Sunday, November 15, 2015

छठी मायी

Krittika
http://www.astrovikalp.com/nakshatrastar-3-krittika-2640-mesha-1000-vrishabha/

गोड़ लागीं ए बाबा, कहंवा लपकत जात बानी?
हमनी किंहा, पंडी जी लोग के परनामो कईला के अजिबे ढंग बा । अब  “गोड़ लागीं ए बाबा...” से त इहे नु कहाई ।एक मने बाबा के गोड़ लगाई आ दोसरका मने बाबा से गोड़ लगवायीं  ।अब गाँव में एह तरह के बतकही चलत रहेला ...
हमार गाँव के नाव ह –पवना...  आ एह गाँव में एगो गान्ही चउक बा । पता ना गान्ही बाबा एहिजा कईसे पहुच गईले... इतिहास में त नईखे,  बाकी इ गान्हिये चउक कहाला । एहिजा मय गाँव के स्थिराह लोग मुफुत के मिठाई-जिलेबी  के गन्ह (गंध) लेवे खातिर जुटल रही । आ आवत जात लोगन के टोकत रही । इहे बड़का मनोरंजन रहे... एही मनोरंजन में आज हम धरयिनी ।
एक जाना कहले- ए बाबा, सोहराई (दिवाली) बितल आ अब छठ आईल ।
बाकी एह छठे के सोच के हमनी के बुद्धि भरमायिल...
सुरुज बाबा मरद हवें... चान-सुरुज सभे आकासे में रहेले,  बाकी इ छठी मईया कवन देवता हई ।इनकर भेद त रउरे बुझायीं ।
बड़ फेर भईल ए भाई... इ बाबूसाहेब लोग के आज बढ़िया मसाला भेंटाइल...
कहनी- ए बाबु साहेब ! काल भोरे-भोरे, नहा धोकर हमारे दुआर पे आइये ।सीधा आ दक्षिणा जरुर रखियेगा... पान-सोपाड़ी आ छुट्टा फुल के साथे ।
उहो बाबूसाहेब उजबक... होत फजिराहे नहा धो के  आ गईले ।
कहनी की – सुनी कथा त सूना देब बाकी एह कथा से पहिले इहो सुनी –
“कईली बरतिया तोहार ए छठी मईया
तोहार महिमा अपार, ए छठी मईया”
पकड़ी के फेंड़ (पेड़) पर भोंभा बाजत रहे ।हमनी के चिहायीं जा, एह भोंभवा में से कईसे आवाज आवत बा !!! शहनाई के जईसे एकरो रूप बा , बाकी तनी बड़हने बा... शहनाई त मुंह से फूंक के बजावल जाला ।अब एह भोंभा के पोंछ पे बटखरा जईसन कुछ बाँधल बा ।एहिजा के फूँकत बा !!?? गांवे एगो बाबूसाहेब के बरियात आईल रहे ।दुआर पे एक कोना में चौकी पे दू जाना शहनाई आ एगो तबला बजावे बयिठले ।लायिकायीं के अकिल, एगो आगलगावन चाचा लईकन के उस्का देलें की शहनाईवाला के सोझा अचार खा स ।हमनियों के चांगड़... आम के खटाई लगनी जा चाटे ।अब उ शहनाई वाला फूंक त बरियार मारे बाकी आवाज आवे फें फें... भईल शिकायत ।लउर लेके एक जाना हमनी पे टूटले ... बाकी हमनी के अन्हिया बैताल हो गईनी जा ।
उहे अमवा के खटईया वाला खेल एहो भोंभा पे करीं जा, बाकी एकरा सुर में कवनो विघिन ना पड़े... एके रागे गावत जाए ।भोंभवा के पीछे देखीं जा की कवनो मरद मेहरारू घुसल त नईखन...
लीं बात शुरू कईनी ह छठी माई के गीत से भोंभा के बखाने लगनी ।आ रउरो मुंह बा के सुनत (पढ़त) जात बानी... टोकनी ह काहे न !!??...
