हं हं... इहे गीत रहे जवन एगो इयाद बनी के रह गईल बा | आ एह इयाद में ढेर लोग जुडल बा | केकरा के गिनी केकरा के छोड़ीं !?पता ना इ गाना केकर गावल ह, आ केकरा मुंहे सुनले रहीं | उमिर के हिसाब से ५-६ साल से अधिका ना होखब | आ एह गीत के लयिकायीं में खूब गावत रहीं | आ एह गीत के फरमायिसी आवत रहे "बिस्नाथ" बाबा से...
बबुआ , झलक बाबा के सुनाव |
बाबा के नाव खेयाल ना रहत रहे , त हम आपन बाबा से पुछब- उ झलक बाबा कहिया अयिहें ?
तीन पुसुत ऊपर एगो बाबा बक्सर के भीरी भदवर बस गईले | बिस्नाथ बाबा उहे भदवर से रहलें | उनका में आ हमार बाबा में ढेर परेम | आ उ दुनो जाना के भ्रात परेम के नेह जोग में खेलल हमार लयिकायीं | आयुर्वेद आ संस्कृत में डिक्शनरी के निघंटु कहल जाला | हमार पुकार के नाव इहे रखायिल रहे, बाकी "नि" के निस्तारण कर दियायिल आ घंटू परसिद्ध भ गईल | अब बिस्नाथ बाबा जब जब हमार गाँव पवना आवस| दुवार पे चौकी पे बिछौना, तकिया के साथे गोड धोये के जिम्मेवारी हमरा के | आ हमहूँ लपक के इ काम के झटपट करीं की बाबा आईल बानी जरुर कुछ भेंटाई |
कहिहें- ए चनरभूसन भाई , नाती ( हमनी किहाँ पोता-नाती एके कहाला) ढेर काम करत बा | एकरा के खीरमोहन खियाव |बबुआ घंटू जी, झलक बाबा सुनायिब त खीरमोहन भेंटाई | अब खीरमोहन के लालच पे बाबा हमरा से झलक बाबा के गीत सुनब |
"झलक बाबा के कहनवा माने के पड़ी
माने ले पड़ी हो धन्वा माने के पड़ी
झलक बाबा के कह्नवा..... |"
फेर झोरा में से खीरमोहन के ठोंगा निकसी, दुनो हाथ में एकेक गो भेंटाई |
बिस्नाथ बाबा गुजर गईलें , चनरभूसन बाबा गुजर गईले |
गाँव के दुआर ढह गईल |
हमार लयिकायीं ओही दुआर के माटी के ढूह में भुलाईल बा |
लयिकायीं के एह इयाद में सांच मनई के सुनर मुनर रूप अब भुला रहल बा | बाकी मनवा के कवनो कोर पे कबो कबो अतना बेचैनी होला, की हे मन, लवट चलs... ओही लायिकायीं के कोरा में जहाँ ना सांच रहे ना झूठ | बस एगो झलक बाबा रहन, एगो उनकर गीत रहे आ बलिराम हलुआई के खीरमोहन रहे...
___शशि रंजन मिश्र (२४/०२/२०१४)