Sunday, May 23, 2010

ढोंग


शंकर यहाँ डुगडुगी बजाता, हनुमान भी हाथ फैलाता है |
और कभी रखता है कोई मूर्ति, उसी में जिस थाली में खाता है |

बुद्ध भी यहाँ मिल जायेंगे, और मिलेंगी बहुतेरे काली माई |
कालिख तन पर और जिह्वा बाहर, आकर आपके आगे हाथ फैलाई |

कभी डाल चोला साधू का, अलखनिरंजन की ऊँची टेर लगाता,
दे बच्चा खाने को कुछ, बाबा का आशीर्वाद खाली नहीं जाता |

कभी आएगा कोई अघोरी, अस्थि-दंड खूब बजायेगा |
पढ़लेगा मस्तक की रेखाएं, खुद को त्रिकालदर्शी बतलायेगा |

घुमती है एक मण्डली,जो अजमेरशरीफ भी जाती है|
डाल दो कुछ चादर में ,चादर चढाने जाती है |

चौराहे पर एक बाबा मिलेगा, लोबान जला भूत भागता है |
दे दो इसको बस एक रुपया, ज़माने भर की दुआ बरसाता है |

देखा कभी एक नज़ारा ऐसा भी, आदमी काम्पने लगा गिरकर ,
पास कोई उसके ना फटक रहा, और पैसा बरसता था झरझर |

एक उर में और एक उदर में रख, दीनहीन कैसी ये माता है |
हाथ फैलाकर रही मांगती, चौराहे पर जब कोई रुक जाता है |

भरी जवानी तन का सौदा, बुढापा अब खटकता है ,
मन का सौदा कर रही हैं, हाथ अब दिन-रात पसरता है |

बहुत ही ऐसे ढोंग मिलेंगे, जो रोज़ हमें छला करते हैं |
हाय विधाता कैसी ये दुनिया, कैसे-कैसे जीवन रहते हैं |

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