Sunday, October 4, 2015

जीउतिया: बलिदानी जीमूतवाहन के ईयाद के परब

 
 [ एह लेख के प्रकाशन भोजपुरी साहित्य के ई पत्रिका आखर के सितंबर 2015 में हो चुकल बा पत्रिका पढे खाति आखर के वेबसाइट www.aakhar.com पे जाईं ] 

जीउतिया: बलिदानी जीमूतवाहन के ईयाद के परब
ए अरियार ! का बरियार !!
बैठे के दे देबो सिंहासन पाठ
राम जी से कहिह
फलनवा के माई भुखल बाड़ी जिउतिया ......
इहे कह के पीढ़ा के जवना पे जीउत महाराज बिराजेलें पाँच बार उठावल बईठावल जाला ।  ई कवनों बेद पुराण के मंतर ना ह । लोक संस्कृति में मुंहे मुंहे फैलल लबेद ह । जवना में कवनों विशेष लिखित विध ना होखे । बरत त्योहार के विध के एक पीढ़ी से दोसर पीढ़ी तक, एक समाज से दोसर समाज तक देखादेखी आ मुंह से कहल बातन से ही आगे बढ़ेला । हरेक परब के अलग विध, व्यवहार आ मान्यता आ सभे अलिखित । चिल्हो- सियारो के कथा, बहुला के कथा आ नाजने केतना लोक कथा । आज के वैज्ञानिक जुग में एह तरह के हरेक परब के बुद्धिजीवी लोग नकार दिही । बाकी कवनों निर्णय लेवे से पहिले लोक परब आ ओकर पाछे के छुपल गूढ रहस्य के जानल बहुत जरूरी बा । काहे एह परब के लोक व्यवहार में एतना प्रचलित करल गईल ? काहे लोगन के धरम के भाय देखा के एह परब के मनावे खाति बाध्य कर दिहल गईल । अयीसने कुछ पहलू के छुवत एह लेख के माध्यम से पढ़ीं जीउतिया जईसन लोक परब के बारे में ।
हमनी के सामाजिकता के मजबूत करे में लोक व्यवहार, संस्कार, संस्कृति आ परब-त्यौहार के विशेष महत्व बा । सभे परब-त्यौहार के पाछे पुरखन के वैज्ञानिक सोच जेहमें शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य के बढ़ावे के, पारिवारिक आ सामाजिक ढांचा के मजबूत करे के गूढ आ गहीर बात छुपल बा । अईसन परब-त्यौहार में तीज आ जीउतिया  के नाम सबसे ऊपर बा ।
जीउतिया भा जीवित्पुत्रिका व्रत के माने ह कि संतान के उमीर- अर्दोआय  बढ़ावे खाति कइल जाला । जेकर संतान ना होखे उहो मेहरारू लोग एह बरत के करेली । जीउतिया आश्विन महिना के अनहरिया (कृष्णपक्ष) के अष्टमी के मुख्य रूप से भोजपुरी बहुल इलाका पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार आ मिथिलाञ्चल में मनावल जाला ।
जीउतिया के कथा
जीउतिया के प्रचलित कथा लोग एह बरत के दिन पढे ला । कथा में राजा जीमूतवाहन के आपन प्रजा के प्राणरक्षा में आपन प्राण के आहुती देवे के आ फेर प्राण हरेवाला से लमहर उमीर के आशीर्वाद पावे के चर्चा बा । कथा शंकर जी के माध्यम से पार्वती जी के सुनावल जाता । हिमालय क्षेत्र में एगो गंधर्व के राज्य रहे । राजा जीमूतकेतु बहुते दयालु रहलें हमेशा धरम करम में लागल रहस , एहसे जनता स्वछंद हो गईल रहे आ एक दिन महल के घेर लेलस । राजा आपन राज आपन गोत्र के लोग के सौंप के आपन बेटा जीमूतवाहन के साथे मलय पहाड़ पे चल गईले । एक एक रोज जीमूतवाहन घुमत रहले त एगो पहाड़ के चोटी पे हड्डी के ढेर देखाई पड़ल । पुछला से मालूम पड़ल की ई सब गरुड़ के करामात ह । आगे बढ़ले त एगो बूढ़ी रोवत रहली । पुछलें त उ कहली-
