Sunday, November 15, 2015

छठी मायी

Krittika
http://www.astrovikalp.com/nakshatrastar-3-krittika-2640-mesha-1000-vrishabha/

गोड़ लागीं ए बाबा, कहंवा लपकत जात बानी?
हमनी किंहा, पंडी जी लोग के परनामो कईला के अजिबे ढंग बा । अब  “गोड़ लागीं ए बाबा...” से त इहे नु कहाई ।एक मने बाबा के गोड़ लगाई आ दोसरका मने बाबा से गोड़ लगवायीं  ।अब गाँव में एह तरह के बतकही चलत रहेला ...
हमार गाँव के नाव ह –पवना...  आ एह गाँव में एगो गान्ही चउक बा । पता ना गान्ही बाबा एहिजा कईसे पहुच गईले... इतिहास में त नईखे,  बाकी इ गान्हिये चउक कहाला । एहिजा मय गाँव के स्थिराह लोग मुफुत के मिठाई-जिलेबी  के गन्ह (गंध) लेवे खातिर जुटल रही । आ आवत जात लोगन के टोकत रही । इहे बड़का मनोरंजन रहे... एही मनोरंजन में आज हम धरयिनी ।
एक जाना कहले- ए बाबा, सोहराई (दिवाली) बितल आ अब छठ आईल ।
बाकी एह छठे के सोच के हमनी के बुद्धि भरमायिल...
सुरुज बाबा मरद हवें... चान-सुरुज सभे आकासे में रहेले,  बाकी इ छठी मईया कवन देवता हई ।इनकर भेद त रउरे बुझायीं ।
बड़ फेर भईल ए भाई... इ बाबूसाहेब लोग के आज बढ़िया मसाला भेंटाइल...
कहनी- ए बाबु साहेब ! काल भोरे-भोरे, नहा धोकर हमारे दुआर पे आइये ।सीधा आ दक्षिणा जरुर रखियेगा... पान-सोपाड़ी आ छुट्टा फुल के साथे ।
उहो बाबूसाहेब उजबक... होत फजिराहे नहा धो के  आ गईले ।
कहनी की – सुनी कथा त सूना देब बाकी एह कथा से पहिले इहो सुनी –
“कईली बरतिया तोहार ए छठी मईया
तोहार महिमा अपार, ए छठी मईया”
पकड़ी के फेंड़ (पेड़) पर भोंभा बाजत रहे ।हमनी के चिहायीं जा, एह भोंभवा में से कईसे आवाज आवत बा !!! शहनाई के जईसे एकरो रूप बा , बाकी तनी बड़हने बा... शहनाई त मुंह से फूंक के बजावल जाला ।अब एह भोंभा के पोंछ पे बटखरा जईसन कुछ बाँधल बा ।एहिजा के फूँकत बा !!?? गांवे एगो बाबूसाहेब के बरियात आईल रहे ।दुआर पे एक कोना में चौकी पे दू जाना शहनाई आ एगो तबला बजावे बयिठले ।लायिकायीं के अकिल, एगो आगलगावन चाचा लईकन के उस्का देलें की शहनाईवाला के सोझा अचार खा स ।हमनियों के चांगड़... आम के खटाई लगनी जा चाटे ।अब उ शहनाई वाला फूंक त बरियार मारे बाकी आवाज आवे फें फें... भईल शिकायत ।लउर लेके एक जाना हमनी पे टूटले ... बाकी हमनी के अन्हिया बैताल हो गईनी जा ।
उहे अमवा के खटईया वाला खेल एहो भोंभा पे करीं जा, बाकी एकरा सुर में कवनो विघिन ना पड़े... एके रागे गावत जाए ।भोंभवा के पीछे देखीं जा की कवनो मरद मेहरारू घुसल त नईखन...
लीं बात शुरू कईनी ह छठी माई के गीत से भोंभा के बखाने लगनी ।आ रउरो मुंह बा के सुनत (पढ़त) जात बानी... टोकनी ह काहे न !!??...
अच्छा त अब ध्यान देब... हम भटकीं-त टोकब... कुछो ना बुझीं त – रोकब !!!
त एक बार जयकार लगायीं कि - हे ! छठी माई किरिपा बरसायीं ।
सुमीर लीं भोले बैजनाथ के नांव... अमुक क्षेत्रे, अमुक गाँव... ले लीं आपन गोत्र-पित्र के नाव
एह गोबर गणेश पे पान फुल सोपाड़ी चढ़ाईं... संगे सवा रोपेया दक्षिणा ।
त बात करत रहीं एह छठी माई के... लयिकायीं से ईगो सवाल कुलबुलात रहे ।पूजा होत बा सुरुज बाबा के त इ छठी माई के हई !? सुरुज बाबा त रथ पे बाड़े, जवना के सात गो घोडा खींचेला... इ छठी माई कहीं लउकत नईखी ।इहे सवाल हम आपन बाबा से पूछनी ।हमार वेदव्यास उन्हें के... बाबा बतवनी हमरा के जवन कथा- उहे हमरा मुखे सुनी –
कथा बा शिव पुराण के... हँ हँ हँ ... उहे भोले बैजनाथ के कथा बा ।
उनकर छोट लईका के नाव रहे स्कन्द । लयिकायींयें से बड़ चंचल ... कोरे में रहन बाकी उत्पात के कमी ना रहे ।स्कन्द के माई रही गउरा... गईली एक दिन नदी के कछारे नहाए ।
आ एह लईका के किनारे कपड़ा में लपेटी छोड़ गईली ।लईका रहे उत्पाती एक ओरे लुढ़के लागल ।किनारहीं  नरकट के झुरमुट रहे.. लईका ओही में घुस गईल... ठंढा छांह मिलल त घोर नींद घेरलस ।
ओने गउरा के लईका ना मिलल त रोवत पीटत घरे गईली की कवनो शेर बाघ भा सोंस घड़ियाल लईका ले गईल ।
घरी भ बीतल होई की छव गो सुनार मुनर राजकुमारी आकास से उतरली आ नहाये लगली...
लईका के भूख लागल त जागल आ रोये लागल ।
लईका के रोवाई सुन के इ छौ जानी नरकट के झुरमुट म गईली, त देखत का बाड़ी- बड़ सुनर लईका, भूखे बिलखत बा ।
एह लोग के दया आईल त सभे जानी आपन आपन दूध एह लईका के पिअवलस ।लईका चुप लगा गईल ।
बोलीं – जै भोलानाथ !
इ छौ बहिन लोग कृतिका नक्षत्र के तारा लोग रहे, इनका लोग के भी कृतिका ही कहल जाला  ।कृतिका नक्षत्र , सुरुज भगवान के सबसे नजीक होला । इ लोग सुरुज भगवान के प्रार्थना कईल कि अब इ लईका हमनी के लईका ह ।अब रउरा एकरा के आशीर्वाद दिहीं ।
http://www.bibliotecapleyades.net/universo/passage_change.htm
सुरुज बाबा बड़ा प्रसन्न... लईका के बुद्धि-विद्या आ अमर होखे के वरदान देले ।
ध्यान लगा के देखले त सभे कुछ मालूम हो गईल कि , इ लईका भोला नाथ के ह...
कहले इनकर नाव त स्कन्द ह बाकी तोहर लोग के लईका भईला से अब इनकर नाव कार्तिकेय होयी ।
बोलीं – जै भोलानाथ !
त अब गउरा के साथे इ लईका के छौ माई आउर भेटा गईली । इहे छठी माई हई ।
त परेम से बोलीं – जै हो छठी माई । जै हो सुरुज बाबा...
जईसे छठी माई एह लईका के लालन पालन करके ओकर भूख मेटवली ।ओइसहीं हे ! छठी माई हमनियों के लईका खातिर सुरुज बाबा से वरदान मांग दीं ।हमनियो के लईकन के बरदान दीं ।

