Wednesday, June 2, 2010

यात्रा वृतांत: अजमेर यात्रा में इस्कौनी बाबा के अत्याचार

कहावत बा कि देवी देवता के बुलावा होला तबे लोग तीर्थाटन पे जाला ना त केतनो नाक रगड़ लीं पहुँच ना पायिब एकर भुक्तभोगी हम साक्षात बानी बाबूजी के कॉलेज के छुट्टी होखे के रहे एह जून में प्लान बनल कि वैष्णोदेवी के दर्शन कईल जाई इंटरनेट पे तमाम सुचना देख लेनी, टिकट भी मिल जाईत बाकी कुछ अईसन संजोग बनल कि यात्रा रोके पडल शायद माता रानी के बुलावा ना रहे खैर बुलावा आयिल ख्वाजा गरीब नवाज के अचानक मन में आयिल आ हम टिकट बुक करा लेनी अजमेर आ लगले पुष्कर में दर्शन भईल मन प्रसन्न रहे बाकि जून के गर्मी आ मंगलवारी व्रत में देह के दुर्दशा होत रहे ओही शाम फिर दिल्ली लौटे के प्लान, मतलब शरीर के आउरी दुर्गिंजन सुविधा खातिर दुगिना भाड़ा देके एसी बस में टिकट लेनी कि यात्रा कुछ सकूँ वाला रही, बाकी सारी सुकुनियत के हवा निकल गईल जब एसी बस में इस्कॉन मंदिर के पुजारियन के अत्याचार भयिल पढ़ीं एह यात्रा वृतांत में-
जून के पहिला तारीख के दर्शन के निश्चित भईल रहे ३१ मई, सोमवार के रात ९ बजे ख्वाजा के नाम लेके यात्रा शुरू भईल बस डिलक्स रहे बाकी यात्रा कुछ ज्यादे ही डिलक्स भईल गरम हवा के थपेड़ा आ रेट-माटी-धुल के विषपान करत सबेरे अजमेर पहुंचनी, होटल में सामान रख पुष्कर दर्शन के प्लान बनल विश्व में एकमात्र मंदिर जवन ब्रह्मा के समर्पित बा, दर्शन कईनी लहकत घाम में १-२ आउरी मंदिर के दर्शन करके २ बजे दुपहरिया में अजमेर होटल पे वापसी भईल आजे ख्वाजा के पास भी हाजरी हो जयित त आउरी एक दिन रुके के कवनो मतलब ना त वापसी के टिकट भी बना लेनी रात के १०.३० पे बस रहे होटल में चाय पानी करते धरते ४ बज गईल तैयार होके खवाजा के दरबार में हाजिरी देनी दरगाह से वापस होतहोत ७ बजत रहे खाए पिए के त कुछ ना रहे, होटल में फेर से नहा धोके बस पड़ाव खातिर निकल गईनी १० बजे बस आयिल त बैग के यथास्थान रख के आपन सीट पकड़नी एसी के ठंढक में दिनभर के थकन भुलाये लगनी बस मात्र आधा भरल खुलत खुलत ४ गो इस्कॉन मंदिर के भक्त लोगन के पदार्पण भईल उ लोग पीछे के सीट पकड़ लेले लोग जयपुर तक के यात्री रहन जा खैर बस चलल हमार कपार के ठीक ऊपर एसी के हवा खातिर जवन छेद होला ओह में एगो टूटल रहे , त बस के पर्दा के ओह में कोंच देनी आ अँधेरा करे खातिर आपन रुमाल के आँख पे बाँध लेनी यात्रा शुरू भईल
रात के एक बजे जयपुर आयिल त नींद खुलल यात्री लोग में खलबली भईल उतरे खातिर, बस के पड़ाव १५ मिनट खातिर रहे पिछे के पुजारी लोग के एहिजा उतरे के रहे उ लोग हमनी के सीट से आगे निकलल त बहुत ही अजीब गंध आयिल बुझाईल केहू तीन दिन के पेट में के पचावल हवा उत्सर्जित कईले बा हमर आँख प के रुमाल नाक पे आयिल आउरी दोसर लोग के हाथ नाक पे खैर २ मिनट में सभे कोई उतरल हम भुखासल रहीं त सामने के होटल में चाय लेनी पहिलके घोंट पे हल्ला बुझाईल मामिला का बा देखे खातिर बस भी पहुंचनी त मालूम भईल कि एगो पुजारी जी जवन करीब ४० के आस पास होइहें बस में ही निवृत हो गईल बाड़े आ आपन धोती भी खराब कर देले बाड़े उ त बस से उतरते गायब होखे के फेरा में रहन, कि एकजना उनका के ध लेले लोग उनकर फजीहत करे ए शुरू कईलन त उ इ कहत निकल गईलन –
“मलमूत्र विसर्जन पर किसी का अधिकार है क्या?”
खैर अब आफत हमनी के रहे, एसी बस चारो तरफ से बंद, आ पीछे के सीट पे पुजारी जी के चउका पुरल, गंध के मारे केहू जात ना रहे आधा घंटा बित गईल, तब दोसर गाड़ी के मंगावल गईल उहो गाड़ी दोसर जगह से आवे के रहे आउरी १ घंटा विलम्ब के सुचना पे हमनी के मन मशोस लेनी जा आपन आपन सामान केहू तरह निकाल ले सभे कोई स्टैंड पे बयिठल ओह सज्जन के प्रति लोगन के हास्य और क्षोभ के मिश्रित भाव फूटे लागल हमहूँ त्रस्त रहीं त हमहूँ ओह चौपाल में शामिल भयिनी अब ओहिजा का का बयान बाजी भईल गौर करीं जा-
पहिला- “ इ पंडित लोग साले इतना खाते क्यूँ हैं कि पचा नहीं पाते?”
दूसरा- “अरे मुफ्त का धन होगा तो आप भी ऐसे ही खायियेगा “
तीसरा- “स्साला, बच्चा को भी पेशाब लगता है तो कम से कम दो बार बोलता है ये बोल नहीं सकता था गाड़ी कहीं कड़ी हो जाती ”
चौथा- “ अरे शरमा रहा होगा कि रोड किनारे कैसे जायेंगे !!! इस्कॉन के पाखानों में ततो फ्लश लगे हैं यहाँ कहाँ मिलेगा”
पांचवा कंडक्टर से- “ यार आगे से नोटिश लगा दो, कि बस में सवार होने से पहले , फारिग होएं ”
कंडक्टर- “ इ कांड हम अब तक के जिनगी में पहली बार देख रहे हैं”
पहिला- “खलिश घी का तरमाल खायेगा सब, देखे नहीं देह कयिसा मोटा के रखा है “
तीसरा- “ अरे उसी घी कि चिकनाई में निकल गया होगा.... हा हा हा बेचारा के कोई दोष नहीं है”
हा हा हा हा हा...

