Thursday, November 12, 2015

गोधन : औरतन के मानसिक रोग से बचाव के अनुष्ठान



(इ लेख भोजपुरी ई-पत्रिका आखर के नवंबर -2015 के अंक में छप चुकल बा )
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मानव शरीर रचना बड़ा जटिल बा । ओहमें भी मानव मस्तिष्क (दिमाग) के रूप रेखा आ बनावट अईसन कि आज भी वैज्ञानिक लोग एकर रहस्य ना बुझ पाइल । दिमाग (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित  होला आ  ई चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान ह । शरीर के सभे ज्ञानेन्द्रिय- आँख, नाक, कान, जीभ आ त्वचा सभके आवेग एही दिमाग से नियंत्रित होखेला ।  ज्ञानेन्द्रिय आ  दिमाग के बीच परस्पर दुतरफा संवाद होला,  बाकी सभे के कंट्रोल दिमाग ही करेला । संवाद के माध्यम शरीर में फैलल तंत्रिका जाल होला जे मेरुरज्जु से होते हुये दिमाग तक आयनिक करेंट के रूप में दिमाग के न्यूरान सिस्टम में पहुंचावे के काम करेला । मनोचिकित्सक लोग एही विद्युत प्रवाह (दिमागी तरंग) के एलेक्ट्रोनसेफलोग्राफी (Electroencephalography; EEG) के माध्यम से अध्ययन करके मनोरोग के पहचानेला ।  
मनोरोग  भा मनोविकार (Mental Disorder) एगो व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के उ स्थिति ह जेकरा के कवनों स्वस्थ व्यक्ति से तुलना करके सामान्य नईखे कहल जा सकत । स्वस्थ व्यक्ति के तुलना में मनोरोगी के व्यवहार असामान्य होला । मनोरोग मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन के वजह से पैदा होखेला आ एकर उपचार खाति मनोरोग चिकित्सा के जरूरत पड़ेला । मनोविज्ञान में असामान्य आ अनुचित व्यवहार करे वाला के मनोविकार से पीड़ित कहल जाला । शुरुआती साधारण दिखे वाला लक्षण समय पा के बढ़ जाला आ शरीर के नुकसान पहुंचावेला ।
मनोविकार के पाछे ढेर कारण होला जेहमें खानदानी, कमजोर व्यक्तित्व, सहनशीलता के अभाव, पहिले के कुछ बुरा अनुभव, तनाव, परिस्थिति आ असमर्थता शामिल बा । परिस्थिति जवना के सुलझावल भा पार पाइल दूभर होखे उ तनाव पैदा करेला । आ इहे मानसिक तनाव दिमाग में मौजूद रासायन के असामान्य करेला । आज के समय में तनाव समाज खाति सामान्य सा बात बा । लईकायीं में शिक्षा आ ओहमें बढ़त प्रतिस्पर्धा के तनाव, युवा में रोजगार के लेके तनाव, प्रोढ़ के भविष्य के चिंता में दिमाग तनावग्रस्त रहेला । कुल मिला के हर कोई तनाव से जूझ रहल बा । आ ई तनाव के रूपरेखा मानव समाज के बुद्धिजीवी होते तय हो गईल । आदिकाल से तनाव के उपस्थिती दर्ज बा आ एकर इलाज भी समयानुसार ग्रंथन में दिहल गइल बा । प्रकृति के नियम ह जवन चीज के जेतने दबाईब ओकर अंदर के ऊर्जा फफन के बाहर आवे के कोशिश करी । उदाहरण खाति गैस के गुब्बारा ले लीं । हवा भरल गुब्बारा पे