लीं कथा ख़तम हो गईल । हमार दक्षिणवा निकालीं ।

Thursday, November 12, 2015

गोधन : औरतन के मानसिक रोग से बचाव के अनुष्ठान



(इ लेख भोजपुरी ई-पत्रिका आखर के नवंबर -2015 के अंक में छप चुकल बा )
https://www.flickr.com/
मानव शरीर रचना बड़ा जटिल बा । ओहमें भी मानव मस्तिष्क (दिमाग) के रूप रेखा आ बनावट अईसन कि आज भी वैज्ञानिक लोग एकर रहस्य ना बुझ पाइल । दिमाग (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित  होला आ  ई चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान ह । शरीर के सभे ज्ञानेन्द्रिय- आँख, नाक, कान, जीभ आ त्वचा सभके आवेग एही दिमाग से नियंत्रित होखेला ।  ज्ञानेन्द्रिय आ  दिमाग के बीच परस्पर दुतरफा संवाद होला,  बाकी सभे के कंट्रोल दिमाग ही करेला । संवाद के माध्यम शरीर में फैलल तंत्रिका जाल होला जे मेरुरज्जु से होते हुये दिमाग तक आयनिक करेंट के रूप में दिमाग के न्यूरान सिस्टम में पहुंचावे के काम करेला । मनोचिकित्सक लोग एही विद्युत प्रवाह (दिमागी तरंग) के एलेक्ट्रोनसेफलोग्राफी (Electroencephalography; EEG) के माध्यम से अध्ययन करके मनोरोग के पहचानेला ।  
मनोरोग  भा मनोविकार (Mental Disorder) एगो व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के उ स्थिति ह जेकरा के कवनों स्वस्थ व्यक्ति से तुलना करके सामान्य नईखे कहल जा सकत । स्वस्थ व्यक्ति के तुलना में मनोरोगी के व्यवहार असामान्य होला । मनोरोग मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन के वजह से पैदा होखेला आ एकर उपचार खाति मनोरोग चिकित्सा के जरूरत पड़ेला । मनोविज्ञान में असामान्य आ अनुचित व्यवहार करे वाला के मनोविकार से पीड़ित कहल जाला । शुरुआती साधारण दिखे वाला लक्षण समय पा के बढ़ जाला आ शरीर के नुकसान पहुंचावेला ।
मनोविकार के पाछे ढेर कारण होला जेहमें खानदानी, कमजोर व्यक्तित्व, सहनशीलता के अभाव, पहिले के कुछ बुरा अनुभव, तनाव, परिस्थिति आ असमर्थता शामिल बा । परिस्थिति जवना के सुलझावल भा पार पाइल दूभर होखे उ तनाव पैदा करेला । आ इहे मानसिक तनाव दिमाग में मौजूद रासायन के असामान्य करेला । आज के समय में तनाव समाज खाति सामान्य सा बात बा । लईकायीं में शिक्षा आ ओहमें बढ़त प्रतिस्पर्धा के तनाव, युवा में रोजगार के लेके तनाव, प्रोढ़ के भविष्य के चिंता में दिमाग तनावग्रस्त रहेला । कुल मिला के हर कोई तनाव से जूझ रहल बा । आ ई तनाव के रूपरेखा मानव समाज के बुद्धिजीवी होते तय हो गईल । आदिकाल से तनाव के उपस्थिती दर्ज बा आ एकर इलाज भी समयानुसार ग्रंथन में दिहल गइल बा । प्रकृति के नियम ह जवन चीज के जेतने दबाईब ओकर अंदर के ऊर्जा फफन के बाहर आवे के कोशिश करी । उदाहरण खाति गैस के गुब्बारा ले लीं । हवा भरल गुब्बारा पे अगर जरा भी कोई तनाव भा दबाव मिलल त अंदर के ऊर्जा (हवा) बाहर निकले के कोशिश करी । एही सिद्धान्त पे प्रेशर कुकर भी काम करेला । लगभग इहे परिस्थिति दिमागी तनाव के भी बा । तनाव के दूर करे के उपाय ना करब त ई नकारात्मक ऊर्जा राउर शरीर में कहीं ना कहीं नुकसान करी । तनाव के सबसे नजदीक के संबंध दिमाग से ही बा त दिमाग पहिला शिकार बनी । अब एह तनाव के कारण दिमाग के विद्युत तरंग (दिमागी तरंग) में हलचल होई । कुछ रसायन के विघटन होई आ असंतुलन के प्रभाव से मनोरोग के जनम होई ।
समाज के जब निर्माण भईल त पुरखा लोगन के वैज्ञानिक नजरिया एह तनाव आ एकर कुप्रभाव पे भी पड़ल । आज के तरह तकनीक से अनभिज्ञ समाज कवनों रोग के कारण आ निवारण के उपाय सामान्य आदमी के जीवन में रोज़मर्रा के काम बना लिहलस । गीत संगीत आ दैनिक चर्या के संतुलन से तनाव आ मनोविकार के दूर करे के माध्यम बनावल गइल । समाज के हर वर्ग आ हरेक वय खाति कुछ नियम के खोज करल गइल, जेकरा के साध के कवनों तरह के शारीरिक भा मानसिक बेमारी से बांचल जा सकत रहे । समाज में अईसन हरेक नियम के धर्म से बांध दिहल गइल । भारतीय समाज में स्थान आ परिस्थिति के अनुसार हर जगह कुछ परब, कुछ व्रत-त्योहार के रचना करल गइल ।
पुरुषप्रधान समाज में मेहरारून के स्थिति ठीक ना रहे । मरद घर के बाहर आ मेहरारू घर के भीतर ... बाहर के दुनिया से अंजान , चारदीवारी में जिनगी खप जात रहे । पुरुष वर्ग के मानसिक तनाव के कम करे खाति घर के बाहर बहुत साधन रहे बाकी चारदीवारी के अंदर मेहरारून के स्थिति दयनीय रहे । मानसिक तनाव के शिकार एह वर्ग मे क्रोध, कुंठा, अवसाद आ अंत में पागलपन जईसन मनोविकार पनप जात रहे । ई विकार सब अईसन हवें की इनका के निकालल न जाई त शरीर में रोग-व्याधि लईहें । पुरखा लोगन के वैज्ञानिक सोंच से एह तरह के रोग के रोके के उपाय मिलल लोक परब में । लोक परब जे जन जन के मुंहे पीढ़ी दर पीढ़ी पार होखे । ना कहीं कवनों वेदपुरान के वाणी ना कवनों ग्रंथ के लिखंत । बस मुंहे मुंही परब आ एकर विध... इहे लोक परब जे साधारण आदमी मे दिलो दिमाग में बस जाय आ एह परब के पाछे छुपल सोच के काम भी हो जाये । अईसने एगो लोक परब बनल- गोधन भा भाई दूज ।
कवनों मेहरारू खाति आपन माई-बाप के बाद भाई से प्रेम होला । अगर देखल जाव त उहे सबसे जादे नजदीक होला । उमिर के हिसाब से कुछ ऊपर नीचे, कुछ बराबर एगो अईसन व्यक्तित्व जेकरा पे जेतना क्रोध-खीस ओहि पे सबसे बढ़के प्यार आ दुलार । लईकायीं के खेल के सहयोगी से लेके जीवनभर तक बहिन के रक्षा करे खाति समर्पित भाई से बढ़के दुनिया के सबसे प्यार दुलार के रिश्ता कवनों ना होखे । लोग मानसिक शांति पावे खाति आपन सबसे प्रिय चीज के ही साथ खोजेला । केहु गीत संगीत त केहु नाच, केहु इयारी दोस्ती के गपशप त केहु कवनों कारज में मन रमा लेवेला । अब मेहरारून के मानसिक तनाव के इलाज सबसे नजदीक आ सबसे प्रिय रिश्ता भाई में खोजल गइल । भाई आ बहिन के जोड़ के परब बनल । एह परब के विधि कहीं लिखित नईखे बाकी एक पीढ़ी से दोसर पीढ़ी तक आपन एके रूप में आज भी प्रासंगिक बा । एह परब के माध्यम से बरिस भर के क्रोध, खीस, मानसिक अवसाद के दूर करे के उपाय बतावल गइल बा । उपाय अईसन की अवसाद के ज्वालामुखी के धधकत लावा के केहु उफान पे लाके अचानक से बरफ जस जमा देवे । अवसाद के नामो निशान मिटा देवे । मन में फेर से शांति आ सकून आ जाये कुछ अईसने विधि से अंटाईल परब के नाम ह गोधन भा भाई दूज ।
क्रोध के प्रतिकात्मक रूप ह गारी दिहल । बलवान क्रोध के निपटारा आपन बल से त कमजोर मुंहजोर (गारी) से करेलें । साल भर से कुंठाग्रस्त, क्रोध के आपन सीना में दबवले मेहरारून लोग के एह दिन छुट रहेला आपन हित-नात रिश्तेदार  के गारी दे के आपन मन के दबल भाव के निकाले के । भाई दूज के दिन होते बिहान मय मेहरारून लोग आपन भाई भतीजा, नात रिश्तेदार सबके श्रापे के शुरू करी लोग । लोग मुंह में पानी तक ना डाले । खीस में अन्न जल छोडला के प्रतीक ह । एह दिन क्रोध के हरेक तरह से उफान पे लावे के कोशिस होला । क्रोध के अंतिम चरण में लोग केहु के मउअत तक के कामना कर देवेला । क्रोध के अग्नि जब प्रचंड होखे त सामने यमराज भी आ जास त उनको के जरावे के हिम्मत होला । यमराज मृत्यु के देवता हवें, उनकरा डरे दुनिया समाज सभे देवता पितर पूजत रहेला की यमराज से भेंट मत होखो । 
गोधन के प्रतीकात्मक चित्र ,रेखांकन -शशि रंजन मिश्र
बाकी आज के दिन क्रोध आपन सीमा लांघत बा एह से यमराज से भी दू-दू हाथ करे खाति लोग तैयार बा । आज यमराज के दुर्गति हो जायी । गोबर से चौखुट बक्सा में यम-यमिन बनावल जाला । मान्यता ह की एक सैय्या पे मरद आ मेहरारू के एक दोसरा के ओर गोड़ करके ना सुते के । दूनों के बीच प्रेम के नास होला । त आज जब यमराज पे खीस उतारे के बा त उनकर मेहरारू के भी एही खीस में लपेट लियाई आ एह लोग के दांपत्य जीवन के छिन्न भिन्न कर दियाई । अब गोबर के यम-यमी त बन गईले बाकी क्रोध एह गोबर पे कईसे उतरी , बरिस भ के क्रोध जे रोयां-रोयां पेहन भईल बा हतना आसानी से उतरल मुश्किल बा । झाँवा इंटा सबसे बरियार मानल जाला, उहे ओह चौखटा में  बीचों-बीच रखाई । आ फेर सब औरत सब मिलके मूसल आ लाठी से उ इंटा के मार-मार के फोड़ दिहें, यम–यमिन के दुर्गत हो जाई । 

