Thursday, June 18, 2015

ग्राम कथा : हमार गाँव पवना (भोजपुरी ई-पत्रिका "आखर" में प्रकाशित)

पन छोटहन नांव के उल्टा बडहन गांव ह पवना । नांव पे मत जायीं, पवना-पवनी भला इ कवनो नांव ह ? इ सही बा कि जगह के नांव से ओह जगहा के उंच-नीच के मालूमात होखेला बाकी एहिजा गांव के नांव से कथानक के कवनो लाग लपेट नईखे । विशेष में इहे बा कि मिसिर बाबा माने कथाकार के लईकाई के देह में एहिजे के धूर लपेटाइल बा । आउरी छोट-बड विशेषता बा, राउर नजरी के सोझा आगे आई ।
लीं गांव के नांव से शुरू भइनी आ एहिजे अटक गइनी । कहे के ढेर बा, आ एतने ना रउरो सुने के ढेर बा... मिसिर बाबा के परबचन !!!
अब रउओ इ मत कहब कि मिसिर बबवा का-का लिखत रहेला । अब पवना जईसन गांव प लिखला के माने का, जहाँ न कवनो ताजमहल बा, ना कवनो चमत्कारी मंदिर-मस्जिद भा दरगाह के नामो निशान । त मिसिर बाबा काहें  आपन मगज के कचरस प दोसरा के मगज पकावत बाड़े ।
बाकी पढ़ लीं, मने-मने गुन लीं, काहे से कि कबो कबो कचरा प मंदिर के चढावल फूल भी भेंटा जाला ।  कवनो हरजा नईखे, आ पढला के बाद लेखक प भुनभुनाइब मत... काहें से कि एह रचना खातिर कथाकार के नोबेल पुरस्कार मिली, राज के बात बा... इ हम आजे भोरे-भोरे सपना में देखनी ह ।
अब रउआ नक्शा पे पवना के खोजब त जहुआ जाइब । एह से हम एह गांव के ठीक ठीक रस्ता  देखावत बानी । गवें-गवें चलीं हमरा जोरे, पैदल भा गाड़ी से भा मन के कोरे कोरे, रास्ता आसान बा । मन मनसायी ना, आ कबो अकबकाई ना । त बाँध लीं फेंटा आ गोडे जूता चमरेटा । लीं सिरिराम जी के नाम आ करीं परसथान ।
  

