Friday, April 23, 2010

बेपेनी मिसिर के लोटा

लोटा जईसन चीज आज चुहानी (रसोई) से लापता हो गईल बा । कभी कभी लउक जाला  । लोटा के महत्व कम ना होखे । आज उ लोटा के रूप परिवर्तन हो गईल बा आ एकर जगह मग आ जग ले ले बा । पढ़ीं इ व्यंग्य के जेकरा माध्यम से लोटा के महत्त्व बतावल गईल बा... - शशि रंजन मिश्र



लोटा भारतीय गँवई संस्कृति के रीढ़ ह । विश्वास ना आवे त कवनो गाँव वाला से पूछीं । लोटा के बारे में विस्तार से बतइहें । अब शहर के संस्कृति में लोटा के परयोग नइखे । बोतल संस्कृति में लोटा के आस्तित्व ऐसे लापता भईल बा, जईसे की घोड़ा के माथ से सिंघ... भोर के पहिला काम करे खातिर भी अब लोटा के जरुरत नइखे । विदेशी शौचालय बा... जवना में नल आ टोंटी लागल रहेला |  बटन दबायीं... त पानी के अस फुहार निकली, की राउर सब कईल-धरल पे पानी फेर दी । लोटा वाला झंझट नइखे । ना हाथ माँजे के झंझट... ना लोटा माँजे के... सब एटोमैटीक । विदेशन में त इ पानी के भी जरुरत नइखे, हमनी के जवना के विद्या भा  सरस्वती कहि ला जा ओही कागज के इस्तेमाल करके सरब सती कर दियाला ।

बाकि कुछो होखे... हम भोजपुरियन के त पहिचान ह लोटा । एगो प्रसिद्व गीत के तर्ज पर कहब त "जीते लोटा मरते लोटा, देख तमाशा लोटे का"... बबुआ के जनम भईल त फुल्हा लोटा के मांग भईल । गरम पानी से भरल लोटा सउर में रखायिल। आ बबुआ के बाबा, जब भगवान के दुवरा गईले त लोटा एहिजे छोड़ गईले । त बबुआ के बाबु, पीपर के पेड़ पे माटी के लोटा टांग अइले... की के जाने भगवान किहाँ मर-मैदान जाये खातिर लोटा भेंटाई कि ना । त जनम से मरण तक लोटा संगे रहेला । टीवीया पे रामाएन देखले होखब त ध्यान होखी... ब्रह्मा जी कहीं जास त साथ में लोटा जरुर राखत रहन, टोंटी आ हैंडलवाला लोटा । पुरनिया आदमी ना जाने कहाँ जरुरत पड़ जाये । उहे हाल ऋषि मुनि लोग के भी रहे, जहाँ जास लोटा साथे । पानी पिए से धोवे तक के व्यवस्था साथ रहे ।

अब लोटा रखेवाला के गंवार मत बुझब... !!! बड़ा चलाक होले आ लोटा के उपयोग हर तरीका से करे के जानेले। अब उदाहरण लीं अनगुत्हीं उठ जइहें सिवान तरफ जाये खातिर... अरे तहसीलदारी में ना... दैनिक किरिया करम करे खातिर । त भर लोटा पानी एक हाथे झुलावत बधार आ सिवान ओरे ओरिईहें (जयिहें)... आ ओने से लवटत ओही लोटा में केहू के खेत के मटर भा कवनो तरकारी, कुछो ना त एक लोटा माटिये भरले अइहें । अब हमरे बाबा, रोज ओने से माटी भर के लावत रहन आपन लोटा में... बरिस भर में दुआर पे चबूतरा बाँध देलन । दुसरका परयोग बा हथियार के तौर पे । बेपेनी मिसिर लायिकायींए से बड़ बदेल, नवका शादी भईल रहे । बाकि मेहरी के कुटमस करे में आगे... आखिर कब तक सहो, एक दिन उ मेहरारू फुल्हा लोटा अस चलवलस जैसे कि हैदर अली के तोप के गोला अंग्रेजन पे गिरल...!  बेपेनी मिसिर के निचिला जबड़ा आज तकले बायें करवट लेले बा...| तिसरका परयोग बा फुल्हा लोटा से इस्तिरी देवे के । अब गाँव में बिजली के सुविधा त अब आईल बा, उहो कहे खातिर... शहर में त बा की बटन दबायीं, इस्तिरी गरम हो जाई आ कुरता मिरजई के सिलवट के अइसन सपाट बनायी कि हेमा मालिनी के गाल ओइसन चिकन ना होई... बाकि गाँव में मिरजई के सिलवट सपाट या त तकिया तरे रख के करीं ना त लोटा गरम कर के इस्तिरी करीं । फुल्हा लोटा में लकड़ी के जरत कोइला डाल के कपडा पे इस्तिरी करीं त एक-एक सुता अईठन छोड़ के अस सीधा हो जाई जैसे कि मोरचा पे जवान...।

