Wednesday, May 18, 2016

छपास कवि




मंचीय कवि ,
हईं छपास
ना छपे त
रहीं उदास 

एकर ओकर
जेकर-तेकर,
छपत खाली
छोड़के हमर 

अब ई लाज
कईसे पचाईं ,
जवन छपल बा
उहे गोहरायीं 

लाइक कमेंट के
माला चादर ,
टैगवालन से
स्वीकृत बा सादर 

~शशि रंजन मिश्र