Monday, June 21, 2010

न्यूटन के दिमाग, केतना टन…!!!?


साभार: मिसिरपुराण के अलोता से



बात त ठीक रहल ह की खाली दिमाग शैतान के घर होला आ इहे शैतानियत में केतना बढ़िया बढ़िया प्रयोग भ गइल बा इ सभे जानत बा । न्यूटन खलिहा बयिठल रहन, निठल्ला । उहे निठल्लापन के सोच में अईसन आविष्कार कइलन जे दुनिया बदल गइल । आ आविष्कार का रहे खालि उनकर दिमाग के कचरस । जवन बात आज एगो अंगुठो छाप बता दी की भैंस प से कुदला से जमीन पे काहे आवेला, आकाश में काहे ना जाये ? भा झटहा मरला पे आम भदभदा के निचे काहे गिरेला । बाकी बात न्यूटन के रहे, उनकर बात कुछ खास । अरस्तु, आर्कमिडिज जईसन के कहल रहित त आउर बढ़िया । अब मिसिर बाबा के मगज के कचरस के दुनिया आविष्कार थोड़े कही, इ न्यूटन थोड़े हवें ।

जून के महीना में दिल्ली के गर्मी में मिसिर जी निठल्ला बइठल बाडे आ उनकरो मगज में  चुहल्पनी होला शैतान के । शायद इहे बतिया भइल न्यूटन के साथे ।  गर्मी से बचे खातिर लेटल रहे दुपहरिया में सेब के पेड़ के निचे ।

कुछ सोचत रहन की, पेड़ पर के सेब गिनत रहन, अब उहे जानस । तब तक ले त ठीक रहे । बाकी कपार पे सड़ल सेव गिरल, कपड़ा खराब भइल त सोचले- इ सेवुआ दोसर ओर गिरित त हम बांच जयितीं । खैर गर्मी आ घाम जब मगज में बढल त शैतानियतो जागल । लगले सोचे, केतना बढ़िया होईत की इ सेवुआ निचे ना गिरित, ऊपर आकाश में चल जाईत । शैतान के बाण कुछ और चलल, केतना बढ़िया होईत की ऊपर से गिरे वाला हर चीज उपरे चल जाईत आ आकास में तैरत रहित, जब मर्जी हाथ बढा के सेब लेल, हवा में से आम उठा ल, मुर्गी अंडा देलस आ अंडा हवा में तैरत बा, पकड़ के आमलेट बना लीं । तब तक दोसरका सेब उनकर गोड पे गिरल, मगज के तार झंझानायिल आ दिमाग के ढिबरी जलल । सोचले आमलेटवो कईसे बनी । अंडा तुडब आ सभे माल मेटेरियल हवा हो जाई ।

अब चिंता आउर बढल, सोचले कहीं हम थूकीं आ उ हवे में लटल जाए । आ कभी उहे थूक हमार मुंह पे आयिल त थूक के चाटलकहावत चरितार्थ हो जाई । बड़ा भारी फेरा बा, आ कहीं मलमूत्र के साथो इहे हो जाए त बड़ा भारी फेरा बा । दुनिया रंगीन हो जाई । फेर त नगरनिगम वालन के हवा में मेहिंका जाल बांधे पड़ी साफ़ सफाई करे खातिर । न्यूटन के मुस्की आयिल । हो जाईत त बढिए रहित सब नगरनिगमवाला देह चोर बाड़न । इनको लोग के आपन देह आ कपडा बचावे के पड़ीत त सफाई जरुर करतन । बाकी इ होत नईखे, काहे ? हो जाईत त केतना बढ़िया रहित ।

अब न्यूटन के चिंता दोसरा ओर बढल, मगज खालीये रहे, फेर सोचे लगले । अब सोचे में केकर का जात बा ? सभे कोई सोचेला, हवा में महल बनावेला । इटालियन फ्लोरिंग आ मकराना के मार्बल वाला चहबच्चा में नहाला । सोचे में का जात बा, सोच लीं की रउआ के एकदिन खातिर प्रधान मंत्री के पावर मिले त का का करब, आ प्रधानमंत्रीये काहे । भगवानों के  एक दिन आराम करा दीं । उनकर पावर लेके दुनिया चला लीं । सोचहीं त बा, ना हिंग ना फिटकिरी, दुनियो के मालिक  बन जायीं ।

