस सीधा हो जाई जैसे कि मोरचा पे जवान...।

हमार गाँव में जब केहू किहाँ कवनो मरनी भईल त एह लोटा के महातम बढ जाला। मय गाँव के नेवता दियाइल बा की फलनवा बाबु किहाँ भोज बा। आ बभनटोली में एह दिन त जैसे त्यौहार के माहौल रहेला। मय टोला के लोग भोरहीं से लोटा ढोवे लागी। घर से बधार आ बधार से घर... माने आलम इ कि एक लोटा घर में घुसत बा त ओने से दोसरका निकलत बा । कहल जाला कि बाबु कुँवर सिंघ त पतल के दोना पानी में बहा के अंग्रेजन के डरा देले । अब एह बभन-टोल के लोटा के आवागमन देख के त गामा पहलवान के भी आपन पाचन शक्ति पे चिंता हो जाई । आ लोटा के संख्या देख के फेर से महमूद गजनवी कहीं आक्रमण मत कर देवे की हेतना लोटा भेंटाई... त अफगान के सभे हाथ में लोटा हो जायी। खैर गली के मुहँ पे गंगाराम नाऊ लउकल।

"बस करीं ए बाबा... ! लोटा के मुंह जजिमान किहाँ फेरीं, बीजे भईल बा " (भोजन खातिर पहिलका बोलाहटा न्योता आ भोजन के समय के दुसरका बोलाहटा बीजे भा विजय कहाला)।

एतना सुनते घरभरन मिसिर लगले चिचिआये - "ए बिनेसर ! ए बेपेनी !!! कहवा बाड़ जा ? चल बीजे भईल बा, आ नन्हका कहवा बा ? का कहत बाड़ स्कूल गईल बा...!!! ओकर माई जानत रही की आज अंगेया बा त काहे के स्कूल भेजली हा !?  केतना नीके तरी पूरी-बुनिया खाईत... आ लोटा में भर के रसगुल्ला घरे ले आईत । ए बबुआ बेपेनी ! बोला ले आव ओकरा के स्कूल से..., पढाई काल कर लिहें..., जजिमान के मरे के... आ भोज मिले के मौका बेर-बेर ना आवे... !!!

मय बीस घर के ब्राह्मण बाले-बच्चे चल देले जजिमान किहाँ जीमे। रास्ता में टेंगर मुसहर के छोटकी बेटी सूअर चरावत रहे, एतना जाना के एके साथे लोटा लेले देख के खूब खुश भईल, आपन माई से कहलस-
"आज सब बभनन के पेट ख़राब हो गईल बा, जात बानी सूअर लेके ओनही । आज सभे सूअर अघा जयिहें।"
ओकर माई ठठा के हंसल- "अरे बिहुनी...! इ बभनन के पेट नइखे खराब, जजिमान किहाँ जीमे जात बाडन सन । देखत नईखीस... की हाथ में लोटा आ कान्ह पे गमछी बा । दबा के खयिहें सन आ लोटा के पानी से तह लगयिहें सन । गमछी में छाना बाँध के आई जवना के घर के जनाना लोग टूका-टाकी खा के आपन सरधा बुता लिहें। सूअर आज ना काल हंकिहे... ।"

अब हमार गाँव में तरह-तरह के लोटा रहे । हमार बाबा स्टील के लोटा राखत रहन । पूजा पाठ करावे में विद्वान, कवनो जजिमान के काज में फेरहिस्त(लिस्ट) में लिखलन की स्टील के लोटा चाहीं दू लीटर पानी आंटेभर । खैर जजिमान का करो... मरल बाप के सरग में पानी इहे पंडीजी के मुँहे मिली, एह सोच के बड़हन भारी स्टील के लोटा देलस । जजिमान के बाप सरग में अघयिले की ना उहे जानस, बाकि हमार बाबा अघा गईले । सबेरे से साँझ तक लोटा साथे रहत रहे । हमार दुवार पर के चबूतरा उहे लोटा के देन ह ।

बाकि सबसे नीक लोटा रहे बिनेसर मिसिर के घरे । फुल्हा लोटा अस बजनगर की छोट लईका से उठे ना । इ लोटा बिनेसरबो के माई के नईहर के रहे । जनमजुगी लोटा... जवना के बिनेसर ढोवत रहन । बरिसन बितला के बाद भी उ लोटा के चमक अस की लोग सोना के भरम में पड़ जास... बिनेसरबो के माई गवने लोटा पेठवली आ साथे कहाव भेजवली की- "मईयां रे ! एह लोटा के आम के खटाई भा इमली के छोड़ कवनो चीज से मत मंजिहे..."

