Wednesday, September 22, 2021

कोहबर : बियाह के इम्तिहान के अंतिम पग ह

22 सितंबर 2017 ,फेसबुक पोस्ट

देहरादून में भारत के मलेटरी अकादमी बा । जहां से हरेक साल सैकड़न के संख्या में नया रंगरूट सब “भारत माता तेरी कसम, तेरे रक्षक रहेंगे हम” के नारा लगावत एगो अंतिम पग सीढ़ी के ऊपर चढ़ेला लोग ।

एह अंतिम पग के सीढ़ी उ जवानन के सफलता के सीढ़ी ह जे तरह तरह के शारीरिक आ मानसिक परीक्षा के पास कइला के बाद मिलेला । ओह जवानन के केतना मेहनत लागल बा उहे बता सकत बा जे एह अकादमी के धूर माटी के आपन पसीना से पटवन कइले होखे । एह अकादमी के राह आसान नइखे । तरह तरह के सवाल आ जवाब से जूझत, देह आ दिमाग के फुर्ती देखावत जब जवान एह दुआर पर चंहुपेला आ आगे कड़ा प्रशिक्षण के बाद के परीक्षा पास कइला पर अंतिम पग के सीढ़ी तक पहुँच पावेला ।
सन 1953 में एगो सिनेमा आइल – नया दौर । ई सिनेमा भारत के जवान लोग में एगो अलगे अलख जगवलस । समाज के बदले में जवान लोग के योगदान के कहानी बड़ा लमहर लकीर खिंचलस । एही फिलिम के साहिर लुधियानवी जी के लिखल एगो गीत बड़ा मशहूर भइल । उ गीत आजो सुनला प लोग के देह के पोर पोर नाचे लागेला । बांह फड़केला आ लोग जोश में आ जाले । गीत ह- ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का... साठ बरिस से अधिका ई बूढ़ गीत आज हरेक बरियात के प्रस्थान गीत बन चुकल बा । दुआर प बारात लागे के बा आ ई गीत बैंडवाला के पिस्टन से ना निकलल त लोग बैंडमास्टर के कोंचे लागेला कि ई गीतवा बजाव । जे लइका बियाह के उमीर तक आपन माई बाबू के जिम्मेवारी पर रहल । आपन हर चिंता फीकीर से निफीकीर जिनगी मस्ती में रहे उहे लइका के कान्हे एगो आउर ओइसने निफीकीर परानी के जिम्मेवारी आई । आ एकरा बाद दूनों निफीकीर लोग जिनगी भ खातिर फिकरमंद हो जाई । एक दूसरा के सुख दुख के खेयाल करत समाज में आपन पहिचान बनाई । बियाह लइका लइकी दूनों खातिर एगो इम्तिहाने ह । बियाह से पहिले तरह तरह के सवाल, लूर- गुर- लच्छन, योग्यता सब देखल पुछल जाला । अब एतना तरह के सवालन के बीच आगे के जिनगी में पास फेल के डर से जूझत लइका बियाह करे जब दुआर पर पहुंचल आ बैंडमास्टर के पिस्टन से ये देश है वीर जवानों का... निकलल । त ओकरो छाती चौरस हो जाला । मन के मजबूत करे में एह गीत के योगदान नकारल नईखे जा सकत ।
बियाह के एगो विध ह बरछेया भा छेंका । एहमें लइकी के घर के लोग ओकरा खातिर लइका जोहे निकलेला । लइका मिलल त ओकर देह दशा, दिमागी स्थिति,कुल खानदान सबके परीक्षण होला । सब तरह से संतुस्ट भइला के बाद ओह लइका के छेंका दियाला । माने लइका छेंका गइल अब ओकरा खातिर दोसर लइकीवाला ना आई । फेर बियाह के तैयारी शुरू होला । घर के मेहरारू लोग लइका के मंड़वे में देखि आ उहो लोग अपना अपना हिसाब से दूल्हा के इम्तिहान ले लेवे ला । सिंदूर दान आ फेरा के बाद दूल्हा दुल्हिन दूनों के कोहबर ले जाइल जाला । इहे कोहबर बियाह के कार्यक्रम के अंतिम पग ह । बाकि एह अंतिम पग तक पहुंचे से पहिले कोहबर के ड्योढ़ी पर साली लोग दूल्हा से तरह तरह के सवाल पुछेला । एह में दूल्हा के पास होखे के शर्त होला, सही जवाब ना त अंटी से रोपेया ढीला करस । एह इम्तिहान में पास भइला के बाद कोहबर में जाये के मिलेला । 1965-66 में केशव प्रसाद मिश्र के एगो किताब आइल रहे कोहबर के शर्त । बलिया जिला में दुगो गाँव बा बलिहार आ चौबे छपरा । बलिहार गंगा से उत्तर त चौबे छपरा गंगा के दक्खिन । एही दूनों गाँव के दू गो परिवार के बीच बियाह के संबंध के उपन्यास ह – ‘कोहबर के शर्त’ । एही कहानी पर सिनेमा बनल – नदिया के पार । सिनेमा के एगो दृश्य में दूल्हा के साली आपन सहेली सब के संगे कोहबर के दुआरी पर खड़ा होके क़हत बाड़ी- “ये कोहबर का द्वार है पहुना, इसे ऐसे नहीं लांघने पाओगे ! यहाँ दुआर पढ़ना पड़ता है। कोई दोहा कवित्त या सवैया सुनाओ पढ़ के...” । कोहबर में एगो देवार पर चरखुट चित्र बनावल जाला । ऐपन, हल्दी आलता से दूल्हा दुल्हन के जीवन के मंगल कामना लिखाला । दूल्हा दुल्हिन दूनों ओह मंगलकामना के पढेले आ एक दूसरा के सुख दुख के साथ के प्रतिज्ञा लेवे ले । इहे कोहबर के असली शर्त ह । कोहबर में साली सलहज लोग आ घर परिवार के मेहरारू लोग से दूल्हा के परिचय होला । हंसी मजाक के साथे लोग दूल्हा के परखेला । इहे अंतिम पग ह बियाह के सब रस्म रिवाज के ।
एह कोहबर के विषय पर उज्जवल पाण्डेय के निर्देशन में एगो सिनेमा आइल बा- कोहबर ।