न्यूटन लगले सोचे आखिर कारण का बा जे सभे टपकत जिनिस धरती ध लेत बा ? बड़ा उल्झावेवाला सवाल बा । अईसन उलझन की पूछी मत । इ सब सेब के करामात ह, सेब के चक्कर के फेरामें पडके एडम-इव के स्वर्ग छुटल । उनका के बनावेवाले भगवानो एह सेब के चक्कर में बुडबक बनले । मतलब सेब खाईला से मगज के केमिकल में कुछ उंच नीच रिएक्सन जरुर होला की बुद्धि बतासा (हवा भरल, आ पानी में हवा हो जाए वाला) हो जाला । अब अईसन बुद्धिवाला के पास डाक्टरो-वैद्य लगे जाए से डेरइहें, शायद एही से एगो कहावत बा- एक सेब रोज खाइए, डाक्टर दूर भगाइए

त इहे सेब के कइल केमिकल लोचा (केमिकल रिएक्सन) न्यूटन के मगज में भइल । कपार पे लमहर बाल राखत रहन । इ दार्शनिक आउर बुद्धिजीवी लोग पहिचान होत रहे, अबहुओं बा । लमहर बाल आ दाढ़ी राखे के । अब भारतो में  कमी नईखे टैगोर, भावे, निराला जईसन विचारक के फोटो त इहे बतावत बा । शायद लमहर बाल आ दाढ़ी हवा में तैरत विचार के पकडे खातिर होला । लमहर बाल जईसे मोबाइल आ टीवी के टावर । नया नया आईडिया एकरे से पकडाई, आ कहीं छटक के एने ओने भइल त दाढ़ी में अझुरा जाए । चाणक्य के एंटीना एकदम लमहर रहे, चिकन चुलबुल बांस के जयिसन । उनकरो बुद्धि के जोग आ उत्जोग के लोहा मानल गइल बा ।

अब न्यूटन एही एंटीना के लगले सुहुरावे (कहब त गर्मी में पसीना से माथ ककुलात रहे) । तनी जोर पडल त दू-चार बाल उनकरे हाथ में आयिल । बुद्धि खुलल की हो ना हो... इहे बात होखे ।

हँ हँ हँ इहे बात हो सकेला...।

हाथ के खिंचाव से बाल कबर गइल । माथ से अईसन कबरल जईसे इ सेवुआ पेडवा के डाल से टूटल ह ।
हँ हँ हँ... ठीक इहे बात बा धरतीयो  खिंचतान करत बाड़ी । बाकी हाथ कहाँ बा ?

हम त हाथ लगयिनी त बाल कबरल, एहिजा का लागल ....!!!?

तबे उनका एगो मुर्दा जात देखाई पडल । लोग करिया कपडा पहिरले कॉफिन (लाश ढोवेवाला बक्सा) के पीछे पीछे जात रहे । अब न्यूटन के बुद्धि फेरा गइल । शायद जान पहिचान के लोग रहन उ शवयात्रा में, इहोउठ के चललन । कब्रगाह में कब्र खोदाइल रहे ओहिजा किरिया करम क के लाश के ओह में जयिसहीं डलाइल की इनकर बुद्धि खुलल ।

आखिर इहे कब्रगाह जीवन के अंतिम सत्य होला । एहिजा केतना जाना सिद्ध हो गईले । मसान में औघड सन्यासी साधना करेले, सिद्धि खातिर । अब एहिजा केहू के बुद्धि खुले एहमे कवनो विशेष बात ना । त न्यूटन के बुद्धि खुलल आ निष्कर्ष निकलल जवना के सार संक्षेप नीचे बा-
मृत्यु जीवन के अंतिम सत्य ह, आ मृत्यु के बाद शरीर के धरती अपना में समा लेवल चाहेले । एह खातिर कब्र (Grave) बनावल जाला । धरती इहे कब्र में खिंचेली । माने धरती में कवनो बल बा । इहे बल सभे चीज पे लागेला ।

Grave में -tion (action) प्रत्यय लगाकेनया शब्द बनयिले Gravitation (गुरुत्व बल) । उ बल जवन पृथ्वी लगावेले आ हरेक चीज के कब्र अर्थात पृथ्वी के ओर खिंचेले ।

अब गुरुत्व बल के खोज भ गइल । सेब के भतीया से फल बनल आ पाक के सड़ गइल आ जमीन पे गिरल जीवन चक्र के निशानी ह । अब एहमे गुरुत्व बल के खोज भइल त जरुर न्यूटन के महानता बा । विचारक उहे जे निरर्थक से सार्थक के खोज करे । अबमिसिर जी के लेखा ना की चौदह किताब पढ़ के, चौबीस पन्ना निरर्थके लिखिहें । आपन मगज के कचरस दोसरा पे डलिहें ।