अगर जरा भी कोई तनाव भा दबाव मिलल त अंदर के ऊर्जा (हवा) बाहर निकले के कोशिश करी । एही सिद्धान्त पे प्रेशर कुकर भी काम करेला । लगभग इहे परिस्थिति दिमागी तनाव के भी बा । तनाव के दूर करे के उपाय ना करब त ई नकारात्मक ऊर्जा राउर शरीर में कहीं ना कहीं नुकसान करी । तनाव के सबसे नजदीक के संबंध दिमाग से ही बा त दिमाग पहिला शिकार बनी । अब एह तनाव के कारण दिमाग के विद्युत तरंग (दिमागी तरंग) में हलचल होई । कुछ रसायन के विघटन होई आ असंतुलन के प्रभाव से मनोरोग के जनम होई ।
समाज के जब निर्माण भईल त पुरखा लोगन के वैज्ञानिक नजरिया एह तनाव आ एकर कुप्रभाव पे भी पड़ल । आज के तरह तकनीक से अनभिज्ञ समाज कवनों रोग के कारण आ निवारण के उपाय सामान्य आदमी के जीवन में रोज़मर्रा के काम बना लिहलस । गीत संगीत आ दैनिक चर्या के संतुलन से तनाव आ मनोविकार के दूर करे के माध्यम बनावल गइल । समाज के हर वर्ग आ हरेक वय खाति कुछ नियम के खोज करल गइल, जेकरा के साध के कवनों तरह के शारीरिक भा मानसिक बेमारी से बांचल जा सकत रहे । समाज में अईसन हरेक नियम के धर्म से बांध दिहल गइल । भारतीय समाज में स्थान आ परिस्थिति के अनुसार हर जगह कुछ परब, कुछ व्रत-त्योहार के रचना करल गइल ।
पुरुषप्रधान समाज में मेहरारून के स्थिति ठीक ना रहे । मरद घर के बाहर आ मेहरारू घर के भीतर ... बाहर के दुनिया से अंजान , चारदीवारी में जिनगी खप जात रहे । पुरुष वर्ग के मानसिक तनाव के कम करे खाति घर के बाहर बहुत साधन रहे बाकी चारदीवारी के अंदर मेहरारून के स्थिति दयनीय रहे । मानसिक तनाव के शिकार एह वर्ग मे क्रोध, कुंठा, अवसाद आ अंत में पागलपन जईसन मनोविकार पनप जात रहे । ई विकार सब अईसन हवें की इनका के निकालल न जाई त शरीर में रोग-व्याधि लईहें । पुरखा लोगन के वैज्ञानिक सोंच से एह तरह के रोग के रोके के उपाय मिलल लोक परब में । लोक परब जे जन जन के मुंहे पीढ़ी दर पीढ़ी पार होखे । ना कहीं कवनों वेदपुरान के वाणी ना कवनों ग्रंथ के लिखंत । बस मुंहे मुंही परब आ एकर विध... इहे लोक परब जे साधारण आदमी मे दिलो दिमाग में बस जाय आ एह परब के पाछे छुपल सोच के काम भी हो जाये । अईसने एगो लोक परब बनल- गोधन भा भाई दूज ।
कवनों मेहरारू खाति आपन माई-बाप के बाद भाई से प्रेम होला । अगर देखल जाव त उहे सबसे जादे नजदीक होला । उमिर के हिसाब से कुछ ऊपर नीचे, कुछ बराबर एगो अईसन व्यक्तित्व जेकरा पे जेतना क्रोध-खीस ओहि पे सबसे बढ़के प्यार आ दुलार । लईकायीं के खेल के सहयोगी से लेके जीवनभर तक बहिन के रक्षा करे खाति समर्पित भाई से बढ़के दुनिया के सबसे प्यार दुलार के रिश्ता कवनों ना होखे । लोग मानसिक शांति पावे खाति आपन सबसे प्रिय चीज के ही साथ खोजेला । केहु गीत संगीत त केहु नाच, केहु