बिहार के भोजपुर जिला के नांव जानत होखब !!! 
ना...!!!?
अरे उहे जवना के ढेर लोग अबहुओं आरा जिला कहेला ।
हँ हँ हँ.... ठीक बुझनी । उहे...
त कुछ बरिस पहिले तक भोजपुरिया इलाका में एगो कहावत चलत रहे- “ए०बी०सी०डी०” माने आरा, बलिया, छपरा आ देवरिया जिला । अब एह में आरा, छपरा त बिहार में भईल, आ बलिया-देवरिया उत्तरप्रदेश में । अब एह ए०बी०सी०डी० के पदवी काहे मिलल एकर कहानी तनी अंदरूनी ममिला बा, जवन एह क्षेत्र खातिर बदनामी जईसन कह सकिला, बाकी हम ना कहब । ज्यादे जाने के बा त बिहार-बंगाल के कोईलरी के लोगन से मिलीं, बता दिहें । रंगदार- लठैत इहे चार जगहा से रहन आ ओह में आरा सबले आगे रहे। इनका लोग से दहशत रहे । कहावत रही स-
“जिला में जिला आरा, आउरी सभे जिल्ली । बीरन में बीर कुंवर सिंह आउरी सभे बिल्ली ।।”
भा- “आरा जिला घर बा, कवन बात के डर बा ।”
त जे बा से की एह कहावत के थोर-बहुत छाप एह गांव में भी रहे । बाबु साहेब( लईका भा सेयान) आपन बबुआनी ना छोडत रहन । भले घरे सतुआ प जिनगी कटत होखे गांव के गान्ही चउक ( गाँधी चौक) प इनका सभे के रईसी देखे के मिल जात रहे । पनेहेरी के दोकान प बही के केतना पन्ना भराइल बा इ त उहे पनेहरी जाने । बाकी बाबू साहेब के ठाट रहे । आउरी भेद के बात कहके आपन गाँव के नांव ना नू हंसायिब । खैर अभी गाँव की सिवान धरीं ।
आरा के जीरो माइल से दू किलो मीटर आगे गड़हनी रोड प बढब, त तेतरियां गांव भेंटाई । एहिजा से एगो रास्ता बाएं गईल बा जवन सहार तक जाले, बस इहे पकड़ लीं । कहीं मुड़े के नईखे इहे राह पवना जाला । तेतरिया से 14 कि०मी० पड़ी पवना । अब गांव में घुसते जवन नजारा मिली त रउओ कहब कि जवन गांव प हेतना बतरस लिखाइल दूरे से उजाड़  लउकत बा । अरे महाराज ! घबराई जन इ उजाड़  जमीन त इ गांव के विशेष पहिचान देले बा । एकर चर्चा आगे मिली । आगे बढ़ीं त एगो चउरस्ता आई, जवना के एगो नाम देवल बा- गान्ही चउक ।
ना ना...!!! गान्ही बाबा से जुडल एहिजा कवनो अईसन बात नईखे । अब पुरनिया लोगन के सरधा से राखल एह नाम के महत्व ढेर बा । इहे चौक से एगो अउर  रस्ता फुटल बा जवन सन्देश जाले । एह रस्ता के कारण  गांव तीन-चार टोला में बंटा गईल बा ।
घबड़ाई जन !!! अब कहीं नईखे जाएके, इहें गान्ही चउक प सगरी गांव के भेद खुली । मिसिर जी के गांव के पहिचान करीं, मिसिर जी के मुखारविंद से उवाचरित । मिसिर बाबा के अलगे पहिचान बा एहिजा । इहाँ इनकर आस्तित्व इनकर बाबा के नावे जानल जाला । फलाना बाबा के नाती-पोता हवे । त उहे फलाना बाबा के पोता के लइकाई  से जुडल कुछ इयाद में गोता लगायीं जा ।
त गांव में प्रवेश भईल आ गान्ही चौक प पहुंचनी कि लोग बाग के नज़र में आ जाईब कि गांव खातिर केतना पुरान बानी । जान-पहिचान ढेर होई त पंवलगी शुरू हो जाई ।
“गोड लागीं ए बाबा ! ढेर दिन पे...”
“और हालचाल ठीक बा नू !!??? अभी रहे के बा नू ? साँझ के भेंट करब...”
एह गान्ही चउक से लेके मिसिर जी के मकान तक सड़क के दुनो ओर दोकान बाड़ीसन । एक से बढ़ के एक जिनिस के सामान भेंटा जाई । चाय के गुमटी से लेके खीरमोहन के झांपी तक । लकठो आ घुघनी के खोमचा से लेके ताड़ी के हांड़ी तक । मजमुआ इतर से लेके रेक्सोना के बोतल से फुहार फेंकेवाला सेंट तक । मरकिन के कुरता से लेके सिलिक के अंगिया तक सब एहिजे भेंटा जाई ।
अब अचकचायीं, दम धरीं... ढेर चीज भेंटाई देखे के... लीं गान्ही चउक प गंगामात एह सुगंध के निशा में त हम भुलाईये गईनी । मीठ आ तनी कासाह गन्ह एह गांव के एगो विशेष मिठाई के ह । अब कहब त हँसब मत... एह गांव खातिर इहे मिठाई बंगाली रसगुल्ला ह, आगरा के पेठा ह । अच्छा अब एकर नाम बता देत बानी । इ ह जिलेबी, आधा पकल जामुन के रंग के जिलेबी, तीसी के तेल में के छानल जिलेबी । गरमा गरम खाईब, त इ भुला जाईब कि केतना खईनी, रस के चुवत धार के अईसन सुडपब कि मन मिजाज तर हो जाई । खा लीं... अरे पचास गिराम आउरी लीं ...
अब जिलेबी प्रसिद्ध त एहिजा के चाट भी प्रसिद्ध । निराला, दिलवाला, दिल्लीवाला, कलकतावाला आ ना जाने का का... टाट के झोपड़ी में आगे सिंघाडा कचौड़ी, कोइला के चूल्हा प दिनभर पानी मिलत आ गरम होत मटर के छोला । ओह झोपडी में घुस के देखीं, गणेश आ लक्ष्मी जी के मूर्ति के साथे बदन उघाड़ हीरो आ कुल्हा के बल पे अटकल हिरोइन के फोटो जरुर भेंटाई । दोकानदार साहित्य के बहुत प्रेमी हवें, बिल्लो रानी चमन बहार लखनऊवाली के लिखल शायरी के किताब के चार लाइन भी लगयिले बा...
“सोना दिया सुनार को पायल बना दिया, दिल दिया यार को घायल बना दिया”
भा “ये खुदा हम तुमसे फरियाद करते हैं, मत भेज उधार मांगने वाले जो हमें बर्बाद करते हैं”
चाह-पानी के दोकान आ पान बीड़ी के दोकान अईसन दू जगह होला जहाँ गांव भर के खबर पहुंचेला । केकरा घर में आज हिंग के छौंका पडल बा इहो खबर मिल जाई एहिजा । बाकी रंज खुसी स्नेह से पगायिल गाँव के बेयार में सनायिल राउर मन मतंगा पे कवनो लाग लपेट के लपट ना लागी । एह गाँव के बाजार के इहे महिमा कि दस गो आउरी गाँव-जवार के काज परोजन आ बिध-व्यवहार के, मय नेवता-पेहानी के, खाजा-खजुली-बेलगरामी के सभकर वेवस्था कर देवेला । मास्टर हनीफ बैंड के पिस्टन से रामधुन के साथे राजा राजा करेजा में समाजा वाला गीत भी बाजेला ।
कुल मिलाके एह गाँव के बाजारे गाँव ह भा बदलत सामाजिक व्यवहार के ब्यापार करत गाँव अब बाजार ह । बाकी कुछो होखे, इ मिसिर जी के गाँव ह आ आपन गाँव के बडाई करब... रउआ  बुझे के बा त बुझ जाईं की गाँव बदल गईल बा ।  बाज़ार जादे आ व्यवहार कम हो गईल बा । मिसिर जी के लाल टीका देखि केहू पंवलागी भले जन करे बाकी ललका झंडा जरुर देखा दी ।

अब रउआ एह गाँव में अइनी त दुआरे आयीं, लचिदाना आ बतासा से खरमेटांव करीं । मुंह मीठ करीं आ जवन जबुन देखनी ओकरा के मने मत लायीं । गाँव ह हमार, हमरा खातिर त माई के आँचर ह, एही गाँव के धूर देहीं में लागल बा । जबुन ना कहब... ओइसे गाँव के दक्खिन सिवान प लिखल बा- आदर्श गाँव पवना में पधारने के लिए धन्यवाद ।

(इ कहानी- भोजपुरी के ई-पत्रिका आखर के फरवरी-2015 अंक में छपल बा । भोजपुरी साहित्य के पत्रिका पढे खातिर आखर के वेबसाइट www.aakhar.com पे जाईं )

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