अब हंसी के अईसन फुलझरी छुटल कि सब कुछ भुला गईनी
एक जाना कहले कि हम एकरा के इन्टरनेट पे सनसनीखेज न्यूज बना के पेश करब ढेर बतकही भईल जवना के एहिजा लिखल मर्यादा से बाहर हो जाई... संक्षेप में इहे कहब कि उ पुजारी जी अपना साथे सभे ब्राह्मण के पारिवारिक रिश्ता के बखिया उधेड़वा देले क्षमा चाहब कि ओकर विस्तृत वर्णन एहिजा संभव नईखे

खैर दोसर बस आयिल, एह हास्य-क्षोभ तरंग में २ घंटा के विलम्ब हो गईल रहे, गाड़ी तुरंत खुलल अब हमरो भीतर के मिसिर बाबा कुलबुलाये लगले त घटना क्रम के फरमा दर फरमा आपन मगज में सहेज लेनी विचार एहे भईल कि दिल्ली पहुँचते कम्पूटर के कीबोर्ड खटखटाईब आ शाम तक रुआ सभे तक एह मजेदार यात्रा वृतांत के राखब बाकी संभव ना भईल थकावट कुछ विशेष रहे, मित्र के घरे २ रोटी नास्ता कर के आपन कमरा पे पहुंचनी त फेर सब कुछ भुला गईनी दिन के १० बजे से शाम के ६ बजे तक निर्विघ्न निद्रापान कर के तरोताजा भयिनी त इ घटनाक्रम के लिख पयिनी

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