“हम नागलोक के रहेवाला हईं । ई जेतना हड्डी देखत बाड़s उ सब नाग के हड्डी ह । गरुड़ से करार बा कि रोज एगो नाग उनकर भोजन बनी । आ जेह दिन गरुड़ के भोजन ना मिली उ सभ नाग के एके बेर खतम कर दी । आज हमार बेटा शंखचूड़ के बारी बा । एही से रोवत बानी , एहिजा गरुड़ से गोहार लगावे खाति आइल बानी ।“
जीमूतवाहन ओह बुढ़िया के समझवले- “हम तहार बेटा के जगह पे जाईब” ।
आ लाल कपड़ा में अपना के लपेट के बलि स्थान पे सुत गईले । गरुड़ आईले आ लाल कपड़ा में लपेटाईल जीमूतवाहन के पंजा में दबा के उड़ गईले आ पहाड़ पे ले जाके बईठ गईले ।
गरुड़ के आश्चर्य भईल कि पंजा में दबोचला के बादो तनिको आह-उह के आवाज ना आइल । उ लाल कपड़ा हटा के देखले त जीमूतवाहन रहलें । उनकर परिचय पुछले त जीमूतवाहन सब किस्सा सुना दिहले । गरुड़ उनकर बहादुरी अवरू दोसरा के प्राण-रक्षा खाति आपन बलिदान देवे के हिम्मत से बहुत प्रभावित भईले । खुश होके आशीर्वाद में जीवन दान दिहले आ आगे से नाग के बलि लेवे से मुक्त कईले । जीमूतवाहन के अनुरोध पे जेतना नाग मरल रहले सब के जीवन वापस मंगले । गरुड़ प्रसन्न भईले, सभ नागन के प्राण लवटवले । जीमूतवाहन के राजपाट भी वापस आवे के आशीर्वाद दिहले । एह तरी जीमूतवाहन के प्रयास से नाग-वंश के रक्षा भईल आ तबे से बेटा के रक्षा खाति  जीमूतवाहन के पूजा के चलन शुरू हो गईल।
जीमूतवाहन :  जातक कथा के नायक से कुलदेवता बने तक
बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध के आदेश बा – “चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” ।
भारतीय समाज में बहुजन के अर्थ होला सामान्य वर्ग चाहे उ गांव के रहेवाला होखे भा शहर के । एह सामान्य वर्ग में आपन बात आ उपदेश के पहुंचावे खाति लोक कथा आ उपमा के सहारा लिहल गइल । आ इ सब लोक कथा के माध्यम से लोग आपन भाषा (सकाय निरुत्तिया) में उपदेश के इयाद राखे एकर छूट रहे । बौद्ध धर्म के एह शैली के कारण बौद्ध साहित्य में अनेक कथा के समावेश भईल । भगवान बुद्ध से लेके बाद के चौरासी सिद्ध लोग तक अनेकानेक पात्र के रचना भईल आ ओसे जुडल छोट-बड़ कथा विकसित भईल । एह सब कथा के जातक कथा कहल जाला । आ एह जातक कथा से लगभग हर परंपरा आ धर्म प्रभावित भईल । जातक कथा के अलग अलग रूप स्थान आ समय के अनुसार परिवर्तित आ विकसित भईल । संस्कृत ग्रंथ बृहत्कथा में बैताल पच्चीसी के कथा ( 16वीं कहानी) आइल बा । बृहत्कथा के रचना 495 ई० पूर्व में राजा सातवाहन के मंत्री गुणाढ्य कईले रहन । बुद्ध के काल भी 563 ई० पूर्व से लेके 483 ई० पूर्व तक के ही बा । एह से बृहत्कथा में जातक कथा के समावेश बा । बृहत्कथा के भाषा प्राकृत रहे आउर एह किताब में लगभग 7 लाख छंद रहे । कश्मीर के कवि सोमदेव भट्ट एह किताब के संस्कृत में अनुवाद कईले आ नाम दिहले “कथासरित्सागर” । “वेताल पन्चविन्शति” यानी बेताल पच्चीसी “कथा सरित सागर” के ही भाग ह । बेताल पच्चीसी  के कथा के बहुत भाषा में अनुवाद भईल । ई कहानी खाली दिल बहलाव खाति ना रहे, एकर जातक कथा में जीवन के सार्थक करे के अनेक गहीर बात कहल गइल रहे ।