कपार के खीस अब धूरे धूर होके जमीन लोटत बा । बरिस भर के कुंठा, खीस, अवसाद इंटा के धूर आ गोबर में सनाईल जमीन चाट रहल बा । सारा क्रोध निकल गइल । अब जवन पर क्रोध निकाले के रहे ओकर नेस्तनाबुत हो गईल आ अब क्रोध शांत हो गइल ।  जवन ज्वालामुखी धधकत रहे ओकर सब लावा बह गइल । अब उ जगह खाली बा, समय पावते एह बुझाईल ज्वालामुखी के मुंह पे ठंढा मीठा पानी के झील बन जायी ।  काँट से भरल डाढ़ के फुनगी पे खुसबु बिखेरत फूल खिल जायी ।  
क्रोध शांत भईल, मन के शांति मिलल त सबेरे से लेके अब तक घटनाक्रम पे धेयान जायी । ओह ! आज क्रोध में ना जाने सभे के का-का कह गयिनी । आपन भाई-भतीजा सभके मउअत मांग देनी । बड़ा गलती हो गइल । एह तरह के पश्चाताप के धारा बही । सब मेहरारू लोग आपन जीभ में रेंगनी के काँट गड़ा के पश्चाताप करी- 
जवन जीभिया से गारी दिहनी ओहि जीभिया में काँट गड़ो’ ।
कंटकारी, रेंगनी , चित्र साभार-गूगल सर्च
पछतावा के बाद सब औरत लोग आपन भाई-भतिज के आशीर्वाद दिही आ बज्जरी खियाई की इनका लोग के देह बज्जर बनो । 