हमार गाँव में जब केहू किहाँ कवनो मरनी भईल त एह लोटा के महातम बढ जाला। मय गाँव के नेवता दियाइल बा की फलनवा बाबु किहाँ भोज बा। आ बभनटोली में एह दिन त जैसे त्यौहार के माहौल रहेला। मय टोला के लोग भोरहीं से लोटा ढोवे लागी। घर से बधार आ बधार से घर... माने आलम इ कि एक लोटा घर में घुसत बा त ओने से दोसरका निकलत बा । कहल जाला कि बाबु कुँवर सिंघ त पतल के दोना पानी में बहा के अंग्रेजन के डरा देले । अब एह बभन-टोल के लोटा के आवागमन देख के त गामा पहलवान के भी आपन पाचन शक्ति पे चिंता हो जाई । आ लोटा के संख्या देख के फेर से महमूद गजनवी कहीं आक्रमण मत कर देवे की हेतना लोटा भेंटाई... त अफगान के सभे हाथ में लोटा हो जायी। खैर गली के मुहँ पे गंगाराम नाऊ लउकल।

"बस करीं ए बाबा... ! लोटा के मुंह जजिमान किहाँ फेरीं, बीजे भईल बा " (भोजन खातिर पहिलका बोलाहटा न्योता आ भोजन के समय के दुसरका बोलाहटा बीजे भा विजय कहाला)।

एतना सुनते घरभरन मिसिर लगले चिचिआये - "ए बिनेसर ! ए बेपेनी !!! कहवा बाड़ जा ? चल बीजे भईल बा, आ नन्हका कहवा बा ? का कहत बाड़ स्कूल गईल बा...!!! ओकर माई जानत रही की आज अंगेया बा त काहे के स्कूल भेजली हा !?  केतना नीके तरी पूरी-बुनिया खाईत... आ लोटा में भर के रसगुल्ला घरे ले आईत । ए बबुआ बेपेनी ! बोला ले आव ओकरा के स्कूल से..., पढाई काल कर लिहें..., जजिमान के मरे के... आ भोज मिले के मौका बेर-बेर ना आवे... !!!

मय बीस घर के ब्राह्मण बाले-बच्चे चल देले जजिमान किहाँ जीमे। रास्ता में टेंगर मुसहर के छोटकी बेटी सूअर चरावत रहे, एतना जाना के एके साथे लोटा लेले देख के खूब खुश भईल, आपन माई से कहलस-
"आज सब बभनन के पेट ख़राब हो गईल बा, जात बानी सूअर लेके ओनही । आज सभे सूअर अघा जयिहें।"
ओकर माई ठठा के हंसल- "अरे बिहुनी...! इ बभनन के पेट नइखे खराब, जजिमान किहाँ जीमे जात बाडन सन । देखत नईखीस... की हाथ में लोटा आ कान्ह पे गमछी बा । दबा के खयिहें सन आ लोटा के पानी से तह लगयिहें सन । गमछी में छाना बाँध के आई जवना के घर के जनाना लोग टूका-टाकी खा के आपन सरधा बुता लिहें। सूअर आज ना काल हंकिहे... ।"

अब हमार गाँव में तरह-तरह के लोटा रहे । हमार बाबा स्टील के लोटा राखत रहन । पूजा पाठ करावे में विद्वान, कवनो जजिमान के काज में फेरहिस्त(लिस्ट) में लिखलन की स्टील के लोटा चाहीं दू लीटर पानी आंटेभर । खैर जजिमान का करो... मरल बाप के सरग में पानी इहे पंडीजी के मुँहे मिली, एह सोच के बड़हन भारी स्टील के लोटा देलस । जजिमान के बाप सरग में अघयिले की ना उहे जानस, बाकि हमार बाबा अघा गईले । सबेरे से साँझ तक लोटा साथे रहत रहे । हमार दुवार पर के चबूतरा उहे लोटा के देन ह ।

बाकि सबसे नीक लोटा रहे बिनेसर मिसिर के घरे । फुल्हा लोटा अस बजनगर की छोट लईका से उठे ना । इ लोटा बिनेसरबो के माई के नईहर के रहे । जनमजुगी लोटा... जवना के बिनेसर ढोवत रहन । बरिसन बितला के बाद भी उ लोटा के चमक अस की लोग सोना के भरम में पड़ जास... बिनेसरबो के माई गवने लोटा पेठवली आ साथे कहाव भेजवली की- "मईयां रे ! एह लोटा के आम के खटाई भा इमली के छोड़ कवनो चीज से मत मंजिहे..."

लोटा के चमक से बिनेसर मिसिर के सीना चौड़ा रहत रहे.. बाकि इ चमक आस-पड़ोस आ गाँव जवार में खटकत रहे । अब बात बा, बेपेनी मिसिर के बियाह के पहिले के। अरे लीं परिचय ना करईनी ह पहिले, उहे...!!! बेपेनी मिसिर, बिनेसर के छोट भाई हंवे आ पंडित घरभरन मिसिर के छोटका लईका... त बबुआ बेपेनी जईसहीं दसवां क्लास के चउकठ तक गिरत पड़त पहुचलन... त बियाह जुकुत लईका देख अगुआ के साथे पछुआ भी जुटे लगले... घर में रोज किसिम किसिम के तियना-तरकारी के सुगंध उड़े । अगुआ के गोड़ धोवे से लेके उनकर बिदाई के बेर ले उ फुल्हा लोटा दलान में चमकत रहे | अब बबुआ बेपेनी मिसिर पसन्द आवस भा ना आवस, बाकि एक बार अगुआ के नज़र पे लोटा चढ़ल त चढ़ल | खैर बेपेनी मिसिर के बियाह हो गईल बाकि तब तक उनका घर से उ लोटा के नामो-निशान मिट गईल। एकरो पीछे भी एक किस्सा बा-