सोलहवीं कहानी में जीमूतवाहन के कथा बा । कथा में जीमूतवाहन के महान आत्मा, महापुरुष बनावल गइल । एह पात्र के महानता से प्रभावित मगध, मिथिला, बंगाल, उड़ीसा तक के लोग अपना के एह पात्र से जोड़ लिहले । जीमूतवाहन एक जगह के ना रह गईले । जातक कथा से निकल के धर्म आडंबर रहित लोकधर्म आ लोकपरब के देवता बन गईले । समाज के उच्च वर्ग से लेके दलित वर्ग तक ले पुजल गईले । सामाजिक समन्वय के जवन स्थापना जीमूतवाहन से भईल उ कवनों आउर कथा आ पात्र में ना लउके । मगध  के महादलित जाति “भुईयाँ” अपना के जीमूतवाहन से अधिका जोड़लस । सामाजिक रूप से दलित आ बहिस्कृत एह समाज के छूआछूत के बंधन में बान्ह के परब त्योहार, रीत-रिवाज में भी कवनों स्थान ना दिहल गइल रहे । महादलित एह जाति के जीमूतवाहन में एगो उद्धारकर्ता आ एगो अईसन देवता के रूप लउकल जेकरा के अपनावे में कवनों रोक ना रहे । भुईयाँ जाति जीमूतवाहन के आपन कुलदेव बना लेले । जीमूतवाहन के आपन प्राण के आहुती देवे के पुण्यतिथि के आपन कुलपर्व घोसीत कईलस । आ जीमूतवाहन के पुनर्जीवित भईला के खुशी में लगभग एक हफ्ता तक उत्सव मनावे के विधान कईलस । अब दलित जातियन के उत्सव पूजा पाठ के कवनों जानकारी त रहे ना, त लोक श्रुति के आधार पे आपन विध बना लिहले ।
बरत करे के लोकाचार
बरत से पहिले नेहाय खाय के विधि लगभग हरेक लोक परब में बा । सांसारिक करम से अपना के मुक्त करके शरीर आ आत्मा के साफ सफाई के दिन ताकि बरत में शुद्धि रह सके । बेटा बेटी से खानदान भरल रहे एह सोच के नेहान खाय के दिन अयीसने चीज खाये के विध बनावल गइल । मड़ुआ (रागी) के आटा के रोटी, सतपुतिया के तरकारी आ नोनी के साग । मड़ुआ के आटा खूब पसरेला, नोनी के साग आ सतपुतिया के लत्तर के साथे भी इहे बात बा, एगो लत्तर मय खेत के छाप लेवेला । खेतिहर उच्चवर्ग त शाक भाजी से शाकाहार कर ली बाकी दलित पिछड़ल वर्ग जेकरा भी एको धूर जमीन ना उ का खाई ? कुछ प्रदेश में मछली के शाकाहार मानल जाला । मछली के भेद ह सिधरी आ पोठीया । छोट मछरी जवन खूब अंडा देवेले आ आपन संख्या विस्तार करेले । कुछ जगह झींगा मछरी भी लोग एही क्रम में मानेला । त बरत के दू दिन  पहिले से ही मय गबड़ा- गड़ही, नाहर –पोखर ऊबिछ के मछरी मरायी आ नेहाय खाय के दिन एकरे सेवन होला ।
नेहाय खाय के दिन चूल्हा चौकी पबितर करके ओठगन ( आटा के ठेकुआ जे लगभग एक हथेली के बराबर होला) बनी। जेतना लईका-लईकी, ओतने ओठगन । ई ओठगन तनी कडक होला, मानिता बा की एह ओठगन के खईला से एकरे लेखा देह बरियार होई ।
होत पराते, किरीन फूटे से बहुत पहिले मय मेहरारू लोग उठी आ इहे ओठगन से सरगही करी । सरगहीयों के विधान बा । दू टूकी ओठगन चिल्हो आ सियारो के नाम पे घर के छान्ह छत पे फेंकाई की उहो लोग खा लेस । अब चील आ सियार एह बरत में कैसे अईलें एकर कवनों प्रमाण नईखे । सरगही के बाद पूरा 24 घंटा खाति निर्जला बरत शुरू होला । बरत के दिन साँझ के मय मेहरारू लोग एक जगहा एकट्ठा होके पुजा करी । एह लोक परब आ जातक कथा के बढ़त प्रभाव ही रहे की बाद में जीवितपुत्रिका व्रत कथा गढ़ दिहल गइल । शंकर भगवान आ पार्वती माई के बीच संवाद करा दिहल