अच्छा त अब ध्यान देब... हम भटकीं-त टोकब... कुछो ना बुझीं त – रोकब !!!
त एक बार जयकार लगायीं कि - हे ! छठी माई किरिपा बरसायीं ।
सुमीर लीं भोले बैजनाथ के नांव... अमुक क्षेत्रे, अमुक गाँव... ले लीं आपन गोत्र-पित्र के नाव
एह गोबर गणेश पे पान फुल सोपाड़ी चढ़ाईं... संगे सवा रोपेया दक्षिणा ।
त बात करत रहीं एह छठी माई के... लयिकायीं से ईगो सवाल कुलबुलात रहे ।पूजा होत बा सुरुज बाबा के त इ छठी माई के हई !? सुरुज बाबा त रथ पे बाड़े, जवना के सात गो घोडा खींचेला... इ छठी माई कहीं लउकत नईखी ।इहे सवाल हम आपन बाबा से पूछनी ।हमार वेदव्यास उन्हें के... बाबा बतवनी हमरा के जवन कथा- उहे हमरा मुखे सुनी –
कथा बा शिव पुराण के... हँ हँ हँ ... उहे भोले बैजनाथ के कथा बा ।
उनकर छोट लईका के नाव रहे स्कन्द । लयिकायींयें से बड़ चंचल ... कोरे में रहन बाकी उत्पात के कमी ना रहे ।स्कन्द के माई रही गउरा... गईली एक दिन नदी के कछारे नहाए ।
आ एह लईका के किनारे कपड़ा में लपेटी छोड़ गईली ।लईका रहे उत्पाती एक ओरे लुढ़के लागल ।किनारहीं  नरकट के झुरमुट रहे.. लईका ओही में घुस गईल... ठंढा छांह मिलल त घोर नींद घेरलस ।
ओने गउरा के लईका ना मिलल त रोवत पीटत घरे गईली की कवनो शेर बाघ भा सोंस घड़ियाल लईका ले गईल ।
घरी भ बीतल होई की छव गो सुनार मुनर राजकुमारी आकास से उतरली आ नहाये लगली...
लईका के भूख लागल त जागल आ रोये लागल ।
लईका के रोवाई सुन के इ छौ जानी नरकट के झुरमुट म गईली, त देखत का बाड़ी- बड़ सुनर लईका, भूखे बिलखत बा ।
एह लोग के दया आईल त सभे जानी आपन आपन दूध एह लईका के पिअवलस ।लईका चुप लगा गईल ।
बोलीं – जै भोलानाथ !
इ छौ बहिन लोग कृतिका नक्षत्र के तारा लोग रहे, इनका लोग के भी कृतिका ही कहल जाला  ।कृतिका नक्षत्र , सुरुज भगवान के सबसे नजीक होला । इ लोग सुरुज भगवान के प्रार्थना कईल कि अब इ लईका हमनी के लईका ह ।अब रउरा एकरा के आशीर्वाद दिहीं ।
http://www.bibliotecapleyades.net/universo/passage_change.htm
सुरुज बाबा बड़ा प्रसन्न... लईका के बुद्धि-विद्या आ अमर होखे के वरदान देले ।
ध्यान लगा के देखले त सभे कुछ मालूम हो गईल कि , इ लईका भोला नाथ के ह...
कहले इनकर नाव त स्कन्द ह बाकी तोहर लोग के लईका भईला से अब इनकर नाव कार्तिकेय होयी ।
बोलीं – जै भोलानाथ !
त अब गउरा के साथे इ लईका के छौ माई आउर भेटा गईली । इहे छठी माई हई ।
त परेम से बोलीं – जै हो छठी माई । जै हो सुरुज बाबा...