इयारी दोस्ती के गपशप त केहु कवनों कारज में मन रमा लेवेला । अब मेहरारून के मानसिक तनाव के इलाज सबसे नजदीक आ सबसे प्रिय रिश्ता भाई में खोजल गइल । भाई आ बहिन के जोड़ के परब बनल । एह परब के विधि कहीं लिखित नईखे बाकी एक पीढ़ी से दोसर पीढ़ी तक आपन एके रूप में आज भी प्रासंगिक बा । एह परब के माध्यम से बरिस भर के क्रोध, खीस, मानसिक अवसाद के दूर करे के उपाय बतावल गइल बा । उपाय अईसन की अवसाद के ज्वालामुखी के धधकत लावा के केहु उफान पे लाके अचानक से बरफ जस जमा देवे । अवसाद के नामो निशान मिटा देवे । मन में फेर से शांति आ सकून आ जाये कुछ अईसने विधि से अंटाईल परब के नाम ह गोधन भा भाई दूज ।
क्रोध के प्रतिकात्मक रूप ह गारी दिहल । बलवान क्रोध के निपटारा आपन बल से त कमजोर मुंहजोर (गारी) से करेलें । साल भर से कुंठाग्रस्त, क्रोध के आपन सीना में दबवले मेहरारून लोग के एह दिन छुट रहेला आपन हित-नात रिश्तेदार  के गारी दे के आपन मन के दबल भाव के निकाले के । भाई दूज के दिन होते बिहान मय मेहरारून लोग आपन भाई भतीजा, नात रिश्तेदार सबके श्रापे के शुरू करी लोग । लोग मुंह में पानी तक ना डाले । खीस में अन्न जल छोडला के प्रतीक ह । एह दिन क्रोध के हरेक तरह से उफान पे लावे के कोशिस होला । क्रोध के अंतिम चरण में लोग केहु के मउअत तक के कामना कर देवेला । क्रोध के अग्नि जब प्रचंड होखे त सामने यमराज भी आ जास त उनको के जरावे के हिम्मत होला । यमराज मृत्यु के देवता हवें, उनकरा डरे दुनिया समाज सभे देवता पितर पूजत रहेला की यमराज से भेंट मत होखो । 
गोधन के प्रतीकात्मक चित्र ,रेखांकन -शशि रंजन मिश्र
बाकी आज के दिन क्रोध आपन सीमा लांघत बा एह से यमराज से भी दू-दू हाथ करे खाति लोग तैयार बा । आज यमराज के दुर्गति हो जायी । गोबर से चौखुट बक्सा में यम-यमिन बनावल जाला । मान्यता ह की एक सैय्या पे मरद आ मेहरारू के एक दोसरा के ओर गोड़ करके ना सुते के । दूनों के बीच प्रेम के नास होला । त आज जब यमराज पे खीस उतारे के बा त उनकर मेहरारू के भी एही खीस में लपेट लियाई आ एह लोग के दांपत्य जीवन के छिन्न भिन्न कर दियाई । अब गोबर के यम-यमी त बन गईले बाकी क्रोध एह गोबर पे कईसे उतरी , बरिस भ के क्रोध जे रोयां-रोयां पेहन भईल बा हतना आसानी से उतरल मुश्किल बा । झाँवा इंटा सबसे बरियार मानल जाला, उहे ओह चौखटा में  बीचों-बीच रखाई । आ फेर सब औरत सब मिलके मूसल आ लाठी से उ इंटा के मार-मार के फोड़ दिहें, यम–यमिन के दुर्गत हो जाई । 

कपार के खीस अब धूरे धूर होके जमीन लोटत बा । बरिस भर के कुंठा, खीस, अवसाद इंटा के धूर आ गोबर में सनाईल जमीन चाट रहल बा । सारा क्रोध निकल गइल । अब जवन पर क्रोध निकाले के रहे ओकर नेस्तनाबुत हो गईल आ अब क्रोध शांत हो गइल ।  जवन ज्वालामुखी धधकत रहे ओकर सब लावा बह गइल । अब उ जगह खाली बा, समय पावते एह बुझाईल ज्वालामुखी के मुंह पे ठंढा मीठा पानी के झील बन जायी ।  काँट से भरल डाढ़ के फुनगी पे खुसबु बिखेरत फूल खिल जायी ।  
