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Friday, November 27, 2009
कजरारी अँखिया काहे लोराइल
कजरारी अँखिया
काहे लोराइल
केकर बात टीस लागल
मन में समाइल
भोरे भोरे काहे आज
मुखड़ा मलिन बा
देहिया के सुध नइखे
लागत दीनहीन बा
काहे चनरमा पे राहू
घिरी आइल
केकर बात टीस लागल
मन में समाइल
कजरारी अँखिया...
दिलवा के पीर पर
नीर जनी बहाव
हमर स्नेह के
मरहम लगाव
फेर से देखाद
आपन मुस्काइल
केकर बात टीस लागल
मन में समाइल
कजरारी अँखिया...
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"का कही अब हम कुछु ना बुझाईल बा
ReplyDeleteराउर ई गीत हमारा मन में समाईल बा
जदि मिल जाइत सुर ई गीत के
गा दिहित एके जे प्रीत से
जियरा के आस पूर जाइत ..........:-)
बहुत सुन्दर रचना बा ......साधू साधू