Friday, August 12, 2022

नून बिना फीका...

 

भोजन में नून ना रहे त स्वाद बेसवाद हो जाला। केतनों बढ़िया मर-मसाला से चटकदार भोजन रहे, नून ना रहे त सब फजूल बा। ई उहे नून ह जवन समुंदर के पानी में घोराइल बा आ जवना के किसान आपन देह गला के लोग के जीभ के स्वाद बढ़ावेला । किसान के देह के पोरे पोर से टपकत पसीना एह निमक के गुन बढ़ा देला । एकरा के असही रामरस ना कहाए...  एतना सहजे मिलेवाला निमक कबो एतना सहज ना रहे। ई सफेद निमक के इतिहास बड़ा लहूलुहान बा। एह निमक के पाछे यूरोप के देशन में कई गो लड़ाई आ ना जाने केतना जान माल के नोकसान भइल। इतिहास में लोग एकरा से व्यापार में लेनो देन करत रहे।  एह निमक के ई महातम कि लोग एकरा के पबितर माने। निमक के इज्जत रहे। लोग एकरा के आपन आन मानत रहे आ निमक के किरिया खा के जान दे देत रहे। निमक खा के ओकर आन रखे वाला आ बदल जाये वाला खातिर बाद में कुछ शब्दन के रचना भइल।

भारत में निमक के उपयोग कई सदी से होता। सिंध के पहाड़ से निकलल सेंधा निमक जहाँ उत्तर भारत के स्वाद बढ़ावे ओहिजे दक्खिन भारत के निमक समुंदर से मिल जात रहे। किसान खेत में समुंदर के पानी के भाप बना के उड़ा देस आ जमीन में बांचल निमक के बटोर लेत रहन। ई निमक सबके खातिर कम दाम पर उपलब्ध रहे। देश में जब ब्रितानवी शासन भइल त उ जर-जमीन पर कब्जा करत करत देश के खनीज-संपदा के दूहे लागल। एहिजा के धन संपती ब्रिटेन भेजाये लागल। एहिजा के लोगन से खेती बारी आ जमीन पर अंग्रेज़ सरकार रैयत वसूल करे। कवनों खुला व्यापार के पाबंदी लाग गइल। अगर व्यापार करे के होखे त अंग्रेज़ सरकार के खजाना में कर चुकावे पड़े। हालत ई कि आपने उपज के खाये खातिर कर देवे पड़े। एह अंगरेजी सरकार के जुलुम आउर बढल जब उ निमक के बनावे आ बेचे के सब अधिकार अपने ले लेलस। निमक किसानन के रोजी रोटी त मरइबे कइल, आम जनता के रोटी संगे निमको पर आफत आ गइल। अंग्रेज़ सरकार आपन बनावल निमक ऊंचा दाम पर बेचत रहे । भारत में यूरोप के बनावल निमक बेचाए लागल जे कवनों गरीब खातिर पहुँच से बाहर रहे।

19वीं शताब्दी के शुरुआत में एह निमक पर लगावल कर आ एकर व्यापार के लेके भारत के लोग बिरोध कइल। धीरे-धीरे ई विवाद बढ़त गइल। 1917 में गांधी जी बिहार के नीलहा किसानन खातिर सत्याग्रह कर के जीत चुकल रहन। ओकरे बाद अंग्रेज सरकार उनकर सत्याग्रह आंदोलन के आगे झुकल आ चंपारण के किसानन के दशा सुधरल। गांधी महतमा में लोग के आपन उद्धार करे वाला लउकल। निमक किसानन के दुर्दशा आ निमक पर कर के बात उनका बहुते अखरल। 1930 के शुरुआत में गांधी जी एह निमक कर के बिरोध करे के फैसला कइले। निर्णय भइल कि गुजरात के साबरमती आश्रम से दांडी के समुंदर तट तक पैदल जतरा कइल जाई आ आगे के रणनीति ओहिजे तय होखी। 


गांधी जी के साथ साबरमती आश्रम से कुल 78 लोग मरद मेहरारू के झुंड निकलल। टोली में केहू एकतारा लेलस त केहू ढोलक... गांधी बाबा दूल्हा बनी के आगे आगे चलले । साबरमती से दांडी के 395 किलोमीटर के जतरा में ई टोली जहां से गुजरे लोग साथे हो जास। 12 मार्च से शुरू भइल ई जतरा आपन 24वां दिन 6 अप्रैल के अपना साथे 50,000 जन समूह के  दांडी पहुंचल। लोग एह जतरा के देख के कहे कि जइसे उज्जर नदी बहत जात होखे। एकर कारण ई रहे कि उज्जर खादी पहिरले 50,000 मरद मेहरारू के टोली सत्याग्रह के नदी  बन गइल रहे।


6 अप्रैल के बिहान गांधी जी समुंदर के किनारे से मुट्ठी भर निमक उठाके निमक कानून पर लागल रोक के तूड़ देले आ लोग से आवाहन कइले कि अब निमक बनावल जाव। अंग्रेजियो सरकार दू महिना तक आँख मुंदले रहल आ कवनों धर-पकड़ ना भइल। गांधी जी आ टोली समुंदर के किनारे किनारे दक्खिन ओर बढ़त रहे आ निमक बनावत रहे। दांडी से 40 किलोमीटर दक्षिण मे धरसाना नाम के एगो जगह बा ओहिजा निमक के बनावे आ सफाई के कारखाना रहे। ओहिजा एगो सत्याग्रह के जोजना बनल आ उहो ओह घरी के कांग्रेस पार्टी बनवलस। एकर खूब प्रचार प्रसार भइल। बात अंग्रेजन तक चहुंपल बाकी कार्यक्रम से पहिलहीं गांधी जी के गिरफ्तारी हो गइल। फेर त जंगल में आग लागल, देश आ विदेश में ई निमक आ एकर सत्याग्रही लोग के चर्चा छप गइल। ब्रितानी सरकार के चोट पर पहिला बेर नून रगड़ा गइल रहे। ई आंदोलन एक साल चलल आ लगभग 60 हजार लोग जेल गइले । केतना काल कालवित भइले आ केतना लोग अंग्रेजन के जुलुम सहले उ बेहिसाब बा। बाकि एक साल बाद 1931 में आपन निमक के विजय भइल।

एकरा बाद 1931 के सितंबर से दिसंबर तक लन्दन में दुसरका गोलमेज़ सम्मेलन होत रहे आ ओहमें कांग्रेस के ओर से खाली गांधी जी अगुवाई कइले। ओह सम्मेलन में उ भारत के पूर्ण स्वराज के मांग कइले। बाकि ब्रितानी सरकार के घाव पर नून अबहीं लागले रहे , उ तिलमिला गइल आ गांधी जी प्रस्ताव नकार देलस। 

15 अगस्त 1947 के देश आजाद भइल आ देश आजादी के पचहत्तरवां (अमृत महोत्सव) मना रहल बा। एह आजादी के आवे में ना जाने केतना आंदोलन भइल आ केतना खून बहल बाकि बिना निमक के ई सांचहूँ फीका रहे। ना निमक के मोल बुझाइत ना आजादी आइत।

त अगिला बेर निमकदानी के उज्जर निमक के देखीं त एकर लाल इतिहास के जरूर इयाद करीं। आ कम से कम ओह 60 हजार स्वतन्त्रता सेनानी के आँसू आ दर्द के अहसान मनायीं कि आज ई निमक राउर स्वाद बना रहल बा।   

-   शशि रंजन मिश्र