“कवन भइया चलले अहेरिया, कवन बहिनी देली आसीस
जिअसु हो मोरा भइया, जीअ भइया लाख बरिस”
विचार कइल जाय त क्रोध आ प्रेम, दूनों एके ऊर्जा से निकलल भावना के दू रूप ह । दूनों में कवनों मौलिक अंतर नईखे । यदि क्रोध के गहिर अभ्यास कइल जाय आ क्रोध के जेतना संपूर्णता से जीए के प्रयास करल जाय त ओतने गहिर आ प्रामाणिक प्रेम उत्पन्न होखी ।
अपना भीतर प्रेम के अंकुरण के दोसर उपाय के साथे क्रोध के अभ्यास भी एगो उपाय ह । अभ्यास के माने की  व्यक्ति के मन में खाली क्रोध के भावना छोड़ के कुछ आउर भाव मत रहे । क्रोध के भाव एतना प्रचंड होखे की यम जईसन प्रचंड व्यक्ति भी एह क्रोध के प्रकोप से मत बांचस । मृत्यु सबके विरोधी ह , दुखदायी ह , उग्र ह, प्रचंड ह । मृत्यु के देवता यम हवें त अईसन कठोर के ऊपर क्रोध कईला पे केहु विरोध ना करी ।
भय आउर क्रोध के कारण लगभग एके बा । क्रोध के मूल उद्देश्य ह भय पे जीत हासिल  करे के प्रयास । सही मामिला में भयभीत के क्रोधी होखे के आ क्रोधी के भयभीत होखे के गुंजाइश हमेशा रहेला । आ मृत्यु से त हरेक प्राणी भयभीत रहेला । एह भय के ऊपर अगर क्रोध कइल जाय या एकर अभ्यास कइल जाय त आपन चरम पे पहुँच के इहे क्रोध मृत्यु के भय के समाप्त कर दिही । एकरा बाद मनोबल के जवन ऊर्जा मिली अगर अभ्यासी चाहे त प्रेम के रूप में केहु पे न्योछावर कर दिही ।
भाई दूज के दिन कइल जाये वाला एह अनुष्ठान में जवन ऊर्जा के प्राप्ति होला ओकर लाभार्थी भाई होले । अनुष्ठान कहे के मतलब ई कि एह परब के सब विधि मानसिक तौर पे ही करल जाला । मन के उद्वेग , कुंठा, क्रोध आ अवसाद के समन करे खाति एह से बढ़िया उपाय कुछों नईखे हो सकत कि लोक व्यवहार भी हो गइल आ मनोविकार से भी छुटकारा मिल गइल ।
संदर्भ सूची
  1. मगध की रहस्यावृत साधना- डा० रवीन्द्र कुमार पाठक
  2. मस्तिस्क- विकिपीडिया
  3. मनोरोग-विकिपीडिया

Sunday, October 4, 2015

जीउतिया: बलिदानी जीमूतवाहन के ईयाद के परब

 
 [ एह लेख के प्रकाशन भोजपुरी साहित्य के ई पत्रिका आखर के सितंबर 2015 में हो चुकल बा पत्रिका पढे खाति आखर के वेबसाइट www.aakhar.com पे जाईं ] 

