शंकर यहाँ डुगडुगी बजाता, हनुमान भी हाथ फैलाता है |
और कभी रखता है कोई मूर्ति, उसी में जिस थाली में खाता है |
बुद्ध भी यहाँ मिल जायेंगे, और मिलेंगी बहुतेरे काली माई |
कालिख तन पर और जिह्वा बाहर, आकर आपके आगे हाथ फैलाई |
कभी डाल चोला साधू का, अलखनिरंजन की ऊँची टेर लगाता,
दे बच्चा खाने को कुछ, बाबा का आशीर्वाद खाली नहीं जाता |
कभी आएगा कोई अघोरी, अस्थि-दंड खूब बजायेगा |
पढ़लेगा मस्तक की रेखाएं, खुद को त्रिकालदर्शी बतलायेगा |
घुमती है एक मण्डली,जो अजमेरशरीफ भी जाती है|
डाल दो कुछ चादर में ,चादर चढाने जाती है |
चौराहे पर एक बाबा मिलेगा, लोबान जला भूत भागता है |
दे दो इसको बस एक रुपया, ज़माने भर की दुआ बरसाता है |
देखा कभी एक नज़ारा ऐसा भी, आदमी काम्पने लगा गिरकर ,
पास कोई उसके ना फटक रहा, और पैसा बरसता था झरझर |
एक उर में और एक उदर में रख, दीनहीन कैसी ये माता है |
हाथ फैलाकर रही मांगती, चौराहे पर जब कोई रुक जाता है |
भरी जवानी तन का सौदा, बुढापा अब खटकता है ,
मन का सौदा कर रही हैं, हाथ अब दिन-रात पसरता है |
बहुत ही ऐसे ढोंग मिलेंगे, जो रोज़ हमें छला करते हैं |
हाय विधाता कैसी ये दुनिया, कैसे-कैसे जीवन रहते हैं |