10 मिनट के छोट सिनेमा – देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर के मान पर खरा उतरता । सिनेमा समाज के हर व्यवहार के आपन छोट कहानी में समेट ले ले बा । समाज में लइकी लोग के दशा, समाज के व्यवहार आ बियाह खातिर सामाजिक मजबूरी सब कुछ । गरीब घर के पढ़ल लिखल लइकी के एगो बौराह साथे बियाह सामाजिक आ पारिवारिक मजबूरी देखावता । त ओहि दृश्य में पूरा घर परिवार के सोझा आपन दूल्हा के बेइज्जती पर दुल्हिन के बिरोध आ दूनों जिनगी के जिम्मेवारी अपने लेवे के जिद कोहबर में संपरल शर्त के साथे नेयाय करता । गरीब पिछड़ा आ मध्यम वर्गीय समाज में आजो लइकी के स्थिति ओतना बढ़िया नइखे । जवान होते लइका जोह के बियाह कर द आ गंगा नेहा ल । लइका के का स्थिति बा ओह से मतलब बस अतने कि हमार लइकी ओह घर में जिनगी काट त ली । अब एह में लइकी के भाग्य, कोहबर के इम्तिहान में दूल्हा के खरा आ खोटा भइले ओह दुल्हिन के जीवन के पहिला परिचय होला । भाँवर आ कोहबर के शर्त त इहे बा कि एक दोसरा के साथ देवे के । एक दोसरा के सहारा देवे के । अब दूल्हा खोट निकलल त का लइकी ओह संबंध के नकार देवो । सिंदूर दान, कन्यादान आ भाँवर के बाद जब भेद खुलल त ओह लइकी पर का गुजरी जेकरा से बिना पुछले, बिना पहिचान करवले एगो बौराह से गांठ जोड़ दिहल गइल । सिनेमा के दृश्य में दुल्हिन के चेहरा के भाव एह बात के खंखर के चुपचाप कह देता । समाज में मेहरारून के बराबरी के आवाज के उठावत दुल्हिन आपन दूल्हा के संगे चल देत बाड़ी । “आमवा से मीठ महुईया, महुआ में लागि गइले कोंच” के दरद भरल आवाज के साथे आगे के जिनगी बितावे ।
सिनेमा के कलाकार राजू उपाध्याय आ मनीषा राय आपन अभिनय से कोहबर के कहानी के एको सुता हीले नईखे देले लोग । कहानी के साथे संवाद अदायगी आ अभिनय के कसावट एह सिनेमा के एगो नया आकाश देखा रहल बा । पिछला 30 बरिस से भोजपुरी बढ़िया सिनेमा खातिर हहरल रहल ह । टप्पा टुइयाँ कुछ बढ़िया सिनेमा जइसे देसवा आ लघु सिनेमा ललका गुलाब भोजपुरी सिनेमा के अंतिम सांस पर गंगाजल के काम कइलस । एही कड़ी में उज्जवल पाण्डेय जी के कोहबर आइल बा । उम्मेद बा आगे आउर एही तरह के बढ़िया सिनेमा से भोजपुरी के उखड़त सांस के बचइले रहिहें ।
सिनेमा के लिंक-
शुभकामना