जीउतिया: बलिदानी जीमूतवाहन के ईयाद के परब
ए अरियार ! का बरियार !!
बैठे के दे देबो सिंहासन पाठ
राम जी से कहिह
फलनवा के माई भुखल बाड़ी जिउतिया ......
इहे कह के पीढ़ा के जवना पे जीउत महाराज बिराजेलें पाँच बार उठावल बईठावल जाला ।  ई कवनों बेद पुराण के मंतर ना ह । लोक संस्कृति में मुंहे मुंहे फैलल लबेद ह । जवना में कवनों विशेष लिखित विध ना होखे । बरत त्योहार के विध के एक पीढ़ी से दोसर पीढ़ी तक, एक समाज से दोसर समाज तक देखादेखी आ मुंह से कहल बातन से ही आगे बढ़ेला । हरेक परब के अलग विध, व्यवहार आ मान्यता आ सभे अलिखित । चिल्हो- सियारो के कथा, बहुला के कथा आ नाजने केतना लोक कथा । आज के वैज्ञानिक जुग में एह तरह के हरेक परब के बुद्धिजीवी लोग नकार दिही । बाकी कवनों निर्णय लेवे से पहिले लोक परब आ ओकर पाछे के छुपल गूढ रहस्य के जानल बहुत जरूरी बा । काहे एह परब के लोक व्यवहार में एतना प्रचलित करल गईल ? काहे लोगन के धरम के भाय देखा के एह परब के मनावे खाति बाध्य कर दिहल गईल । अयीसने कुछ पहलू के छुवत एह लेख के माध्यम से पढ़ीं जीउतिया जईसन लोक परब के बारे में ।
हमनी के सामाजिकता के मजबूत करे में लोक व्यवहार, संस्कार, संस्कृति आ परब-त्यौहार के विशेष महत्व बा । सभे परब-त्यौहार के पाछे पुरखन के वैज्ञानिक सोच जेहमें शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य के बढ़ावे के, पारिवारिक आ सामाजिक ढांचा के मजबूत करे के गूढ आ गहीर बात छुपल बा । अईसन परब-त्यौहार में तीज आ जीउतिया  के नाम सबसे ऊपर बा ।
जीउतिया भा जीवित्पुत्रिका व्रत के माने ह कि संतान के उमीर- अर्दोआय  बढ़ावे खाति कइल जाला । जेकर संतान ना होखे उहो मेहरारू लोग एह बरत के करेली । जीउतिया आश्विन महिना के अनहरिया (कृष्णपक्ष) के अष्टमी के मुख्य रूप से भोजपुरी बहुल इलाका पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार आ मिथिलाञ्चल में मनावल जाला ।
जीउतिया के कथा
जीउतिया के प्रचलित कथा लोग एह बरत के दिन पढे ला । कथा में राजा जीमूतवाहन के आपन प्रजा के प्राणरक्षा में आपन प्राण के आहुती देवे के आ फेर प्राण हरेवाला से लमहर उमीर के आशीर्वाद पावे के चर्चा बा । कथा शंकर जी के माध्यम से पार्वती जी के सुनावल जाता । हिमालय क्षेत्र में एगो गंधर्व के राज्य रहे । राजा जीमूतकेतु बहुते दयालु रहलें हमेशा धरम करम में लागल रहस , एहसे जनता स्वछंद हो गईल रहे आ एक दिन महल के घेर लेलस । राजा आपन राज आपन गोत्र के लोग के सौंप के आपन बेटा जीमूतवाहन के साथे मलय पहाड़ पे चल गईले । एक एक रोज जीमूतवाहन घुमत रहले त एगो पहाड़ के चोटी पे हड्डी के ढेर देखाई पड़ल । पुछला से मालूम पड़ल की ई सब गरुड़ के करामात ह । आगे बढ़ले त एगो बूढ़ी रोवत रहली । पुछलें त उ कहली-
“हम नागलोक के रहेवाला हईं । ई जेतना हड्डी देखत बाड़s उ सब नाग के हड्डी ह । गरुड़ से करार बा कि रोज एगो नाग उनकर भोजन बनी । आ जेह दिन गरुड़ के भोजन ना मिली उ सभ नाग के एके बेर खतम कर दी । आज हमार बेटा शंखचूड़ के बारी बा । एही से रोवत बानी , एहिजा गरुड़ से गोहार लगावे खाति आइल बानी ।“
जीमूतवाहन ओह बुढ़िया के समझवले- “हम तहार बेटा के जगह पे जाईब” ।
आ लाल कपड़ा में अपना के लपेट के बलि स्थान पे सुत गईले । गरुड़ आईले आ लाल कपड़ा में लपेटाईल जीमूतवाहन के पंजा में दबा के उड़ गईले आ पहाड़ पे ले जाके बईठ गईले ।
गरुड़ के आश्चर्य भईल कि पंजा में दबोचला के बादो तनिको आह-उह के आवाज ना आइल । उ लाल कपड़ा हटा के देखले त जीमूतवाहन रहलें । उनकर परिचय पुछले त जीमूतवाहन सब किस्सा सुना दिहले । गरुड़ उनकर बहादुरी अवरू दोसरा के प्राण-रक्षा खाति आपन बलिदान देवे के हिम्मत से बहुत प्रभावित भईले । खुश होके आशीर्वाद में जीवन दान दिहले आ आगे से नाग के बलि लेवे से मुक्त कईले । जीमूतवाहन के अनुरोध पे जेतना नाग मरल रहले सब के जीवन वापस मंगले । गरुड़ प्रसन्न भईले, सभ नागन के प्राण लवटवले । जीमूतवाहन के राजपाट भी वापस आवे के आशीर्वाद दिहले । एह तरी जीमूतवाहन के प्रयास से नाग-वंश के रक्षा भईल आ तबे से बेटा के रक्षा खाति  जीमूतवाहन के पूजा के चलन शुरू हो गईल।
जीमूतवाहन :  जातक कथा के नायक से कुलदेवता बने तक
बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध के आदेश बा – “चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” ।
भारतीय समाज में बहुजन के अर्थ होला सामान्य वर्ग चाहे उ गांव के रहेवाला होखे भा शहर के । एह सामान्य वर्ग में आपन बात आ उपदेश के पहुंचावे खाति लोक कथा आ उपमा के सहारा लिहल गइल । आ इ सब लोक कथा के माध्यम से लोग आपन भाषा (सकाय निरुत्तिया) में उपदेश के इयाद राखे एकर छूट रहे । बौद्ध धर्म के एह शैली के कारण बौद्ध साहित्य में अनेक कथा के समावेश भईल । भगवान बुद्ध से लेके बाद के चौरासी सिद्ध लोग तक अनेकानेक पात्र के रचना भईल आ ओसे जुडल छोट-बड़ कथा विकसित भईल । एह सब कथा के जातक कथा कहल जाला । आ एह जातक कथा से लगभग हर परंपरा आ धर्म प्रभावित भईल । जातक कथा के अलग अलग रूप स्थान आ समय के अनुसार परिवर्तित आ विकसित भईल । संस्कृत ग्रंथ बृहत्कथा में बैताल पच्चीसी के कथा ( 16वीं कहानी) आइल बा । बृहत्कथा के रचना 495 ई० पूर्व में राजा सातवाहन के मंत्री गुणाढ्य कईले रहन । बुद्ध के काल भी 563 ई० पूर्व से लेके 483 ई० पूर्व तक के ही बा । एह से बृहत्कथा में जातक कथा के समावेश बा । बृहत्कथा के भाषा प्राकृत रहे आउर एह किताब में लगभग 7 लाख छंद रहे । कश्मीर के कवि सोमदेव भट्ट एह किताब के संस्कृत में अनुवाद कईले आ नाम दिहले “कथासरित्सागर” । “वेताल पन्चविन्शति” यानी बेताल पच्चीसी “कथा सरित सागर” के ही भाग ह । बेताल पच्चीसी  के कथा के बहुत भाषा में अनुवाद भईल । ई कहानी खाली दिल बहलाव खाति ना रहे, एकर जातक कथा में जीवन के सार्थक करे के अनेक गहीर बात कहल गइल रहे ।
सोलहवीं कहानी में जीमूतवाहन के कथा बा । कथा में जीमूतवाहन के महान आत्मा, महापुरुष बनावल गइल । एह पात्र के महानता से प्रभावित मगध, मिथिला, बंगाल, उड़ीसा तक के लोग अपना के एह पात्र से जोड़ लिहले । जीमूतवाहन एक जगह के ना रह गईले । जातक कथा से निकल के धर्म आडंबर रहित लोकधर्म आ लोकपरब के देवता बन गईले । समाज के उच्च वर्ग से लेके दलित वर्ग तक ले पुजल गईले । सामाजिक समन्वय के जवन स्थापना जीमूतवाहन से भईल उ कवनों आउर कथा आ पात्र में ना लउके । मगध  के महादलित जाति “भुईयाँ” अपना के जीमूतवाहन से अधिका जोड़लस । सामाजिक रूप से दलित आ बहिस्कृत एह समाज के छूआछूत के बंधन में बान्ह के परब त्योहार, रीत-रिवाज में भी कवनों स्थान ना दिहल गइल रहे । महादलित एह जाति के जीमूतवाहन में एगो उद्धारकर्ता आ एगो अईसन देवता के रूप लउकल जेकरा के अपनावे में कवनों रोक ना रहे । भुईयाँ जाति जीमूतवाहन के आपन कुलदेव बना लेले । जीमूतवाहन के आपन प्राण के आहुती देवे के पुण्यतिथि के आपन कुलपर्व घोसीत कईलस । आ जीमूतवाहन के पुनर्जीवित भईला के खुशी में लगभग एक हफ्ता तक उत्सव मनावे के विधान कईलस । अब दलित जातियन के उत्सव पूजा पाठ के कवनों जानकारी त रहे ना, त लोक श्रुति के आधार पे आपन विध बना लिहले ।
बरत करे के लोकाचार
बरत से पहिले नेहाय खाय के विधि लगभग हरेक लोक परब में बा । सांसारिक करम से अपना के मुक्त करके शरीर आ आत्मा के साफ सफाई के दिन ताकि बरत में शुद्धि रह सके । बेटा बेटी से खानदान भरल रहे एह सोच के नेहान खाय के दिन अयीसने चीज खाये के विध बनावल गइल । मड़ुआ (रागी) के आटा के रोटी, सतपुतिया के तरकारी आ नोनी के साग । मड़ुआ के आटा खूब पसरेला, नोनी के साग आ सतपुतिया के लत्तर के साथे भी इहे बात बा, एगो लत्तर मय खेत के छाप लेवेला । खेतिहर उच्चवर्ग त शाक भाजी से शाकाहार कर ली बाकी दलित पिछड़ल वर्ग जेकरा भी एको धूर जमीन ना उ का खाई ? कुछ प्रदेश में मछली के शाकाहार मानल जाला । मछली के भेद ह सिधरी आ पोठीया । छोट मछरी जवन खूब अंडा देवेले आ आपन संख्या विस्तार करेले । कुछ जगह झींगा मछरी भी लोग एही क्रम में मानेला । त बरत के दू दिन  पहिले से ही मय गबड़ा- गड़ही, नाहर –पोखर ऊबिछ के मछरी मरायी आ नेहाय खाय के दिन एकरे सेवन होला ।
नेहाय खाय के दिन चूल्हा चौकी पबितर करके ओठगन ( आटा के ठेकुआ जे लगभग एक हथेली के बराबर होला) बनी। जेतना लईका-लईकी, ओतने ओठगन । ई ओठगन तनी कडक होला, मानिता बा की एह ओठगन के खईला से एकरे लेखा देह बरियार होई ।
होत पराते, किरीन फूटे से बहुत पहिले मय मेहरारू लोग उठी आ इहे ओठगन से सरगही करी । सरगहीयों के विधान बा । दू टूकी ओठगन चिल्हो आ सियारो के नाम पे घर के छान्ह छत पे फेंकाई की उहो लोग खा लेस । अब चील आ सियार एह बरत में कैसे अईलें एकर कवनों प्रमाण नईखे । सरगही के बाद पूरा 24 घंटा खाति निर्जला बरत शुरू होला । बरत के दिन साँझ के मय मेहरारू लोग एक जगहा एकट्ठा होके पुजा करी । एह लोक परब आ जातक कथा के बढ़त प्रभाव ही रहे की बाद में जीवितपुत्रिका व्रत कथा गढ़ दिहल गइल । शंकर भगवान आ पार्वती माई के बीच संवाद करा दिहल गईल कि जिउतिया के दिन जीमूतवाहन के पुजा करे के चाहीं । दान धरम के  बाकी एह पूजा में से लोक संस्कृति आ विधि के अलग ना करल जा सकल । पीढ़ा पे माटी के चिल्हो सियारो बना के सिंदूर चढ़ावल, नेनुआ (तुरयी) के पत्ता पे जीउतिया के स्थापन कर के पीढ़ा के उठावल-बईठावल कवनों वेद में लिखल ना मिली । लोक संस्कृति के परब ह , दू-चार गीत गंगा मायी के,  दू-चार गीत ब्रह्म  बाबा के आ हो गइल पूजा । पुजा के बाद लोग जीउतिया के आपन बेटा बेटी के पहिराई । जीउतिया बनवाए में भी सामाजिक विषमता रहे । सम्पन्न लोग बेटा खाति  सोना के आ बेटी खाति चांदी के जीउतिया बनवावत रहे । बाकी जे निर्धन रहे उ एगो धागा से भी काम चला लेत रहे ।
बरत के दोसरा दिन पारन कइल जाला बरत के तूड़े खाति । एह दिन बूँट के अंकुरी, मड़ुआ के दाना आ नोनी के कच्चा साग लिलल जाला । बूँट लगभग हर जगहा मिलेला एह से बरत के दुसरका दिन बूँट आ बेसन के विशेष कढ़ीनुमा व्यंजन बनेला । भोजपुर क्षेत्र में एकरा के टोरा कहल जाला । टोरा आ भात खाके बरत तुड़ल जाला ।
खान-पान के वैज्ञानिक पहलू
मड़ुआ के परयोग लोग प्रोटीन के स्रोत के रूप में करेला, एकर पानी सोखेवाला विशेष गुण के कारण पेचिश ग्रस्त रोगी के खिलावल जाला । मलशुद्धि करे में आ आंत के ताकत पहुंचावे में मड़ुआ के जोड़ नईखे । बाज़ार में रागी माल्ट के नाम से इहे मड़ुआ के सत्तू खूब बेचात बा । नोनी आ सतपुतिया रेशेदार आ सुपाच्य सब्जी ह । मड़ुआ, सतपुतिया से आंत के शोधन हो जाये आ बरत करके शरीर के आंतरिक पाचन क्रिया के तनिक आराम पहुंचावल आ फेर बूँट जईसन अनाज के खाना में शामिल करल पुरखन के वैज्ञानिक सोंच के परिणाम बुझात बा । ओठगन आटा, खांड भा गुड़ के मिलाके गाय के घीव में बनावल जाला । आयुर्वेद में किरीन फूटे से पहिले एह तरह के पकवान ( हलुआ, पुआ भा ठेकूआ ) खाये के कहल बा । एह परयोग से पित्त के शांति होला आ शरीर में अधकपारी जईसन रोग बाधा  ना आवे । आगे के 24 घंटा भूखे के बा त खाली पेट में पित्त के प्रकोप हो सकेला, एकरा के सामित करे के उपाय में सरगही खाये के कर दियाईल । पित्त के उत्पाती से पहिले ही पित्त ना बढ़े एकर उपाय कर दिहल गइल ।   
लोक परब लोग खाति बनावल बा । वैज्ञानिकता के धरम के आड़ देके जन मानुष मे प्रचलित कइल । लोगन के रहन सहन के सुधारल आ साथे साथे संस्कृति के रक्षा ही लोक परब के उद्देश्य होला । जीउतिता जईसन परब जवना में उंच-नीच, अमीर-गरीब के भेव भुला के माई आ संतान के परब बना दिहल गइल । धरम आ देवता के परे करके राजा जीमूतवाहन के गुण गावल गइल । एह दिन मेहरारू लोग बस इहे प्रार्थना करेला कि-  हे जीउत ! जैसे तोहार बलिदान के बदला में तहरा जीवन के अर्दोआय बढ़ल । ओइसहिन हमरो लईका-लईकी के अर्दोआय बढ़ाव ।                
संदर्भ :
1.    जीवित्पुत्रिका व्रत कथा, ठाकुर प्रसाद बुक सेलर्स, वाराणसी
2.    मगध की रहस्यावृत साधना संस्कृति – डॉ० रवीन्द्र कुमार पाठक
3.    बेताल बेताल पच्चीसी, विकिसोर्स डॉट ओआरजी
4.    बुद्ध, भारतकोश