लोटा के चमक से बिनेसर मिसिर के सीना चौड़ा रहत रहे.. बाकि इ चमक आस-पड़ोस आ गाँव जवार में खटकत रहे । अब बात बा, बेपेनी मिसिर के बियाह के पहिले के। अरे लीं परिचय ना करईनी ह पहिले, उहे...!!! बेपेनी मिसिर, बिनेसर के छोट भाई हंवे आ पंडित घरभरन मिसिर के छोटका लईका... त बबुआ बेपेनी जईसहीं दसवां क्लास के चउकठ तक गिरत पड़त पहुचलन... त बियाह जुकुत लईका देख अगुआ के साथे पछुआ भी जुटे लगले... घर में रोज किसिम किसिम के तियना-तरकारी के सुगंध उड़े । अगुआ के गोड़ धोवे से लेके उनकर बिदाई के बेर ले उ फुल्हा लोटा दलान में चमकत रहे | अब बबुआ बेपेनी मिसिर पसन्द आवस भा ना आवस, बाकि एक बार अगुआ के नज़र पे लोटा चढ़ल त चढ़ल | खैर बेपेनी मिसिर के बियाह हो गईल बाकि तब तक उनका घर से उ लोटा के नामो-निशान मिट गईल। एकरो पीछे भी एक किस्सा बा-

एगो अगुआ आईल रहे रिश्ता करे खातिर । उहे लोटा रखायिल दलान में । कुंडली के गणना मिलावल गईल छतीस में से बत्तीस गुण मिलल । अब मनना के बात रहे...  त अगुआ जी लगले सकारे । अपना मनही कहले- जोड़ा बैल के साथे एगो धेनुहा गाय आउर पचास हजार...! तब बबुआ के बाबा के डिमाण्ड की इ लोटा के जोड़ा लगायीं..., तबे केवाड़ी के पीछे से उनकरे बूढी फुस्फुसयिली की एगो चांदी के गुड़गुड़ी भी चाहीं...! लईका के फुआ के कहनाम की बनारसी साड़ी ... कोरहर ! अगुआ जी के थूक सटके लागल, बाकिर खखार के कर लेले सब करार... बाकि होते बिहाने दिशा मैदान के बहाने लोटा लेके जे परयिले त फेरु राम जनकपुर ना अइले...!!! दुआर पे असरा लगवले रह गईले बबुआ के आजा, चाचा, गोतिया-नईया की अगुअवा आई त दु चार चीज आउर मंगाई । बाकि अगुअवा के गईले बड़ अबेर भईल, अनमुनाहे के गईले सबेर भईल। तब बिनेसर बो के खटका बुझाईल, लगली गला फाड़े-
"आही हो आही तीन सेर के लोटा , लेके भागल अगुअवा निगोड़ा..."
धाव धाव ए बबुआ बेपेनी अगुअवा दस कोस से अधिक ना होई गईल।
बाकि लोटा के चमक फेर कबहूँ ना लउकल। मय गाँव जवार ढूंढा गईल, ना अगुआ मिलले ना लोटा । लोग धीरज देस की जाय दीं ए बाबा ! उ लोटा राउर भाग्य में इतने दिन खातिर रहे। दोसर अगुआ आई त ओकरो से डब्लाह लोटा ले लेब।

खैर लोटा चल गईल, अगुआ के साथे। बाकि ओकर महत्व बढ गईल । एक लोटा के जाये से गाँव में लोटा के कमी ना होखे । बियाह हो गईल बेपेनी के... त बरिस भर के बाद फेरु लोटा चल गईल । बेपेनीबो के हाथे... बेपेनी के ठोर तनी बायें ओरी झुकल बा । किस्सा पहिलहीं कह देले बानी । बाकि ओह दिन से गाँव में लोटा के इ उपयोग देख के आउर लोग संभल गईलें । आ धीरे धीरे सब फुल्हा लोटा बक्सा में रखा गईल... आ हलुकावाला स्टील के लोटा चमके लागल।
अब लोटा चाहे फुल्हा होखे, पीतल के होखे, स्टील के होखे भा अल्मुनिया के हमनी के गँवई संस्कृति के अभिन्न अंग बा । जवना के महत्व के नकारल ना जा सके । आ लोटा के चमक अइसन ह की देख के राउर चेहरा भी चमक जाई । त प्रेम से लोटा मांजी, काहे से की लोटा अइसन चीज ह जेतने मांजब ओतने चमकी ।

(इ व्यंग्य के पृष्ठभूमि, प्रकाश उदय भईया के कविता संग्रह – “बेटी मरे त मरे कुंआर” आ समकालीन भोजपुरी साहित्य में छपल उनकरे एक कहानी से प्रेरित बा- शशि )