त मिसिर जी के आध पाव के बुद्धि से न्यूटन के टन भर बुद्धि केतना नपाई । आ एहमे केतना डंडी मराई एकर फैसला शुद्धि पाठक लोग के कोरे ।


इतिश्री रेवाखंडे..... ।।

Wednesday, June 2, 2010

यात्रा वृतांत: अजमेर यात्रा में इस्कौनी बाबा के अत्याचार

कहावत बा कि देवी देवता के बुलावा होला तबे लोग तीर्थाटन पे जाला ना त केतनो नाक रगड़ लीं पहुँच ना पायिब एकर भुक्तभोगी हम साक्षात बानी बाबूजी के कॉलेज के छुट्टी होखे के रहे एह जून में प्लान बनल कि वैष्णोदेवी के दर्शन कईल जाई इंटरनेट पे तमाम सुचना देख लेनी, टिकट भी मिल जाईत बाकी कुछ अईसन संजोग बनल कि यात्रा रोके पडल शायद माता रानी के बुलावा ना रहे खैर बुलावा आयिल ख्वाजा गरीब नवाज के अचानक मन में आयिल आ हम टिकट बुक करा लेनी अजमेर आ लगले पुष्कर में दर्शन भईल मन प्रसन्न रहे बाकि जून के गर्मी आ मंगलवारी व्रत में देह के दुर्दशा होत रहे ओही शाम फिर दिल्ली लौटे के प्लान, मतलब शरीर के आउरी दुर्गिंजन सुविधा खातिर दुगिना भाड़ा देके एसी बस में टिकट लेनी कि यात्रा कुछ सकूँ वाला रही, बाकी सारी सुकुनियत के हवा निकल गईल जब एसी बस में इस्कॉन मंदिर के पुजारियन के अत्याचार भयिल पढ़ीं एह यात्रा वृतांत में-
जून के पहिला तारीख के दर्शन के निश्चित भईल रहे ३१ मई, सोमवार के रात ९ बजे ख्वाजा के नाम लेके यात्रा शुरू भईल बस डिलक्स रहे बाकी यात्रा कुछ ज्यादे ही डिलक्स भईल गरम हवा के थपेड़ा आ रेट-माटी-धुल के विषपान करत सबेरे अजमेर पहुंचनी, होटल में सामान रख पुष्कर दर्शन के प्लान बनल विश्व में एकमात्र मंदिर जवन ब्रह्मा के समर्पित बा, दर्शन कईनी लहकत घाम में १-२ आउरी मंदिर के दर्शन करके २ बजे दुपहरिया में अजमेर होटल पे वापसी भईल आजे ख्वाजा के पास भी हाजरी हो जयित त आउरी एक दिन रुके के कवनो मतलब ना त वापसी के टिकट भी बना लेनी रात के १०.३० पे बस रहे होटल में चाय पानी करते धरते ४ बज गईल तैयार होके खवाजा के दरबार में हाजिरी देनी दरगाह से वापस होतहोत ७ बजत रहे खाए पिए के त कुछ ना रहे, होटल में फेर से नहा धोके बस पड़ाव खातिर निकल गईनी १० बजे बस आयिल त बैग के यथास्थान रख के आपन सीट पकड़नी एसी के ठंढक में दिनभर के थकन भुलाये लगनी बस मात्र आधा भरल खुलत खुलत ४ गो इस्कॉन मंदिर के भक्त लोगन के पदार्पण भईल उ लोग पीछे के सीट पकड़ लेले लोग जयपुर तक के यात्री रहन जा खैर बस चलल हमार कपार के ठीक ऊपर एसी के हवा खातिर जवन छेद होला ओह में एगो टूटल रहे , त बस के पर्दा के ओह में कोंच देनी आ अँधेरा करे खातिर आपन रुमाल के आँख पे बाँध लेनी यात्रा शुरू भईल
रात के एक बजे जयपुर आयिल त नींद खुलल यात्री लोग में खलबली भईल उतरे खातिर, बस के पड़ाव १५ मिनट खातिर रहे पिछे के पुजारी लोग के एहिजा उतरे के रहे उ लोग हमनी के सीट से आगे निकलल त बहुत ही अजीब गंध आयिल बुझाईल केहू तीन दिन के पेट में के पचावल हवा उत्सर्जित कईले बा हमर आँख प के रुमाल नाक पे आयिल आउरी दोसर लोग के हाथ नाक पे खैर २ मिनट में सभे कोई उतरल हम भुखासल रहीं त सामने के होटल में चाय लेनी पहिलके घोंट पे हल्ला बुझाईल मामिला का बा देखे खातिर बस भी पहुंचनी त मालूम भईल कि एगो पुजारी जी जवन करीब ४० के आस पास होइहें बस में ही निवृत हो गईल बाड़े आ आपन धोती भी खराब कर देले बाड़े उ त बस से उतरते गायब होखे के फेरा में रहन, कि एकजना उनका के ध लेले लोग उनकर फजीहत करे ए शुरू कईलन त उ इ कहत निकल गईलन –
“मलमूत्र विसर्जन पर किसी का अधिकार है क्या?”
खैर अब आफत हमनी के रहे, एसी बस चारो तरफ से बंद, आ पीछे के सीट पे पुजारी जी के चउका पुरल, गंध के मारे केहू जात ना रहे आधा घंटा बित गईल, तब दोसर गाड़ी के मंगावल गईल उहो गाड़ी दोसर जगह से आवे के रहे आउरी १ घंटा विलम्ब के सुचना पे हमनी के मन मशोस लेनी जा आपन आपन सामान केहू तरह निकाल ले सभे कोई स्टैंड पे बयिठल ओह सज्जन के प्रति लोगन के हास्य और क्षोभ के मिश्रित भाव फूटे लागल हमहूँ त्रस्त रहीं त हमहूँ ओह चौपाल में शामिल भयिनी अब ओहिजा का का बयान बाजी भईल गौर करीं जा-
पहिला- “ इ पंडित लोग साले इतना खाते क्यूँ हैं कि पचा नहीं पाते?”
दूसरा- “अरे मुफ्त का धन होगा तो आप भी ऐसे ही खायियेगा “
तीसरा- “स्साला, बच्चा को भी पेशाब लगता है तो कम से कम दो बार बोलता है ये बोल नहीं सकता था गाड़ी कहीं कड़ी हो जाती ”
चौथा- “ अरे शरमा रहा होगा कि रोड किनारे कैसे जायेंगे !!! इस्कॉन के पाखानों में ततो फ्लश लगे हैं यहाँ कहाँ मिलेगा”
पांचवा कंडक्टर से- “ यार आगे से नोटिश लगा दो, कि बस में सवार होने से पहले , फारिग होएं ”
कंडक्टर- “ इ कांड हम अब तक के जिनगी में पहली बार देख रहे हैं”
पहिला- “खलिश घी का तरमाल खायेगा सब, देखे नहीं देह कयिसा मोटा के रखा है “
तीसरा- “ अरे उसी घी कि चिकनाई में निकल गया होगा.... हा हा हा बेचारा के कोई दोष नहीं है”
हा हा हा हा हा...