Saturday, October 3, 2015

मठाधीशी

भोजपुरी मैया !
ना रे भैया ।

नेता नेतौअल !?
हाँ हो भैया ।

मठाधीशी !!! 
हाँ रे भाई ।

उ त 
जन जागरण से आई !!!

~शशि (०३.१०.२०१५)

Monday, September 28, 2015

मठाधीश सपनेहु सुख नाहीं




ए मठाधीश ! 
का मठाधीश !!? 
तुहूँ आ हमहूँ 
बानी जा भोजपुरिया 
उठवले रहीं झण्डा 
उखाड़ दीं जा किला 
हिला दीं जा संसद 
दिने दुपहरिया 

हाँ हाँ ... 
ठीके कहनी 
मठाधीश तक ले ठीक बा 
नेता बने में बुझाता 
हमरा डाउट

काहे !??? 

मठाधीश रहनी 
त चादर गुलदस्ता पईनी
नेता बनब त हो जाई 
ई कुल आउट

भाग मरदे !!! 

नेता बनके लोगन के 
बुरबक बनावल जायी 
लोगन के जगावे के नावें 
आन्ही-थोपी खेलावल जायी 
घुमल जायी गांवे- गाँव 
निमन चबूतरा पे लिहल 
जायी ठाँव 
बोले के मौका 
माइक पे मिली 
बड़का फरेम में फोटो खिंचाई 
मुखड़ा के चौखट खिली 
बुड़बकाही मत बतियाव !
मठाधीशी जिंदाबाद 
अब नेता बन के 
बात पगुराव

त ए मठाधीश ! 
का मठाधीश !!? 
तुहूँ आ हमहूँ 
बानी जा भोजपुरिया 
पहिराईं जा टोपी 
बजाईं जा फोंफी 
बांटी जा गेयान 
कि 
मेरा भारत महान !!!