जईसे छठी माई एह लईका के लालन पालन करके ओकर भूख मेटवली ।ओइसहीं हे ! छठी माई हमनियों के लईका खातिर सुरुज बाबा से वरदान मांग दीं ।हमनियो के लईकन के बरदान दीं ।

लीं कथा ख़तम हो गईल । हमार दक्षिणवा निकालीं ।

Thursday, November 12, 2015

गोधन : औरतन के मानसिक रोग से बचाव के अनुष्ठान



(इ लेख भोजपुरी ई-पत्रिका आखर के नवंबर -2015 के अंक में छप चुकल बा )
https://www.flickr.com/
मानव शरीर रचना बड़ा जटिल बा । ओहमें भी मानव मस्तिष्क (दिमाग) के रूप रेखा आ बनावट अईसन कि आज भी वैज्ञानिक लोग एकर रहस्य ना बुझ पाइल । दिमाग (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित  होला आ  ई चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान ह । शरीर के सभे ज्ञानेन्द्रिय- आँख, नाक, कान, जीभ आ त्वचा सभके आवेग एही दिमाग से नियंत्रित होखेला ।  ज्ञानेन्द्रिय आ  दिमाग के बीच परस्पर दुतरफा संवाद होला,  बाकी सभे के कंट्रोल दिमाग ही करेला । संवाद के माध्यम शरीर में फैलल तंत्रिका जाल होला जे मेरुरज्जु से होते हुये दिमाग तक आयनिक करेंट के रूप में दिमाग के न्यूरान सिस्टम में पहुंचावे के काम करेला । मनोचिकित्सक लोग एही विद्युत प्रवाह (दिमागी तरंग) के एलेक्ट्रोनसेफलोग्राफी (Electroencephalography; EEG) के माध्यम से अध्ययन करके मनोरोग के पहचानेला ।  
मनोरोग  भा मनोविकार (Mental Disorder) एगो व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के उ स्थिति ह जेकरा के कवनों स्वस्थ व्यक्ति से तुलना करके सामान्य नईखे कहल जा सकत । स्वस्थ व्यक्ति के तुलना में मनोरोगी के व्यवहार असामान्य होला । मनोरोग मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन के वजह से पैदा होखेला आ एकर उपचार खाति मनोरोग चिकित्सा के जरूरत पड़ेला । मनोविज्ञान में असामान्य आ अनुचित व्यवहार करे वाला के मनोविकार से पीड़ित कहल जाला । शुरुआती साधारण दिखे वाला लक्षण समय पा के बढ़ जाला आ शरीर के नुकसान पहुंचावेला ।
मनोविकार के पाछे ढेर कारण होला जेहमें खानदानी, कमजोर व्यक्तित्व, सहनशीलता के अभाव, पहिले के कुछ बुरा अनुभव, तनाव, परिस्थिति आ असमर्थता शामिल बा । परिस्थिति जवना के सुलझावल भा पार पाइल दूभर होखे उ तनाव पैदा करेला । आ इहे मानसिक तनाव दिमाग में मौजूद रासायन के असामान्य करेला । आज के समय में तनाव समाज खाति सामान्य सा बात बा । लईकायीं में शिक्षा आ ओहमें बढ़त प्रतिस्पर्धा के तनाव, युवा में रोजगार के लेके तनाव, प्रोढ़ के भविष्य के चिंता में दिमाग तनावग्रस्त रहेला । कुल मिला के हर कोई तनाव से जूझ रहल बा । आ ई तनाव के रूपरेखा मानव समाज के बुद्धिजीवी होते तय हो गईल । आदिकाल से तनाव के उपस्थिती दर्ज बा आ एकर इलाज भी समयानुसार ग्रंथन में दिहल गइल बा । प्रकृति के नियम ह जवन चीज के जेतने दबाईब ओकर अंदर के ऊर्जा फफन के बाहर आवे के कोशिश करी । उदाहरण खाति गैस के गुब्बारा ले लीं । हवा भरल गुब्बारा पे अगर जरा भी कोई तनाव भा दबाव मिलल त अंदर के ऊर्जा (हवा) बाहर निकले के कोशिश करी । एही सिद्धान्त पे प्रेशर कुकर भी काम करेला । लगभग इहे परिस्थिति दिमागी तनाव के भी बा । तनाव के दूर करे के उपाय ना करब त ई नकारात्मक ऊर्जा राउर शरीर में कहीं ना कहीं नुकसान करी । तनाव के सबसे नजदीक के संबंध दिमाग से ही बा त दिमाग पहिला शिकार बनी । अब एह तनाव के कारण दिमाग के विद्युत तरंग (दिमागी तरंग) में हलचल होई । कुछ रसायन के विघटन होई आ असंतुलन के प्रभाव से मनोरोग के जनम होई ।
समाज के जब निर्माण भईल त पुरखा लोगन के वैज्ञानिक नजरिया एह तनाव आ एकर कुप्रभाव पे भी पड़ल । आज के तरह तकनीक से अनभिज्ञ समाज कवनों रोग के कारण आ निवारण के उपाय सामान्य आदमी के जीवन में रोज़मर्रा के काम बना लिहलस । गीत संगीत आ दैनिक चर्या के संतुलन से तनाव आ मनोविकार के दूर करे के माध्यम बनावल गइल । समाज के हर वर्ग आ हरेक वय खाति कुछ नियम के खोज करल गइल, जेकरा के साध के कवनों तरह के शारीरिक भा मानसिक बेमारी से बांचल जा सकत रहे । समाज में अईसन हरेक नियम के धर्म से बांध दिहल गइल । भारतीय समाज में स्थान आ परिस्थिति के अनुसार हर जगह कुछ परब, कुछ व्रत-त्योहार के रचना करल गइल ।
पुरुषप्रधान समाज में मेहरारून के स्थिति ठीक ना रहे । मरद घर के बाहर आ मेहरारू घर के भीतर ... बाहर के दुनिया से अंजान , चारदीवारी में जिनगी खप जात रहे । पुरुष वर्ग के मानसिक तनाव के कम करे खाति घर के बाहर बहुत साधन रहे बाकी चारदीवारी के अंदर मेहरारून के स्थिति दयनीय रहे । मानसिक तनाव के शिकार एह वर्ग मे क्रोध, कुंठा, अवसाद आ अंत में पागलपन जईसन मनोविकार पनप जात रहे । ई विकार सब अईसन हवें की इनका के निकालल न जाई त शरीर में रोग-व्याधि लईहें । पुरखा लोगन के वैज्ञानिक सोंच से एह तरह के रोग के रोके के उपाय मिलल लोक परब में । लोक परब जे जन जन के मुंहे पीढ़ी दर पीढ़ी पार होखे । ना कहीं कवनों वेदपुरान के वाणी ना कवनों ग्रंथ के लिखंत । बस मुंहे मुंही परब आ एकर विध... इहे लोक परब जे साधारण आदमी मे दिलो दिमाग में बस जाय आ एह परब के पाछे छुपल सोच के काम भी हो जाये । अईसने एगो लोक परब बनल- गोधन भा भाई दूज ।