क्रोध शांत भईल, मन के शांति मिलल त सबेरे से लेके अब तक घटनाक्रम पे धेयान जायी । ओह ! आज क्रोध में ना जाने सभे के का-का कह गयिनी । आपन भाई-भतीजा सभके मउअत मांग देनी । बड़ा गलती हो गइल । एह तरह के पश्चाताप के धारा बही । सब मेहरारू लोग आपन जीभ में रेंगनी के काँट गड़ा के पश्चाताप करी- 
जवन जीभिया से गारी दिहनी ओहि जीभिया में काँट गड़ो’ ।
कंटकारी, रेंगनी , चित्र साभार-गूगल सर्च
पछतावा के बाद सब औरत लोग आपन भाई-भतिज के आशीर्वाद दिही आ बज्जरी खियाई की इनका लोग के देह बज्जर बनो । 

“कवन भइया चलले अहेरिया, कवन बहिनी देली आसीस
जिअसु हो मोरा भइया, जीअ भइया लाख बरिस”
विचार कइल जाय त क्रोध आ प्रेम, दूनों एके ऊर्जा से निकलल भावना के दू रूप ह । दूनों में कवनों मौलिक अंतर नईखे । यदि क्रोध के गहिर अभ्यास कइल जाय आ क्रोध के जेतना संपूर्णता से जीए के प्रयास करल जाय त ओतने गहिर आ प्रामाणिक प्रेम उत्पन्न होखी ।
अपना भीतर प्रेम के अंकुरण के दोसर उपाय के साथे क्रोध के अभ्यास भी एगो उपाय ह । अभ्यास के माने की  व्यक्ति के मन में खाली क्रोध के भावना छोड़ के कुछ आउर भाव मत रहे । क्रोध के भाव एतना प्रचंड होखे की यम जईसन प्रचंड व्यक्ति भी एह क्रोध के प्रकोप से मत बांचस । मृत्यु सबके विरोधी ह , दुखदायी ह , उग्र ह, प्रचंड ह । मृत्यु के देवता यम हवें त अईसन कठोर के ऊपर क्रोध कईला पे केहु विरोध ना करी ।
भय आउर क्रोध के कारण लगभग एके बा । क्रोध के मूल उद्देश्य ह भय पे जीत हासिल  करे के प्रयास । सही मामिला में भयभीत के क्रोधी होखे के आ क्रोधी के भयभीत होखे के गुंजाइश हमेशा रहेला । आ मृत्यु से त हरेक प्राणी भयभीत रहेला । एह भय के ऊपर अगर क्रोध कइल जाय या एकर अभ्यास कइल जाय त आपन चरम पे पहुँच के इहे क्रोध मृत्यु के भय के समाप्त कर दिही । एकरा बाद मनोबल के जवन ऊर्जा मिली अगर अभ्यासी चाहे त प्रेम के रूप में केहु पे न्योछावर कर दिही ।
भाई दूज के दिन कइल जाये वाला एह अनुष्ठान में जवन ऊर्जा के प्राप्ति होला ओकर लाभार्थी भाई होले । अनुष्ठान कहे के मतलब ई कि एह परब के सब विधि मानसिक तौर पे ही करल जाला । मन के उद्वेग , कुंठा, क्रोध आ अवसाद के समन करे खाति एह से बढ़िया उपाय कुछों नईखे हो सकत कि लोक व्यवहार भी हो गइल आ मनोविकार से भी छुटकारा मिल गइल ।
संदर्भ सूची
  1. मगध की रहस्यावृत साधना- डा० रवीन्द्र कुमार पाठक
  2. मस्तिस्क- विकिपीडिया
  3. मनोरोग-विकिपीडिया

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