Saturday, August 1, 2015

भोला बाबा, रवा ठीक बानी नू !?

साभार-श्रीन्यूज डॉट कॉम

हे भोला बाबा ! आज से सावन शुरू बा, भदइया बेंग लेखा राउर भगत लोग के जमात पैदा हो गइल बा । रवा गंजेड़ी भंगेड़ी रहीं की ना अब के जाने बाकी भगत लोग राउरे नावें आपन मन के मतवाला जरूर बनाई । 
अब कुछ भगत लोग अपना के भोला के सेना कहेला लोग । अब सेना चली , त अस्त्र शस्त्र चहबे करी... त ए बाबा, रउरा त्रिशूले भांजी... भगत लोग हॉकी सटीक , तमंचा, गुप्ती , तलवार भाला सब से लैस बा । अब चुनावी टिकट से पहिले नेता लोग आपन शक्ति प्रदर्शन करे ला, ओइसही ई भगत लोग अपना के एक दोसरा से जब्बर देखाई। अब रवा के चिन्हे के बा की कवन भगत बरियार बा ।

कुछ भोजपुरिया भगत लोग जे साल भ लहंगा रिमोट चोली कुर्ती के बटन में आपन सुर ताल के अझुरईले रहे, उहे सुरताल पे राउर भजन गा के औघड़ बन जायी लोग । अब रावा लोलिपोप के धुन पे तांडव जनी करब। कमर दोमे भर के काम बा ।

मौसम भी दोरस करत बा, कभी बरखा बुनी त कभी पसीना से चुनचुनी । आ ओपे सेकेंड सेकेंड पे पानी उझिलात। बाबा रवा बड़ा फेरा में पड़ल बानी... पानी में बोथईला से सर्दी बोखार आ देह में दरद नईखे नू ? होइबो करी त के देखेवाला बा ? कराहत होखब त बम बम के आवाज में भला के सुनो... जाये दीं ए बाबा ! होत फजीराहे एक पाता कालपोल आ सिट्रीजिन चढ़ाईब । निमुस्लाइड बैन बा, बाकी एहिजा खूब मिलेला । अब जान बुझ के गलत दवाई ना चढ़ाईब । लहसुन त खाईं ना ? ना त एकपोटिया लहसुन के चाय मे खौला के पियति त आराम मिलित । एक पाकिट बाबा रामदेव वाला दिव्य पेय चढ़ाईब, आपन मलकिनी से काढ़ा अवंटवा लेब । भोरे भेंट करब, तब ले बम बम

Thursday, June 18, 2015

ग्राम कथा : हमार गाँव पवना (भोजपुरी ई-पत्रिका "आखर" में प्रकाशित)

पन छोटहन नांव के उल्टा बडहन गांव ह पवना । नांव पे मत जायीं, पवना-पवनी भला इ कवनो नांव ह ? इ सही बा कि जगह के नांव से ओह जगहा के उंच-नीच के मालूमात होखेला बाकी एहिजा गांव के नांव से कथानक के कवनो लाग लपेट नईखे । विशेष में इहे बा कि मिसिर बाबा माने कथाकार के लईकाई के देह में एहिजे के धूर लपेटाइल बा । आउरी छोट-बड विशेषता बा, राउर नजरी के सोझा आगे आई ।
लीं गांव के नांव से शुरू भइनी आ एहिजे अटक गइनी । कहे के ढेर बा, आ एतने ना रउरो सुने के ढेर बा... मिसिर बाबा के परबचन !!!
अब रउओ इ मत कहब कि मिसिर बबवा का-का लिखत रहेला । अब पवना जईसन गांव प लिखला के माने का, जहाँ न कवनो ताजमहल बा, ना कवनो चमत्कारी मंदिर-मस्जिद भा दरगाह के नामो निशान । त मिसिर बाबा काहें  आपन मगज के कचरस प दोसरा के मगज पकावत बाड़े ।
बाकी पढ़ लीं, मने-मने गुन लीं, काहे से कि कबो कबो कचरा प मंदिर के चढावल फूल भी भेंटा जाला ।  कवनो हरजा नईखे, आ पढला के बाद लेखक प भुनभुनाइब मत... काहें से कि एह रचना खातिर कथाकार के नोबेल पुरस्कार मिली, राज के बात बा... इ हम आजे भोरे-भोरे सपना में देखनी ह ।
अब रउआ नक्शा पे पवना के खोजब त जहुआ जाइब । एह से हम एह गांव के ठीक ठीक रस्ता  देखावत बानी । गवें-गवें चलीं हमरा जोरे, पैदल भा गाड़ी से भा मन के कोरे कोरे, रास्ता आसान बा । मन मनसायी ना, आ कबो अकबकाई ना । त बाँध लीं फेंटा आ गोडे जूता चमरेटा । लीं सिरिराम जी के नाम आ करीं परसथान ।
  