गईल कि जिउतिया के दिन जीमूतवाहन के पुजा करे के चाहीं । दान धरम के  बाकी एह पूजा में से लोक संस्कृति आ विधि के अलग ना करल जा सकल । पीढ़ा पे माटी के चिल्हो सियारो बना के सिंदूर चढ़ावल, नेनुआ (तुरयी) के पत्ता पे जीउतिया के स्थापन कर के पीढ़ा के उठावल-बईठावल कवनों वेद में लिखल ना मिली । लोक संस्कृति के परब ह , दू-चार गीत गंगा मायी के,  दू-चार गीत ब्रह्म  बाबा के आ हो गइल पूजा । पुजा के बाद लोग जीउतिया के आपन बेटा बेटी के पहिराई । जीउतिया बनवाए में भी सामाजिक विषमता रहे । सम्पन्न लोग बेटा खाति  सोना के आ बेटी खाति चांदी के जीउतिया बनवावत रहे । बाकी जे निर्धन रहे उ एगो धागा से भी काम चला लेत रहे ।
बरत के दोसरा दिन पारन कइल जाला बरत के तूड़े खाति । एह दिन बूँट के अंकुरी, मड़ुआ के दाना आ नोनी के कच्चा साग लिलल जाला । बूँट लगभग हर जगहा मिलेला एह से बरत के दुसरका दिन बूँट आ बेसन के विशेष कढ़ीनुमा व्यंजन बनेला । भोजपुर क्षेत्र में एकरा के टोरा कहल जाला । टोरा आ भात खाके बरत तुड़ल जाला ।
खान-पान के वैज्ञानिक पहलू
मड़ुआ के परयोग लोग प्रोटीन के स्रोत के रूप में करेला, एकर पानी सोखेवाला विशेष गुण के कारण पेचिश ग्रस्त रोगी के खिलावल जाला । मलशुद्धि करे में आ आंत के ताकत पहुंचावे में मड़ुआ के जोड़ नईखे । बाज़ार में रागी माल्ट के नाम से इहे मड़ुआ के सत्तू खूब बेचात बा । नोनी आ सतपुतिया रेशेदार आ सुपाच्य सब्जी ह । मड़ुआ, सतपुतिया से आंत के शोधन हो जाये आ बरत करके शरीर के आंतरिक पाचन क्रिया के तनिक आराम पहुंचावल आ फेर बूँट जईसन अनाज के खाना में शामिल करल पुरखन के वैज्ञानिक सोंच के परिणाम बुझात बा । ओठगन आटा, खांड भा गुड़ के मिलाके गाय के घीव में बनावल जाला । आयुर्वेद में किरीन फूटे से पहिले एह तरह के पकवान ( हलुआ, पुआ भा ठेकूआ ) खाये के कहल बा । एह परयोग से पित्त के शांति होला आ शरीर में अधकपारी जईसन रोग बाधा  ना आवे । आगे के 24 घंटा भूखे के बा त खाली पेट में पित्त के प्रकोप हो सकेला, एकरा के सामित करे के उपाय में सरगही खाये के कर दियाईल । पित्त के उत्पाती से पहिले ही पित्त ना बढ़े एकर उपाय कर दिहल गइल ।   
लोक परब लोग खाति बनावल बा । वैज्ञानिकता के धरम के आड़ देके जन मानुष मे प्रचलित कइल । लोगन के रहन सहन के सुधारल आ साथे साथे संस्कृति के रक्षा ही लोक परब के उद्देश्य होला । जीउतिता जईसन परब जवना में उंच-नीच, अमीर-गरीब के भेव भुला के माई आ संतान के परब बना दिहल गइल । धरम आ देवता के परे करके राजा जीमूतवाहन के गुण गावल गइल । एह दिन मेहरारू लोग बस इहे प्रार्थना करेला कि-  हे जीउत ! जैसे तोहार बलिदान के बदला में तहरा जीवन के अर्दोआय बढ़ल । ओइसहिन हमरो लईका-लईकी के अर्दोआय बढ़ाव ।                
संदर्भ :
1.    जीवित्पुत्रिका व्रत कथा, ठाकुर प्रसाद बुक सेलर्स, वाराणसी
2.    मगध की रहस्यावृत साधना संस्कृति – डॉ० रवीन्द्र कुमार पाठक
3.    बेताल बेताल पच्चीसी, विकिसोर्स डॉट ओआरजी
4.    बुद्ध, भारतकोश

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