कवनों मेहरारू खाति आपन माई-बाप के बाद भाई से प्रेम होला । अगर देखल जाव त उहे सबसे जादे नजदीक होला । उमिर के हिसाब से कुछ ऊपर नीचे, कुछ बराबर एगो अईसन व्यक्तित्व जेकरा पे जेतना क्रोध-खीस ओहि पे सबसे बढ़के प्यार आ दुलार । लईकायीं के खेल के सहयोगी से लेके जीवनभर तक बहिन के रक्षा करे खाति समर्पित भाई से बढ़के दुनिया के सबसे प्यार दुलार के रिश्ता कवनों ना होखे । लोग मानसिक शांति पावे खाति आपन सबसे प्रिय चीज के ही साथ खोजेला । केहु गीत संगीत त केहु नाच, केहु इयारी दोस्ती के गपशप त केहु कवनों कारज में मन रमा लेवेला । अब मेहरारून के मानसिक तनाव के इलाज सबसे नजदीक आ सबसे प्रिय रिश्ता भाई में खोजल गइल । भाई आ बहिन के जोड़ के परब बनल । एह परब के विधि कहीं लिखित नईखे बाकी एक पीढ़ी से दोसर पीढ़ी तक आपन एके रूप में आज भी प्रासंगिक बा । एह परब के माध्यम से बरिस भर के क्रोध, खीस, मानसिक अवसाद के दूर करे के उपाय बतावल गइल बा । उपाय अईसन की अवसाद के ज्वालामुखी के धधकत लावा के केहु उफान पे लाके अचानक से बरफ जस जमा देवे । अवसाद के नामो निशान मिटा देवे । मन में फेर से शांति आ सकून आ जाये कुछ अईसने विधि से अंटाईल परब के नाम ह गोधन भा भाई दूज ।
क्रोध के प्रतिकात्मक रूप ह गारी दिहल । बलवान क्रोध के निपटारा आपन बल से त कमजोर मुंहजोर (गारी) से करेलें । साल भर से कुंठाग्रस्त, क्रोध के आपन सीना में दबवले मेहरारून लोग के एह दिन छुट रहेला आपन हित-नात रिश्तेदार  के गारी दे के आपन मन के दबल भाव के निकाले के । भाई दूज के दिन होते बिहान मय मेहरारून लोग आपन भाई भतीजा, नात रिश्तेदार सबके श्रापे के शुरू करी लोग । लोग मुंह में पानी तक ना डाले । खीस में अन्न जल छोडला के प्रतीक ह । एह दिन क्रोध के हरेक तरह से उफान पे लावे के कोशिस होला । क्रोध के अंतिम चरण में लोग केहु के मउअत तक के कामना कर देवेला । क्रोध के अग्नि जब प्रचंड होखे त सामने यमराज भी आ जास त उनको के जरावे के हिम्मत होला । यमराज मृत्यु के देवता हवें, उनकरा डरे दुनिया समाज सभे देवता पितर पूजत रहेला की यमराज से भेंट मत होखो । 
गोधन के प्रतीकात्मक चित्र ,रेखांकन -शशि रंजन मिश्र
बाकी आज के दिन क्रोध आपन सीमा लांघत बा एह से यमराज से भी दू-दू हाथ करे खाति लोग तैयार बा । आज यमराज के दुर्गति हो जायी । गोबर से चौखुट बक्सा में यम-यमिन बनावल जाला । मान्यता ह की एक सैय्या पे मरद आ मेहरारू के एक दोसरा के ओर गोड़ करके ना सुते के । दूनों के बीच प्रेम के नास होला । त आज जब यमराज पे खीस उतारे के बा त उनकर मेहरारू के भी एही खीस में लपेट लियाई आ एह लोग के दांपत्य जीवन के छिन्न भिन्न कर दियाई । अब गोबर के यम-यमी त बन गईले बाकी क्रोध एह गोबर पे कईसे उतरी , बरिस भ के क्रोध जे रोयां-रोयां पेहन भईल बा हतना आसानी से उतरल मुश्किल बा । झाँवा इंटा सबसे बरियार मानल जाला, उहे ओह चौखटा में  बीचों-बीच रखाई । आ फेर सब औरत सब मिलके मूसल आ लाठी से उ इंटा के मार-मार के फोड़ दिहें, यम–यमिन के दुर्गत हो जाई । 