बिहार के भोजपुर जिला के नांव जानत होखब !!! 
ना...!!!?
अरे उहे जवना के ढेर लोग अबहुओं आरा जिला कहेला ।
हँ हँ हँ.... ठीक बुझनी । उहे...
त कुछ बरिस पहिले तक भोजपुरिया इलाका में एगो कहावत चलत रहे- “ए०बी०सी०डी०” माने आरा, बलिया, छपरा आ देवरिया जिला । अब एह में आरा, छपरा त बिहार में भईल, आ बलिया-देवरिया उत्तरप्रदेश में । अब एह ए०बी०सी०डी० के पदवी काहे मिलल एकर कहानी तनी अंदरूनी ममिला बा, जवन एह क्षेत्र खातिर बदनामी जईसन कह सकिला, बाकी हम ना कहब । ज्यादे जाने के बा त बिहार-बंगाल के कोईलरी के लोगन से मिलीं, बता दिहें । रंगदार- लठैत इहे चार जगहा से रहन आ ओह में आरा सबले आगे रहे। इनका लोग से दहशत रहे । कहावत रही स-
“जिला में जिला आरा, आउरी सभे जिल्ली । बीरन में बीर कुंवर सिंह आउरी सभे बिल्ली ।।”
भा- “आरा जिला घर बा, कवन बात के डर बा ।”
त जे बा से की एह कहावत के थोर-बहुत छाप एह गांव में भी रहे । बाबु साहेब( लईका भा सेयान) आपन बबुआनी ना छोडत रहन । भले घरे सतुआ प जिनगी कटत होखे गांव के गान्ही चउक ( गाँधी चौक) प इनका सभे के रईसी देखे के मिल जात रहे । पनेहेरी के दोकान प बही के केतना पन्ना भराइल बा इ त उहे पनेहरी जाने । बाकी बाबू साहेब के ठाट रहे । आउरी भेद के बात कहके आपन गाँव के नांव ना नू हंसायिब । खैर अभी गाँव की सिवान धरीं ।
आरा के जीरो माइल से दू किलो मीटर आगे गड़हनी रोड प बढब, त तेतरियां गांव भेंटाई । एहिजा से एगो रास्ता बाएं गईल बा जवन सहार तक जाले, बस इहे पकड़ लीं । कहीं मुड़े के नईखे इहे राह पवना जाला । तेतरिया से 14 कि०मी० पड़ी पवना । अब गांव में घुसते जवन नजारा मिली त रउओ कहब कि जवन गांव प हेतना बतरस लिखाइल दूरे से उजाड़  लउकत बा । अरे महाराज ! घबराई जन इ उजाड़  जमीन त इ गांव के विशेष पहिचान देले बा । एकर चर्चा आगे मिली । आगे बढ़ीं त एगो चउरस्ता आई, जवना के एगो नाम देवल बा- गान्ही चउक ।
ना ना...!!! गान्ही बाबा से जुडल एहिजा कवनो अईसन बात नईखे । अब पुरनिया लोगन के सरधा से राखल एह नाम के महत्व ढेर बा । इहे चौक से एगो अउर  रस्ता फुटल बा जवन सन्देश जाले । एह रस्ता के कारण  गांव तीन-चार टोला में बंटा गईल बा ।
घबड़ाई जन !!! अब कहीं नईखे जाएके, इहें गान्ही चउक प सगरी गांव के भेद खुली । मिसिर जी के गांव के पहिचान करीं, मिसिर जी के मुखारविंद से उवाचरित । मिसिर बाबा के अलगे पहिचान बा एहिजा । इहाँ इनकर आस्तित्व इनकर बाबा के नावे जानल जाला । फलाना बाबा के नाती-पोता हवे । त उहे फलाना बाबा के पोता के लइकाई  से जुडल कुछ इयाद में गोता लगायीं जा ।
त गांव में प्रवेश भईल आ गान्ही चौक प पहुंचनी कि लोग बाग के नज़र में आ जाईब कि गांव खातिर केतना पुरान बानी । जान-पहिचान ढेर होई त पंवलगी शुरू हो जाई ।
“गोड लागीं ए बाबा ! ढेर दिन पे...”
“और हालचाल ठीक बा नू !!??? अभी रहे के बा नू ? साँझ के भेंट करब...”
एह गान्ही चउक से लेके मिसिर जी के मकान तक सड़क के दुनो ओर दोकान बाड़ीसन । एक से बढ़ के एक जिनिस के सामान भेंटा जाई । चाय के गुमटी से लेके खीरमोहन के झांपी तक । लकठो आ घुघनी के खोमचा से लेके ताड़ी के हांड़ी तक । मजमुआ इतर से लेके रेक्सोना के बोतल से फुहार फेंकेवाला सेंट तक । मरकिन के कुरता से लेके सिलिक के अंगिया तक सब एहिजे भेंटा जाई ।
अब अचकचायीं, दम धरीं... ढेर चीज भेंटाई देखे के... लीं गान्ही चउक प गंगामात एह सुगंध के निशा में त हम भुलाईये गईनी । मीठ आ तनी कासाह गन्ह एह गांव के एगो विशेष मिठाई के ह । अब कहब त हँसब मत... एह गांव खातिर इहे मिठाई बंगाली रसगुल्ला ह, आगरा के पेठा ह । अच्छा अब एकर नाम बता देत बानी । इ ह जिलेबी, आधा पकल जामुन के रंग के जिलेबी, तीसी के तेल में के छानल जिलेबी । गरमा गरम खाईब, त इ भुला जाईब कि केतना खईनी, रस के चुवत धार के अईसन सुडपब कि मन मिजाज तर हो जाई । खा लीं... अरे पचास गिराम आउरी लीं ...
अब जिलेबी प्रसिद्ध त एहिजा के चाट भी प्रसिद्ध । निराला, दिलवाला, दिल्लीवाला, कलकतावाला आ ना जाने का का... टाट के झोपड़ी में आगे सिंघाडा कचौड़ी, कोइला के चूल्हा प दिनभर पानी मिलत आ गरम होत मटर के छोला । ओह झोपडी में घुस के देखीं, गणेश आ लक्ष्मी जी के मूर्ति के साथे बदन उघाड़ हीरो आ कुल्हा के बल पे अटकल हिरोइन के फोटो जरुर भेंटाई । दोकानदार साहित्य के बहुत प्रेमी हवें, बिल्लो रानी चमन बहार लखनऊवाली के लिखल शायरी के किताब के चार लाइन भी लगयिले बा...
“सोना दिया सुनार को पायल बना दिया, दिल दिया यार को घायल बना दिया”
भा “ये खुदा हम तुमसे फरियाद करते हैं, मत भेज उधार मांगने वाले जो हमें बर्बाद करते हैं”
चाह-पानी के दोकान आ पान बीड़ी के दोकान अईसन दू जगह होला जहाँ गांव भर के खबर पहुंचेला । केकरा घर में आज हिंग के छौंका पडल बा इहो खबर मिल जाई एहिजा । बाकी रंज खुसी स्नेह से पगायिल गाँव के बेयार में सनायिल राउर मन मतंगा पे कवनो लाग लपेट के लपट ना लागी । एह गाँव के बाजार के इहे महिमा कि दस गो आउरी गाँव-जवार के काज परोजन आ बिध-व्यवहार के, मय नेवता-पेहानी के, खाजा-खजुली-बेलगरामी के सभकर वेवस्था कर देवेला । मास्टर हनीफ बैंड के पिस्टन से रामधुन के साथे राजा राजा करेजा में समाजा वाला गीत भी बाजेला ।
कुल मिलाके एह गाँव के बाजारे गाँव ह भा बदलत सामाजिक व्यवहार के ब्यापार करत गाँव अब बाजार ह । बाकी कुछो होखे, इ मिसिर जी के गाँव ह आ आपन गाँव के बडाई करब... रउआ  बुझे के बा त बुझ जाईं की गाँव बदल गईल बा ।  बाज़ार जादे आ व्यवहार कम हो गईल बा । मिसिर जी के लाल टीका देखि केहू पंवलागी भले जन करे बाकी ललका झंडा जरुर देखा दी ।

अब रउआ एह गाँव में अइनी त दुआरे आयीं, लचिदाना आ बतासा से खरमेटांव करीं । मुंह मीठ करीं आ जवन जबुन देखनी ओकरा के मने मत लायीं । गाँव ह हमार, हमरा खातिर त माई के आँचर ह, एही गाँव के धूर देहीं में लागल बा । जबुन ना कहब... ओइसे गाँव के दक्खिन सिवान प लिखल बा- आदर्श गाँव पवना में पधारने के लिए धन्यवाद ।

(इ कहानी- भोजपुरी के ई-पत्रिका आखर के फरवरी-2015 अंक में छपल बा । भोजपुरी साहित्य के पत्रिका पढे खातिर आखर के वेबसाइट www.aakhar.com पे जाईं )