भारत की सरकार कहें तो, है हिजडों की फ़ौज,
देश के जनाजे में भी, सब उडा रहे हैं मौज |
जहाँ हिजडों का होता नाच, संसद है वो मंच,
देश द्रौपदी हो गया, दुशाशन हैं सब सरपंच |
किन्नरों के नृत्य में, क्या मिला कभी है ताल?
गीत अगर मालकोंस है, ढोलक पर बजे धमाल |
देश विभाजन, देश पर कब्ज़ा चिंता करता कौन?
जब सुम ही मंत्री भये, फिर शैतान रहे क्यू मौन |
इंच इंच जमीं जा रहा, जैसे गलित हो कुष्ठ,
गर्दन में तलवार फंसा, प्रजातंत्र है सुस्त |
"देश द्रोपदी हुआ दुषासन है सारे सरपंच"
ReplyDeleteमनोरंजक शब्दों के माध्यम से विकृत हो रही स्थित की तरफ इशारा - सोच, मनन और समाधान नितांत आवश्यक है
शशी भाई ,
ReplyDeleteसार्थक और आकर्षक शब्दों के माध्यम से देश कि राजनीति का असल का चित्रण हुआ है
सहि मायने मे बहुत बहुत उम्दा प्रस्तुति.....है
आशिर्वाद
भई गुस्सा बहुत है....
ReplyDeleteलेकिन शब्द बहुत अच्छे दिए हैं!
गीत अगर मालकौंस है, ढोलक पर बजे धमाल!
पर किन्नरों का अपमान कर दिया आपने गाहे-बगाहे!