अब हंसी के अईसन फुलझरी छुटल कि सब कुछ भुला गईनी
एक जाना कहले कि हम एकरा के इन्टरनेट पे सनसनीखेज न्यूज बना के पेश करब ढेर बतकही भईल जवना के एहिजा लिखल मर्यादा से बाहर हो जाई... संक्षेप में इहे कहब कि उ पुजारी जी अपना साथे सभे ब्राह्मण के पारिवारिक रिश्ता के बखिया उधेड़वा देले क्षमा चाहब कि ओकर विस्तृत वर्णन एहिजा संभव नईखे

खैर दोसर बस आयिल, एह हास्य-क्षोभ तरंग में २ घंटा के विलम्ब हो गईल रहे, गाड़ी तुरंत खुलल अब हमरो भीतर के मिसिर बाबा कुलबुलाये लगले त घटना क्रम के फरमा दर फरमा आपन मगज में सहेज लेनी विचार एहे भईल कि दिल्ली पहुँचते कम्पूटर के कीबोर्ड खटखटाईब आ शाम तक रुआ सभे तक एह मजेदार यात्रा वृतांत के राखब बाकी संभव ना भईल थकावट कुछ विशेष रहे, मित्र के घरे २ रोटी नास्ता कर के आपन कमरा पे पहुंचनी त फेर सब कुछ भुला गईनी दिन के १० बजे से शाम के ६ बजे तक निर्विघ्न निद्रापान कर के तरोताजा भयिनी त इ घटनाक्रम के लिख पयिनी