एगो अगुआ आईल रहे रिश्ता करे खातिर । उहे लोटा रखायिल दलान में । कुंडली के गणना मिलावल गईल छतीस में से बत्तीस गुण मिलल । अब मनना के बात रहे...  त अगुआ जी लगले सकारे । अपना मनही कहले- जोड़ा बैल के साथे एगो धेनुहा गाय आउर पचास हजार...! तब बबुआ के बाबा के डिमाण्ड की इ लोटा के जोड़ा लगायीं..., तबे केवाड़ी के पीछे से उनकरे बूढी फुस्फुसयिली की एगो चांदी के गुड़गुड़ी भी चाहीं...! लईका के फुआ के कहनाम की बनारसी साड़ी ... कोरहर ! अगुआ जी के थूक सटके लागल, बाकिर खखार के कर लेले सब करार... बाकि होते बिहाने दिशा मैदान के बहाने लोटा लेके जे परयिले त फेरु राम जनकपुर ना अइले...!!! दुआर पे असरा लगवले रह गईले बबुआ के आजा, चाचा, गोतिया-नईया की अगुअवा आई त दु चार चीज आउर मंगाई । बाकि अगुअवा के गईले बड़ अबेर भईल, अनमुनाहे के गईले सबेर भईल। तब बिनेसर बो के खटका बुझाईल, लगली गला फाड़े-
"आही हो आही तीन सेर के लोटा , लेके भागल अगुअवा निगोड़ा..."
धाव धाव ए बबुआ बेपेनी अगुअवा दस कोस से अधिक ना होई गईल।
बाकि लोटा के चमक फेर कबहूँ ना लउकल। मय गाँव जवार ढूंढा गईल, ना अगुआ मिलले ना लोटा । लोग धीरज देस की जाय दीं ए बाबा ! उ लोटा राउर भाग्य में इतने दिन खातिर रहे। दोसर अगुआ आई त ओकरो से डब्लाह लोटा ले लेब।

खैर लोटा चल गईल, अगुआ के साथे। बाकि ओकर महत्व बढ गईल । एक लोटा के जाये से गाँव में लोटा के कमी ना होखे । बियाह हो गईल बेपेनी के... त बरिस भर के बाद फेरु लोटा चल गईल । बेपेनीबो के हाथे... बेपेनी के ठोर तनी बायें ओरी झुकल बा । किस्सा पहिलहीं कह देले बानी । बाकि ओह दिन से गाँव में लोटा के इ उपयोग देख के आउर लोग संभल गईलें । आ धीरे धीरे सब फुल्हा लोटा बक्सा में रखा गईल... आ हलुकावाला स्टील के लोटा चमके लागल।
अब लोटा चाहे फुल्हा होखे, पीतल के होखे, स्टील के होखे भा अल्मुनिया के हमनी के गँवई संस्कृति के अभिन्न अंग बा । जवना के महत्व के नकारल ना जा सके । आ लोटा के चमक अइसन ह की देख के राउर चेहरा भी चमक जाई । त प्रेम से लोटा मांजी, काहे से की लोटा अइसन चीज ह जेतने मांजब ओतने चमकी ।

(इ व्यंग्य के पृष्ठभूमि, प्रकाश उदय भईया के कविता संग्रह – “बेटी मरे त मरे कुंआर” आ समकालीन भोजपुरी साहित्य में छपल उनकरे एक कहानी से प्रेरित बा- शशि )



1 comment:

  1. शशि भाई,
    सबसे पाहिले ता बहुत बहुत बधाई और शुभ आशीर्वाद,ई लेख के भोजपुरी लेखन प्रतियोगिता में प्रतःम स्थान पीला खातिर ....

    तोहार ई अनमोल रचना पाहिले ही पढ़ लेले रहनी मगर कुछ टिपण्णी ना कर पैईनी कारन ,हमरा लगे कवनो शब्द ना रहल जेसे हम कवनो टिपण्णी कर पाई बहुत सोचनी मगर अभी भी समझ नईखे आवत कि कैसे तारीफ करी तोहार ,,बहुत ही उम्दा किस्म के के हास्य रचना बा और शुद्ध भोजपुरी में लिखल ऐसन रचना हमरा पहिली बार पढ़े और देखे के मिलल,
    ई रचना के पढला के बाद सही में ई अहसास भईल कि एगो लोटा के महत्ता केतना रहल और बा ,पूजा से लेके खेत जाये तक ,एसे अब ता हमहू कहब कि
    "लोटा में गुण बहुत बा सदा रखिये संग "
    बहुत बहुत साधुवाद बा ई लेख खातिर आगे भी और इंतजार रही

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