कपार के खीस अब धूरे धूर होके जमीन लोटत बा । बरिस भर के कुंठा, खीस, अवसाद इंटा के धूर आ गोबर में सनाईल जमीन चाट रहल बा । सारा क्रोध निकल गइल । अब जवन पर क्रोध निकाले के रहे ओकर नेस्तनाबुत हो गईल आ अब क्रोध शांत हो गइल ।  जवन ज्वालामुखी धधकत रहे ओकर सब लावा बह गइल । अब उ जगह खाली बा, समय पावते एह बुझाईल ज्वालामुखी के मुंह पे ठंढा मीठा पानी के झील बन जायी ।  काँट से भरल डाढ़ के फुनगी पे खुसबु बिखेरत फूल खिल जायी ।  
क्रोध शांत भईल, मन के शांति मिलल त सबेरे से लेके अब तक घटनाक्रम पे धेयान जायी । ओह ! आज क्रोध में ना जाने सभे के का-का कह गयिनी । आपन भाई-भतीजा सभके मउअत मांग देनी । बड़ा गलती हो गइल । एह तरह के पश्चाताप के धारा बही । सब मेहरारू लोग आपन जीभ में रेंगनी के काँट गड़ा के पश्चाताप करी- 
जवन जीभिया से गारी दिहनी ओहि जीभिया में काँट गड़ो’ ।
कंटकारी, रेंगनी , चित्र साभार-गूगल सर्च
पछतावा के बाद सब औरत लोग आपन भाई-भतिज के आशीर्वाद दिही आ बज्जरी खियाई की इनका लोग के देह बज्जर बनो । 

“कवन भइया चलले अहेरिया, कवन बहिनी देली आसीस
जिअसु हो मोरा भइया, जीअ भइया लाख बरिस”
विचार कइल जाय त क्रोध आ प्रेम, दूनों एके ऊर्जा से निकलल भावना के दू रूप ह । दूनों में कवनों मौलिक अंतर नईखे । यदि क्रोध के गहिर अभ्यास कइल जाय आ क्रोध के जेतना संपूर्णता से जीए के प्रयास करल जाय त ओतने गहिर आ प्रामाणिक प्रेम उत्पन्न होखी ।
अपना भीतर प्रेम के अंकुरण के दोसर उपाय के साथे क्रोध के अभ्यास भी एगो उपाय ह । अभ्यास के माने की  व्यक्ति के मन में खाली क्रोध के भावना छोड़ के कुछ आउर भाव मत रहे । क्रोध के भाव एतना प्रचंड होखे की यम जईसन प्रचंड व्यक्ति भी एह क्रोध के प्रकोप से मत बांचस । मृत्यु सबके विरोधी ह , दुखदायी ह , उग्र ह, प्रचंड ह । मृत्यु के देवता यम हवें त अईसन कठोर के ऊपर क्रोध कईला पे केहु विरोध ना करी ।
भय आउर क्रोध के कारण लगभग एके बा । क्रोध के मूल उद्देश्य ह भय पे जीत हासिल  करे के प्रयास । सही मामिला में भयभीत के क्रोधी होखे के आ क्रोधी के भयभीत होखे के गुंजाइश हमेशा रहेला । आ मृत्यु से त हरेक प्राणी भयभीत रहेला । एह भय के ऊपर अगर क्रोध कइल जाय या एकर अभ्यास कइल जाय त आपन चरम पे पहुँच के इहे क्रोध मृत्यु के भय के समाप्त कर दिही । एकरा बाद मनोबल के जवन ऊर्जा मिली अगर अभ्यासी चाहे त प्रेम के रूप में केहु पे न्योछावर कर दिही ।
भाई दूज के दिन कइल जाये वाला एह अनुष्ठान में जवन ऊर्जा के प्राप्ति होला ओकर लाभार्थी भाई होले । अनुष्ठान कहे के मतलब ई कि एह परब के सब विधि मानसिक तौर पे ही करल जाला । मन के उद्वेग , कुंठा, क्रोध आ अवसाद के समन करे खाति एह से बढ़िया उपाय कुछों नईखे हो सकत कि लोक व्यवहार भी हो गइल आ मनोविकार से भी छुटकारा मिल गइल ।
संदर्भ सूची
  1. मगध की रहस्यावृत साधना- डा० रवीन्द्र कुमार पाठक
  2. मस्तिस्क- विकिपीडिया
  3. मनोरोग-विकिपीडिया